Wednesday, March 9, 2011

क्या किसी परीक्षा का परिणाम आपकी ज़िन्दगी से ज्यादा कीमती है ? Students Suicide..

                परसों शाम में एक बहुत ही दुखदायी खबर मिली, मेरे इंजीनियरिंग कॉलेज की पंजाब शाखा में पढने वाले प्रथम वर्ष के एक छात्र  ने आत्महत्या कर ली, वजह ख़राब रिजल्ट | मात्र १९ वर्षीय पटना के इस छात्र ने शायद कुछ ज्यादा ही हताश होकर ये कदम उठा लिया | भगवान् उसकी आत्मा को शान्ति दे | लेकिन इस घटना ने एक बार फिर सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर क्यूँ ???
        ( ये चित्र फिल्म ३ IDIOTS से लिया गया है )       

                आत्महत्या, ये शब्द कोई नया नहीं है | सदियों से लोग आत्महत्या करते आये हैं, बस परिस्थितियाँ बदल गयी हैं... पहले एक गरीब किसान या मजदूर अपनी गरीबी या भुखमरी से तंग आकर आत्महत्या करता था और आज भारत के श्रेष्ठ संस्थानों में पढने वाले युवा एक ज़रा सी नाकामयाबी से तंग आकर अपनी ज़िन्दगी ख़त्म करने जैसा कदम उठा लेते हैं | अरे आत्महत्या तो चंद्रशेखर आज़ाद ने भी की थी, लेकिन क्या उस परिस्थिति की तुलना आज के परिपेक्ष्य में की जा सकती है ???
                छात्रों और छात्राओं की आत्महत्या की बढती घटनाओं के पीछे सबसे बड़ा कारण है आगे निकलने की होड़, लगातार बढती ये प्रतिस्पर्धा हमारे दिमाग पर इतना प्रभाव डाल रही है कि एक ज़रा सी असफलता और हम उत्साह खो देते हैं...
                वैसे मेरा निजी विचार ये है कि बच्चे अपने रिजल्ट से नहीं बल्कि उसका प्रभाव उनके घर में क्या होगा इस डर में आत्महत्या करते हैं.... आज के समय में माता-पिता कुछ ज्यादा ही सख्त होते जा रहे हैं.... बच्चों को विश्वास में रखना जरूरी है... 
                मैं अभी भी विद्यार्थी जीवन से ही गुजर रहा हूँ इसलिए इस हताशा को समझ सकता हूँ, लेकिन इस हताशा को इतना भी बढ़ने नहीं दिया जाए कि आत्महत्या की नौबत आये... अपने लिए कुछ हलके फुल्के लम्हें तलाश करें, अगर आपका कोई शौक हो तो उसको भी थोडा समय दें... बाकी आप लोग खुद समझदार हैं...
               
                अंत में सभी माता-पिताओं से भी एक गुज़ारिश करना चाहूँगा, अपनी व्यस्त दिनचर्या में से थोडा समय अपने बच्चों के लिए भी निकालें, अपनी आकाँक्षाओं और सपनों का बोझ उनपर न डालें.. उनको भरोसे में लें, उनको ये विश्वास दिलाएं कि किसी भी परीक्षा का परिणाम उनकी ज़िन्दगी से ज्यादा कीमती नहीं है | याद रखें ये ज़िन्दगी अनमोल है, और इसको संभाल कर रखने में उनकी मदद करें......

******************************************************************************
चलते चलते ये गीत भी सुन लें...

20 comments:

  1. सही कह रहे शेखर भाई , थोडी जिम्मेदारी माता-पिता की बनती है कि वे अपने बच्चो के उपर अपनी महत्वाकाशांए ना थोपे, उनके सामने कभी ऐसा माहौल न बनाये कि बच्चा ये सोचे कि रिजल्ट खराब आयेगा तो पता नही क्या हो जायेगा।

    सार्थक लेख के लिए शुभकामनाये

    ReplyDelete
  2. जीवन से बड़ा कुछ नहीं होता !

    बेहद दुखद घटना के जिम्मेवार, उस बच्चे के आसपास का माहौल और सामाजिक तनाव अवश्य होगा ! आज विद्यार्थियों को इस तनाव तथा अपेक्षाओं से मुक्त कराने की आवश्यकता है और यह जिम्मेवारी हम सबकी बनती है !

    शुभकामनायें शेखर !

    ReplyDelete
  3. जीवन से बड़ा कुछ नहीं..सुन्दर पोस्ट.

    'पाखी की दुनिया' में आजकल आप नहीं दिखते हैं.

    ReplyDelete
  4. माता पिता को वक़्त देना चाहिए , इसके साथ साथ यह भी सोचना चाहिए कि हमें जिस कामयाबी के लिए भेजा गया है , उसमें भले ही हम अपना सौ प्रतिशत न दें , परन्तु ७५% तो दें . इस मृत्यु ने माँ-बाप को किस हालत में खड़ा कर दिया, यह भी विचारणीय बात है . मैं देख रही हूँ कि बच्चे पढ़ने से अधिक मस्ती में वक़्त दे रहे .... जो बच्चा कॉम्पिटिशन से यहाँ तक आया है, वह खराब कैसे करेगा ... माहौल का असर लेते समय घर के प्रति भी सोचना चाहिए . उस बच्चे की मौत ने वही दर्द दिया है, जो उसके माता पिता को हुई , पर इस सच को नज़रअंदाज करना उचित नहीं

    ReplyDelete
  5. hamare yehan paper me is prkarki roj khabre chhapti hai sach me dekha jaye to jivan ko behatar banane ke liye liksha hai na ki suicide karne ke liye,
    iske liye bahut saare log jimmevar hai....
    bahut achhi lagi post....

    ReplyDelete
  6. शेखर जी, छुटपन में ही बड़ों वाली बातें!!
    आज़ छुटपन यदि इतना समझदार है तो
    'बडप्पन' को खबरदार होकर अधिक समझदारी दिखानी ही चाहिए.

    ReplyDelete
  7. परिक्ष शुरू हुई थी कुछ श्रेष्ठ निकलने के लिए लेकिन अब तो रोग बन गया है ये... पता नहीं दोस किसका है ....बच्चे का या माता पिता का कहना मुश्किल है ... आज कल ब्रांडेड कंपनियों में ओउकरी करना और ब्रांडेड कालेज में पढना हर घर का सबसे बाद अफएसन है..सीटें सिनित हैं...ऐसे में इस देश की इतनी बड़ी जनसँख्या पता नहीं इन ब्रांडेड कालेज में कैसे समयाएगी ...और दूसरी बात की हमारा समाज खुद यही चाहता है सबकुछ ब्रांडेड .
    कंपनिया आपको तभी नौकरी देंगी जब आप ब्रांडेड कालेज से पढ़ लिख कर एक सपने जैसा मार्क्स अपने मर्क्सित पर टांग कर लायें..पता नहीं इस हालात में बच्चे और उनके माता पिता क्या करें मेरी समझ से बाहर होता जा रहा है...

    ReplyDelete
  8. जीवन से बड़ा कुछ भी नहीं होता है|
    ऐसी दुर्घटनाओं के लिए बच्चे, माँ, बाप और आस पास का माहौल सभी जुमेवार हैं|

    ReplyDelete
  9. ऐसी घटनाएं व्यथित करती हैं !
    दोषी कौन है ?
    नवयुवक, उसका परिवार - समाज या शिक्षा व्यवस्था ?
    हर तरफ बस आगे बढ़ने की होड़ लगी है ! बचपन से ही रेस में लगा दिया जाता है ! बढ़ते तनाव की परिणति ऐसी ही दुखद घटनाओं को सामने लाती है !
    -
    -
    फ़िल्म 'थ्री इडियट' में राजू रस्तोगी ने भी तनावग्रस्त होकर जीवन से पलायन का रास्ता चुना था ! दोनों पैर तुडवा कर राजू को तो जीवन की सार्थकता समझ में आ गयी थी लेकिन जिन्दगी हर एक को ऐसा अवसर नहीं देती !

    ReplyDelete
  10. behatreen...........
    shekhar mere blog ka rasta bhul gaye ho kya.....:))

    ReplyDelete
  11. सार्थक पोस्ट.... माता पिता और समाज की सही सोच जो बच्चों पर हद से अपेक्षाओं का बोझ ना लादें ...ही कुछ बदलाव ला सकती है...

    ReplyDelete
  12. जीवन से बड़ा कुछ नहीं. सार्थक पोस्ट.

    ReplyDelete
  13. नेक सलाह, लेकिन आजकल बच्‍चों का बहुत कम समय माता-पिता के साथ बीतता है.

    ReplyDelete
  14. राहुल सर...
    केवल समय बिताना ही ज़रुरत नहीं, इस एहसास की नीव तो बचपन में ही रखी जाती है... बचपन में ही अगर बच्चे को भरोसे में लिया जाए की कोई भी परेशानी होने पर वो डरे नहीं बेझिझक माता-पिता के पास जाए तो शायद ये बढती आत्महत्याएं रूक सकें...

    वैसे ये बढ़ते एकल परिवार ही इस समस्या की जड़ हैं, दंपत्ति पैसे कमाने में इतने मशगूल हो गए हैं कि बच्चों को भगवान् भरोसे छोड़ दिया है इसलिए कहीं वो आत्महत्या कर रहे हैं तो कहीं हत्या....

    ReplyDelete
  15. आदरणीय शेखर सुमन भाई,
    आपने तो बहुत लाजवाब लेख लिखा है और इश्वर करे आपकी कलम की धार यूँ ही बनि रहे और मेरी शुभकामनाऐं!

    ReplyDelete
  16. आदरणीय शेखर सुमन भाई,
    यदि आपको मेरी कोई बात बुरी लगी हो या मेरे लेखन में कोई त्रुटी हो तो अवश्य सूचित करना!
    मेरा उदेसीय सिर्फ इतना है की गौ माता की ह्त्या बंद हो! और कुछ नहीं!
    आपके सहयोग एवं स्नेह का सदैव आभरी हूँ आपका सवाई ….. धन्यवाद.

    ReplyDelete
  17. अपनी व्यस्त दिनचर्या में से थोडा समय अपने बच्चों के लिए भी निकालें, अपनी आकाँक्षाओं और सपनों का बोझ उनपर न डालें..

    I agree .

    .

    ReplyDelete
  18. मैंने भी कुछ दिनों पहले इस बिषय पर लिखा था आप यहाँ पढ़ सकते हैं

    ReplyDelete
  19. जस्ट अभी में कोई कलम पड रहा था नशे के बारे में
    यह सब अव्साब के कारण होता है अब सोचना यह है की
    अवसाद कहा से आता है यह सब होर है एक दुसरे से आगे निकल भागने की
    आपना गुस्सा आपने मासूम बच्चो पर निकलने की सजा है बच्चो को लगने
    लगता है की अगर हमने बेस्ट नहीं किया तो फिर कुछ नहीं किया

    ReplyDelete

Do you love it? chat with me on WhatsApp
Hello, How can I help you? ...
Click me to start the chat...