Thursday, May 20, 2010

हाँ मुसलमान हूँ मैं.....

                    यह कविता मेरे उन मुसलमान भाईयों के लिए है जो उनकी कौम के  चंद गुनाहगारों कि वजह से दुनिया भर में शक की नज़र से देखे जाते हैं.....
क्यूँ इतना तिरस्कृत, इतना अलग,
हर बार यह निगाह मेरी तरफ क्यूँ उठती है....
क्यूँ हर जगह मुझसे मेरा नाम पूछा जाता है..
क्यूँ भूल जाते हैं सब कि इंसान हूँ मैं,
इस देश कि मिटटी का अब्दुल कलाम हूँ मैं,
गर्व से कहता हूँ... हाँ, मुसलमान हूँ मैं...
आतंक फैलाना मेरा काम नहीं,
ये श़क भरी दृष्टि मेरा इनाम नहीं,
इस धरती को मैंने भी खून से सीचा है,
मेरे भी घर के आगे एक आम का बगीचा है,
हँसते हँसते जो इस देश पर मर गया,
वो क्रांतिकारी अशफाक अली खान हूँ मैं,
गर्व से कहता हूँ, हाँ मुसलमान हूँ मैं,
क्या हुआ जो चंद अपने बेगाने हो गए,
गलत रास्ता चुनकर, खून कि प्यास के दीवाने हो गए,
यह खुबसूरत वादियाँ हमारी भी जान हैं,
यह देश का तिरंगा हमारी भी शान है,
हरी-भरी धरती से सोना उगाता किसान हूँ मैं,
गर्व से कहता हूँ, हाँ मुसलमान हूँ मैं.....

Wednesday, May 12, 2010

जाने क्यूँ उदास है मन.....

जाने क्यूँ उदास है मन,
जाने किस बात का है गम,
यादों के झरोखों से कुछ,
धुंधली तस्वीरें दिखती हैं,
गर्मियों के मौसम में भी,
आखें शीतल पाषाण सी लगती हैं,
ह्रदय कि कोमल धरा पर,
काँटों जैसा कुछ चुभता है,
किसी को व्यथित देखकर ,
जाने मेरा मन क्यूँ दुखता है,
इस बेबसी का अर्थ है क्या,
क्या कहते हैं ये रेत के कण,
जाने क्यूँ उदास है मन.....
जाने किस बात का है गम....
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