Sunday, June 19, 2011

पापा, हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजियेगा....

             आज फादर्स डे है, कितनी अजीब बात है सारी चीजों के लिए हम महज एक दिन मुक़र्रर कर देते हैं.. उस दिन उन्हें याद कर लिया और बस... सुबह से कई फेसबुक स्टेटस, फोटो टैग्स, और कईं ब्लॉग पोस्ट देखी सभी अपने अपने पिता को याद कर रहे हैं, सब एक दूसरे को हैप्पी फादर्स डे कह रहे हैं कोई खुश है किसी की आँखें नम हैं...क्या ये याद सिर्फ आज के दिन ही आती है... और याद आने पर हम करते ही क्या हैं, थोडा सोचते हैं और दो बूँद आंसू बहा लिए और फिर निकल पड़े अपने कॉलेज, दफ्तर की तरफ... कितने कमजोर हो गए हैं हम, ज़िन्दगी में आगे निकलने की होड़ में उन्हें ही पीछे छोड़ते जा रहे हैं जिनके कारण हमारा वजूद है... कुछ लोग इसे प्रैक्टिकल होना कहते हैं तो कुछ लोग मजबूरी का नाम देकर अपनी जिम्मेदारियों से बचते दिखाई देते हैं | मैं भी तो उसी श्रेणी में हूँ...मजबूर...
             मेरे हर नाज़ुक दौर पर पापा हमेशा मेरे साथ रहे, कभी मुझे कमजोर नहीं पड़ने दिया, मुझे इस दुनिया में जीने और लड़ने के काबिल बनाया.... आज भी जब घर फोन करता हूँ, उनका हाल समाचार पूछता हूँ तो, वो बस यही कहते हैं " हम तो ठीक्के हैं, तुम सुनाओ नौकरी कैसी चल रही है, तबियत ठीक है न, कोई परेशानी तो नहीं..." फिर सारा समय मेरे बारे में ही बातें होती रहती हैं... पापा ने कभी ये नहीं कहा कि वो कैसे हैं उनकी तबियत ठीक है या नहीं, लेकिन आज भी उनकी आँखों में कहीं न कहीं ये उम्मीद ज़रूर दिखती है कि मैं उनके पास ही रहूँ हमेशा, मैंने कोशिश भी तो कि लेकिन ये कमबख्त ज़िन्दगी भी न, न जाने कितने पाप करवाती जाती है |आज जब वो बूढ़े हो चले हैं, बीमार रहते हैं, मैं चाह कर भी उनके पास नहीं हूँ... इस पाप का बोझ हर पल और भारी होता जा रहा है, शायद खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाऊंगा, एक आत्मग्लानि सी मन को खाए जा रही है...
               मैं अपने पापा को कभी मिस नहीं करता बस मन ही मन उनसे माफ़ी मांगता रहता हूँ... पापाजी, हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजियेगा...
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बहुत पहले एक कविता लिखी थी....         

                       तुम कहाँ हो....

तुम शायद भूल गए वो पल,
जब उन नन्हे हाथों से
मेरी ऊँगली पकड़कर तुमने चलना सीखा था,
अपने पहले लड़खड़ाते कदम मेरी तरफ बढ़ाये थे.....
तुम शायद भूल गए...
जब मैं तुम्हारे लिए घोडा बना करता था
तुम्हारी हर बेतुकी बातें सुना करता था,
परियों कि कहानियां सुनते सुनते
मेरी गोद में सर रख कर न जाने तुम कब सो जाते थे,
जब मेरे बाज़ार से आते ही
पापा कहकर मुझसे लिपट जाते थे,
अपने लिए ढेर सारे खिलोनों कि जिद किया करते थे.
तुम शायद भूल गए...
जब दिवाली के पटाखों से डरकर मेरी गोद में चढ़ जाया करते थे,
जब मेरे कंधे पर सवारी करने को मुझे मनाते थे,
जब दिनभर हुई बातें बतलाया करते थे...
आज जब शायद तुम बड़े हो गए हो,
ज़िन्दगी कि दौड़ में कहीं खो गए हो,
आज जब मैं अकेला हूँ,
वृद्ध हूँ, लाचार हूँ,
मेरे हाथ तुम्हारी उँगलियों को ढूंढ़ते हैं,
लेकिन तुम नहीं हो शायद,
दिल आज भी घबराता है,
कहीं तुम किसी उलझन में तो नहीं ,
तुम ठीक तो हो न ....              

36 comments:

  1. पापाजी, हो सके तो मुझे भी माफ़ कर दीजियेगा...

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  2. पापाजी, हो सके तो मुझे भी माफ़ कर दीजियेगा...

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  3. बहुत मजबूर हैं हम सब....
    पता नहीं सारी मजबूरियों के हमीं क्यों शिकार हैं....? फिर भी तुमने कोशिश तो की दोस्त लोग कोशिस भी नहीं करते....
    शुभकामनायें...पिताजी स्वस्थ रहें....

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  4. पापाजी, हो सके तो मुझे भी माफ़ कर दीजियेगा..
    दिल से लिखी गयी रचना, आभार....

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  5. दिल को छु लेने वाली कविता ...शुभकामनायें!

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  6. बाबूजी को हमारा प्रणाम !
    यकीन नहीं होता इतनी बढ़िया कविता लिखने वाला शेखर इतना बड़ा मुर्ख भी हो सकता है ... अरे बेटा ... कोई भी पिता अपने पुत्र से ज्यादा देर तक नाराज़ रह ही नहीं सकता ... और यह सुनी सुनाई बात नहीं है ... अपने अनुभव से कह रहा हूँ ! बस अपना ख्याल रखो ... जैसा पापा ने कहा है !

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  7. Really touchy bhaiya
    Dil ko chhu gai yah post apki aisa nahi hai ki aapne bahut sahitykari ka istemaal kiya ho ya shabdon ke chayan par bahut dhyan diya ho balki dil ko chhua is rachna ne kyunki ye sachche dil se nikle shabd the aur dilki aawaz dil tak pahunchti hin hai
    aapki yah post padh kar main bhavishy ki sochne lagi majbur kiya is post ne sochne par ki jab mere mummy papa budhe honge kya us waqt main bhi itni hin majbur rahungi??

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  8. माता पिता कभी अपने बच्चों से नाराज नहीं होते बच्चों कि खुशी में ही खुश होते हैं.गिल्टी मत कीजिये बस उनके लिए कुछ करने की नियत रहे यही उनके लिए काफी है.

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  9. शायद इस माता-पिता के रिश्ते की खासियत ही यही है कि बच्चों के बचपने में ही उनकी अपनी दुनिया सिमटी रहती है .... जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं कई चीज़ें उन्हें आकर्षित करती ,व्यस्त रखती हैं और वो अपने अभिभावकों पर अधिक ध्यान नहीं दे पाते क्यों कि उनके जन्म के पल से ही ध्यान रखने का काम अभिभावकों का ही रहता है .... जब उनका जीवन थोड़ा व्यवस्थित होता है और क्रमश:माता-पिता अशक्त होने लगते हैं तब बच्चों को उनका ध्यान आता है ... बस जैसे ही बच्चे ये समझ जाते हैं माता-पिता संतुष्ट हो जाते हैं वो इससे ज्यादा कुछ नहीं चाहते ....शुभकामनायें!

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  10. shekhar ...guilt me jina kitna dhukhdayi hota hai ..achhi trah janti hun.... kya kares samay laut ke nahi aata...

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  11. माता पिता तो तो बच्चों की ख़ुशी में ही खुश रहते है|

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  12. दिल से लिखी रचना. सुंदर अभिव्यक्ति. आभार...

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  13. मर्मस्पर्शी रचना.
    ...........
    बच्चों से माता-पिता कभी नाराज़ नहीं होते.

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  14. भावुक कर गये.....

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  15. सच बात कही है आपने. पितृ दिवस पर खूबसूरत रचना बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.

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  16. पिता,बस नाम ही काफी है....

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  17. हम अक्सर अपने बड़ों के प्रति दोषी होते हैं और हमें यह तब महसूस होता है जब हमारे बच्चे हमारे साथ ऐसा ही करते हैं ! शुभकामनायें !!

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  18. बहुत ही भावुक करने वाली बात लिखी तुमने शेखर
    आज के दैनिक जागरण में ये पोस्ट "फ़िर से " के लिए चुनी गई है और आज प्रकाशित है

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  19. ‎अजय भिया, थैंकू...आप नहीं बताते तो शायद पता भी नहीं चलता...

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  20. बच्चों से माता-पिता कभी नाराज हो ही नहीं सकते....
    दिल से लिखी रचना...

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  21. पिता तो नाराज नही होंगे पर कभी कभी समय निकाल कर मिलना हाल चाल पूछना चाहिये । साथ न रह सको तो वे भी आपकी मजबूरी समझते है ।

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  22. कल पापा का फोन आने पर मेरी आवाज से समझ गए कि मैं कुछ परेशान हूँ.. बहुत पूछा, मैंने कारण नहीं बताया.. मेरे घर के सामने वाले पेड़ पर बैठे कौवे की आवाज सुनी उन्होंने, और मुझे हंसाने कि नियत से कौवे की नक़ल करने लगे.. कांव कांव.. मैं हँसने के बजाये आँखें नम कर बैठा, कि इस उम्र में भी अपने बच्चों को हंसाने के लिए खुद बच्चे बने जा रहे हैं..

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  23. प्रशांत भाई...
    कुछ चीजें होती ही ऐसी हैं...अजीब ही फलसफा है यहाँ का..:(

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  24. मन को छू गई ये रचना..बहुत मार्मिक..शुभकामनाएँ..

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  25. bhavuk abhivyakti ...
    badhai evam shubhkamnayen.

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  26. मार्मिक रचना.

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  27. tumhari post ne aankho mei ansu laa diya....snhe bhara aashish

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  28. बहुत मार्मिक लिखा है दोस्त!

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  29. mai kaise btau aap kitna acha likhte hai,, m speechless with tears in my eyes.. :(

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    1. well !!! :) for appreciation and :( for your tears....

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  30. sunder lekh va rachna.

    shubhkamnayen

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  31. शायद ये पोस्ट पढ़ के कुछ कहना ज़रूरी नहीं...बस महसूसना भर है...:)

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