अजनबी शहर के अजनबी रास्ते , मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे
में बुहत देर तक यूँही चलता रह, तुम बहुत देर तक याद आते रहे।.
ज़हर मिलता रह ज़हर पीते रहे , रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे,
ज़िंदगी भी हमे आजमाती रही , और हम भी उसे आजमाते रहे।
ज़ख्म जब भी कोई जहन -ओ-दिल पे लगा , ज़िंदगी की तरफ एक दरीचा खुला,
हम भी गोया किसी साज़ के तार हैं , चोट खाते रहे गुन-गुनाते रहे।
कल कुछ ऐसा हुआ में बहोत तक गया, इस लिए सुने के भी अनसुनी कर गया,
कितनी यादों के भटके हुआ कारवाँ , दिल के ज़ख्मों के दर खट-खटाते रहे।
सख्त हालात के तेज़ तूफानों, गिर गया था हमारा जुनूने वफ़ा
हम चिराग़े-तमन्ना़ जलाते रहे, वो चिराग़े-तमन्ना बुझाते रहे ।।
शायर-- राही मासूम रज़ा ...
में बुहत देर तक यूँही चलता रह, तुम बहुत देर तक याद आते रहे।.
ज़हर मिलता रह ज़हर पीते रहे , रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे,
ज़िंदगी भी हमे आजमाती रही , और हम भी उसे आजमाते रहे।
ज़ख्म जब भी कोई जहन -ओ-दिल पे लगा , ज़िंदगी की तरफ एक दरीचा खुला,
हम भी गोया किसी साज़ के तार हैं , चोट खाते रहे गुन-गुनाते रहे।
कल कुछ ऐसा हुआ में बहोत तक गया, इस लिए सुने के भी अनसुनी कर गया,
कितनी यादों के भटके हुआ कारवाँ , दिल के ज़ख्मों के दर खट-खटाते रहे।
सख्त हालात के तेज़ तूफानों, गिर गया था हमारा जुनूने वफ़ा
हम चिराग़े-तमन्ना़ जलाते रहे, वो चिराग़े-तमन्ना बुझाते रहे ।।
शायर-- राही मासूम रज़ा ...
साथ में एक प्यारा सा गीत जो मुझे बहुत पसंद है आप भी सुनिए....
ज़हर मिलता रह ज़हर पीते रहे , रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे,
ReplyDeleteज़िंदगी भी हमे आजमाती रही , और हम भी उसे आजमाते रहे।
..bahut sundar sher.. prastuti ke liye aapka aabhar.. aapko basant panchmi kee haardik shubhkamnayen.
रही मासूम रज़ा के शेर पढवाने के लिए धन्यवाद| गाना भी बहुत प्यारा है|
ReplyDeleteबसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ|
ज़हर मिलता रह ज़हर पीते रहे , रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे,
ReplyDeleteज़िंदगी भी हमे आजमाती रही , और हम भी उसे आजमाते रहे।
शेखर सुमन जी
बहुत अच्छा प्रयास है आपका ...शुभकामनायें
गीत भी बहुत सुन्दर है और रही साहब के शेर भी ..बहुत शुक्रिया.
ReplyDeleteशेखर सुमन जी
ReplyDeleteबहुत अच्छा प्रयास है आपका ...शुभकामनायें
one of my all time favourites buddy....thanks, padhane ke liye :)
ReplyDeleteज़िंदगी भी हमे आजमाती रही , और हम भी उसे आजमाते रहे |
ReplyDeleteBILKUL SAHI KAHA HAI
राही मासूम रज़ा की यह ग़ज़ल मुझे बहुत पसंद है
ReplyDeleteयहाँ एक बार फिर से पढ़कर बहुत अछा लगा
लेकिन शेखर जी आखिरी शेर क्यूँ छोड़ दिया
वो तो ख़ास तौर पे सबसे ज्यादा पसंद है
फोटू भी बड़ा बढ़िया लगाया है भाई
आभार
nice nazm...:)
ReplyDeleteवाह! शेखर जी,कितनी पुरानी यादों को तज़ा करा दिया आप ने ये कलाम पेश करके!मुबारक!
ReplyDeleteआदरणीय प्रकाश जी,
ReplyDeleteमुझे तो सब जगह यही ४ शेर ही मिले मैंने बहुत जगह चेक किया है..
अगर आप वो आखिरी शेर बता सकें तो आभारी रहूँगा....
शेखर जी इस ग़ज़ल का आखिरी शेर शायद यह है :
ReplyDelete'सख्त हालात के तेज़ तूफानों में, गिर गया था हमारा जुनूने वफ़ा
हम चिराग़े-तमन्ना़ जलाते रहे, वो चिराग़े-तमन्ना बुझाते रहे'
वैसे अगर कोशिश करूँ तो छठा शेर मैं खुद भी तैयार कर सकता हूँ :)
ReplyDeletebahut bahut shukriya prakash ji...
ReplyDeletesher jod diya gaya hai....:)
to phir soch kya rahe hain....
paalthi maarke baith jayiye..mushayra shuru karte hain....
शेखर भाई मुशायरा तो शुरू कर सकते हैं लेकिन एक दिक्कत है !
ReplyDeleteश्रोता भागने न पायें, इसके लिए एक एक श्रोता पे मुझे दो-दो गार्ड तैनात करने पड़ेंगे :)
ऐसे कैसे श्रोता भाग जायेंगे...
ReplyDeleteदेखिये अभी भी ६ लोग ऑनलाइन हैं, बोलिए तो पकड़ के बिठा देते हैं यहीं....
बहुत उम्दा!
ReplyDeleteबसन्तपञ्चमी की शुभकामनाएँ!
बेहतर होगा कि कुछ ले-देकर..मान-मनव्वल करके मुशायरे में एक सरदार जी को बुला लेते हैं !
ReplyDelete-
-
-
गुरु गोविन्द सिंह जी कह गए हैं कि एक सरदार = सवा लाख
"सवा लाख से एक लडाऊं चिडियों से मैं बाज तुडाऊं।"
बहुत उम्दा!
ReplyDeleteबसन्तपञ्चमी की शुभकामनाएँ!
जियो बच्चा ..क्या बात है बहुत खूब । अबे हमें हैरानी है कि हम तब तुम्हारे इस ब्लॉग के follower कैसे नहीं बने ..चलो देर आयद दुरूस्त आयद
ReplyDeleteशेखर भाई
ReplyDeleteराही साहब की नज्म के तो क्या कहने, गीत भी बहुत अच्छा लगाया है
तबीयत खुश हो गयी
धन्यवाद और बसंत पंचमी की शुभकामनाये
चाचा के कलाम देख के अच्छा लगा. धन्यवाद्
ReplyDeleteज़ख्म जब भी कोई जहन -ओ-दिल पे लगा , ज़िंदगी की तरफ एक दरीचा खुला,
ReplyDeleteहम भी गोया किसी साज़ के तार हैं , चोट खाते रहे गुन-गुनाते रहे।
बहुत सुंदर ...पढवाने का आभार
स्वागतेय प्रस्तुति.
ReplyDeleteवाह जी वाह
ReplyDeleteसख्त हालात के तेज़ तूफानों, गिर गया था हमारा जुनूने वफ़ा
ReplyDeleteहम चिराग़े-तमन्ना़ जलाते रहे, वो चिराग़े-तमन्ना बुझाते रहे ।।
राही मासूम रज़ा के शेर के लिए आपको धन्यवाद | गाना भी बहुत प्यारा है|
बसंत पंचमी की हार्दिक - हार्दिक शुभकामनाएँ...
वाह जी वाह , शेखर सुमन जी की टिप्पणी (palash blog par ) पढ़ी , दुःख हुआ , असल में ब्लॉग जगत एक हकीकत हो कर भी एक काल्पनिक दुनिया है ..इसलिए इस से ज्यादा दिल लगा लेंगे तो मोह भंग होने पर दिल टूटेगा ही , अच्छा है कि इसे एक प्रेरणा दाई स्त्रोत की तरह तो लें , मगर अपने आस पास की जिंदगियों से मुंह न मोड़ें ..वही असलियत है ..हमारा कर्म क्षेत्र है ...विवेक हर जगह काम आता है ...
ReplyDeleteknock knock......koi hai?????
ReplyDeletezara baat karni thi....
haan ji....:)
ReplyDeleteशारदा अरोरा जी
ReplyDeleteहिम्मत बढ़ाने के लिए शुक्रिया...
मैं समझ सकता हूँ, वैसे आजकल कम ही जगह टिपण्णी करता हूँ जहाँ आवश्यकता महसूस होती है वहीँ....
अगर पोस्ट के विषय से जुडी चीजें कहनी हो तभी....
आप यहाँ आयीं अच्छा लगा..धन्यवाद..
jao ab ni karni baat. aapko apne blog tak laana tha bas....ho gya
ReplyDelete:P
khi khi :D
हा हा हा....
ReplyDeleteअच्छा जी...तो आप इतनी शैतान हैं....:)
रही मासूम रज़ा के शेर पढवाने के लिए धन्यवाद| गाना बहुत प्यारा है|
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएँ
शेखर भाई....
ReplyDeleteआपने बहुत अच्छा किया इन 'शेरों' को पढ़वाकर....
Itni saddy ghazal k baad ek sapna mangna to banta hi tha.. nice post Shekhar :)
ReplyDeleteरजा साहब की इस अमर रचना से परिचय कराने का शुक्रिया।
ReplyDelete---------
ब्लॉगवाणी: एक नई शुरूआत।
bahur khubsurat.....mza aa gya
ReplyDeleteshekhar...bahut sundar gazal.....
ReplyDeleteज़हर मिलता रह ज़हर पीते रहे , रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे,
ReplyDeleteज़िंदगी भी हमे आजमाती रही , और हम भी उसे आजमाते रहे
शेखर जी राही मासूम रजा जी की रचना आपने प्रस्तुत की पढ़कर अच्छा लगा !
बहुत दिनों से आपका मेरे ब्लॉग में आना नहीं हुआ क्या बात है क्या कोई नाराजगी तो नहीं
मज़ा आ गया पढकर ...
ReplyDeleteमेरे पशंदिदा शायर जिनसे हमने ..जिन्दगी जीने के कई गुर सीखे हैं.......
ReplyDelete