Friday, December 3, 2010

सुनहरी यादें :- ६

                  इस बार सुनहरी यादों में शामिल है ऋचा जी  की रचना ,जो भेजी है रश्मि प्रभा  जी ने | ये रचना उन्होंने २ नवम्बर २००९ को प्रकाशित की थी |
                  इस सप्ताह की हमारे सर्वश्रेष्ठ पाठिका हैं  रश्मि प्रभा जी  | उनकी भेजी और ऋचा जी की लिखी इस प्यारी सी रचना का शीर्षक है  |


                                                              एक टुकड़ा ज़िन्दगी 
 
            ये ज़िन्दगी भी कितनी "अन्प्रेडिकटेबल" होती है... है ना ? अगले ही पल किसके साथ क्या होने वाला है कुछ नहीं पता... सच कहें तो हमें लगता है |

            ज़िन्दगी का ये "अन्प्रेडिकटेबल" होना इसे और भी खूबसूरत बना देता है... ज़िन्दगी के प्रति एक आकर्षण, एक रोमांच बना रहता है... अगर हमें अपने आने वाले कल के बारे में पता हो तो उसकी चिंता में शायद हम अपने आज को भी ठीक से ना जी पायें...
वैसे भी आज ज़िन्दगी के लिये तमाम सुख सुविधाएं जुटाने की जद्दोजहद में हम अपनी ज़िन्दगी को जीना ही भूल गए हैं, जो हर गुज़रते पल के साथ कम होती जा रही है, हमसे दूर होती जा रही है...  पैसों से खरीदे हुए ये बनावटी साज--सामान हमें सिर्फ़ चंद पलों का आराम दे सकते हैं पर दिल का सुकून नहीं... इसलिए भाग-दौड़ भरी इस ज़िन्दगी से आइये अपने लिये कुछ लम्हें चुरा लें... कुछ सुकून के पल जी लें... उनके साथ जो हमारे अपने हैं... आज हम यहाँ है कल पता नहीं कहाँ हों... आज जो लोग हमारे साथ हैं कल शायद वो साथ हों ना हों और हों भी तो शायद इतनी घनिष्टता हो ना हो... क्या पता... इसीलिए आइये ज़िन्दगी का हर कतरा जी भर के जी लें...
ये ज़िन्दगी हमें बहुत कुछ देती है, रिश्ते-नाते, प्यार-दोस्ती, कुछ हँसी, कुछ आँसू, कुछ सुख और कुछ दुःख... कुल मिलाकर सही मायनों में हर किसी की ज़िन्दगी की यही जमा पूंजी है... ये सुख दुःख का ताना-बाना मिलकर ही हमारी ज़िन्दगी की चादर बुनते हैं, किसी एक के बिना दूसरे की एहमियत का शायद अंदाजा भी ना लग पाए...
अभी हाल ही में हुए जयपुर के हादसे ने हमें सोचने पे मजबूर कर दिया... सोचा कि इस हादसे ने ना जाने कितने लोगों कि ज़िन्दगी अस्त-व्यस्त कर दी, कितने लोगों को इस हादसे ने उनके अपनों से हमेशा हमेशा के लिये जुदा कर दिया और ना जाने कितने लोगों को ये हादसा कभी ना भर सकने वाले ज़ख्म दे गया... पर इस हादसे को बीते अभी चंद दिन ही हुए हैं... आग अभी पूरी तरह बुझी भी नहीं है और ये हादसा अखबारों और न्यूज़ चैनल्स कि सुर्खियों से गुज़रता हुआ अब सिर्फ़ एक छोटी ख़बर बन कर रह गया है... शायद यही ज़िन्दगी है... कभी ना रुकने वाली... वक़्त का हाथ थामे निरंतर आगे बढ़ती रहती है... जो ज़ख्म मिले वो समय के साथ भर जाते हैं और जो खुशियाँ मिलीं वो मीठी यादें बन कर हमेशा ज़हन में ज़िंदा रहती हैं...


ग़म की चिलकन, सुख का मरहम

उदासी के साहिल पे हँसी की इक लहर

कुछ उम्मीदें

कुछ नाकामियां

कुछ हादसे

कुछ हौसले

कभी ख़ुदा बनता इंसान

कभी खुद से परेशान

कभी बच्चों की हँसी में खिलखिलाती मासूमियत

कभी दादी-नानी के चेहरों की झुर्रियां

इन सब में है थोड़ी थोड़ी

इक टुकड़ा ज़िन्दगी

-- ऋचा

19 comments:

  1. Yes!Richa ki hai...pahle bhi padhi hai aaj fir padha to bada refresh feel kar rahe hain.... Thanks for sharing

    ReplyDelete
  2. ऋचा जी की रचना अच्छी लगी
    रचना पढवाने के लिए आप दोनो का आभार

    ReplyDelete
  3. बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति लाये हैं आप......ऋचा जी को लिखने और आपको प्रस्‍तुत करने के लिये ढेर सारी बधाई और शुभकामनायें ।

    ReplyDelete
  4. बिल्कूल सही बात लिखी है जीवन के बारे में ऋचा जी ने पढ़ कर अच्छा लगा | ये हम तक पहुचने के लिए शेखर जी आप का धन्यवाद |

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति …………पढवाने के लिये आभार्।

    ReplyDelete
  6. कभी दादी-नानी के चेहरों की झुर्रियां

    इन सब में है थोड़ी थोड़ी

    इक टुकड़ा ज़िन्दगी

    बहुत सुन्दर .....रश्मि जी को आभार ..आपको शुक्रिया ...

    ReplyDelete
  7. सच कहूँ तो भूल ही गई थी कि ये भी लिखा था कभी... यादों की भूली बिसरी पगडंडियों पे हाथ पकड़ के यूँ दोबारा ले जाने के लिये रश्मि जी और सुमन जी आपका तह-ए-दिल से आभार...

    और आप सब का भी शुक्रिया इसे पढ़ने और सराहने के लिये !!

    ReplyDelete
  8. ऋचा जी
    सुनहरी यादें का उद्देश्य ही यही है कि जो रचनायें लिखकर सब भूल गए उन्हें फिर से सामने लाना...
    आप बहुत अच्छा लिखती हैं...अपना लेखन यूँ ही जारी रखें...

    ReplyDelete
  9. यही अनिश्चितता ही रोचकता है जीवन की।

    ReplyDelete
  10. बहोत ही अच्छी रचना है........
    ऋचा जी को शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  11. आपके इस प्रयास के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया..!! सुन्दरता से चित्रण हुआ है..!!

    ReplyDelete
  12. Bahut sundar rachana! Waise,kabhi,kabhi lagta hai,ab Dada-Nanee ke naseeb me apne nati, pote,potiyon kaa sukh kahan rah gaya??

    ReplyDelete
  13. खूबसूरत!
    आशीष
    ---
    नौकरी इज़ नौकरी!

    ReplyDelete
  14. .

    कभी ख़ुदा बनता इंसान

    कभी खुद से परेशान...

    बेहद खूबसूरत रचना । ऋचा जी , रश्मि जी और सुमन जी को बधाई।

    .

    ReplyDelete
  15. ऋचा जी की प्यारी सी छोटी सी कविता पढवाने के लिए आपको और दीदी को धन्यवाद !

    ReplyDelete
  16. इन सब में है थोड़ी थोड़ी
    इक टुकड़ा ज़िन्दगी

    गहरे एहसास से समेटा है इस टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी को ... लाजवाब ...

    ReplyDelete
  17. richa jee ki kavitayen humesha ek mulaymiyat liye rahti hain..unki rachna padhane ke liye dhanyawad

    ReplyDelete

Do you love it? chat with me on WhatsApp
Hello, How can I help you? ...
Click me to start the chat...