Friday, October 28, 2011

तुम्हारी ज़िन्दगी एक बंद कमरा लगती है...

        इन दिनों तुम्हारी ज़िन्दगी में उलझा हूँ, जाने कितनी पहेलियाँ कितने अनकहे से सपने दिखते हैं... अपने आपको जैसे एक बंद कमरे में कैद करके बैठी हो, खिड़कियाँ भी बंद हैं, कोई डर है कि कहीं कोई चुपके से झाँक न ले, कहीं चुरा न ले उन सपनो को... तुम्हें शायद खबर नहीं कि ये कमबख्त आखें सब कुछ कह जाती हैं, कितना ही समझा लो, संभाल लो, झाँकने वाले झाँक ही लेते हैं इन परदों के पीछे... और हम जैसे बदतमीज़ दोस्त तो कभी मौका नहीं छोड़ते न, चाहे कितना भी छुपा लो... 
        जितनी ही बार तुमसे मिलता हूँ, उतनी ही बार तुम्हें तन्हा देखता हूँ, जैसे आस पास की दुनिया से कहीं दूर ही चलती रहती हो... कई बार तुमसे पूछा लेकिन शायद अभी तक तुम्हारे मन में मैं अपने लिए वो भरोसा नहीं जगा पाया हूँ...
        जाने कब तक मुझे यूँ ही दूर रखोगी अपनी ज़िन्दगी से, एक न एक दिन मना ही लूँगा तुम्हें ... तुम भी सोचती होगी अजब पागल लड़का है, लेकिन क्या करें मुझे यूँ बंद किताबों के पन्ने  अच्छे नहीं लगते,  इस अकेलेपन से नफरत सी है मुझे, कुछ ज्यादा ही घुट चूका हूँ इसमें मैं ... इसलिए अब कोई भी अकेला यूँ परेशान सा इंसान अच्छा नहीं लगता... 
         बस इसे मेरी जिद समझो, बेवकूफी या फिर पागलपन... अपने सपने सच करना इंसान के बस में है या नहीं ये तो नहीं पता लेकिन इतना ज़रूर जानता हूँ दूसरों के सपनो को पूरा करने में उनकी मदद जरुर की जा सकती है,  और यकीन मानो मुझे इसमें ज्यादा ख़ुशी मिलती है...मैंने कहा था न मुझे दूसरों के सपनो में रंग भरने का शौक है...
         और ज्यादा क्या कहूं, बस यूँ ही तुम्हारी ज़िन्दगी के बंद दरवाज़े पर खड़ा मिलूंगा, जब जी चाहे दरवाज़ा खोल लेना... हाँ थोडा जल्दी करना मुझे ज्यादा इंतज़ार करना अच्छा नहीं लगता, दरवाज़ा तोड़ के भी आ सकता हूँ अन्दर... :)

Monday, October 24, 2011

चलो छोड़ो हटाओ...

                 आज तक इस ब्लॉग पर मैंने प्यार के बारे में न जाने क्या क्या लिखा है, पर आज जाने-अनजाने  में कुछ समझने को मिला है मुझे  | इस दुनिया में प्यार ऐसा कुछ भी नहीं होता, सब बेवकूफी है, बकवास है ... एक मृगतृष्णा है जिसके पीछे हम बेवकूफों की तरह भागते रहते हैं, ये न आज तक किसी को नसीब हुआ है और न ही कभी होगा... हो सकता है आपमें से कई लोग मेरी इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते हों लेकिन मैंने जितना जाना है शायद यही सच है... हम तो एक बस एक मशीन हैं, बस अपने लिए जीते हैं, अपना फायदा देखते हैं और उस फायदे को कभी रिश्ते, कभी दोस्ती और कभी प्यार का नाम दे देते हैं... ये प्यार-लगाव की बातें सुनने में तो बहुत शायराना ख़याल है, लेकिन ये तो बस एक सपना है और उससे ज्यादा कुछ भी नहीं.... न जाने कितने सालों से सोया पड़ा था मैं भी, शायद एक सपना देख रहा था, उससे जाग गया हूँ... 
                 मैंने सुना था प्यार में बहुत ताकत होती है लेकिन इस बात को एक बार फिर गलत साबित होते हुए देख रहा हूँ, अब कभी इस प्यार से रूबरू नहीं हो पाऊंगा... चलो छोड़ो हटाओ... ज़िन्दगी के कुछ अजीबोगरीब दौर से गुजर रहा हूँ, पता नहीं फिर कुछ लिखने की हिम्मत कब तक जुटा पाऊंगा, पिछले दिनों कुछ दो लाईना लिखी थीं जो फेसबुक तक ही सिमट कर रह गयीं, उन्हें आपकी नज़र रख रहा हूँ...
              कुछ ज्यादा ही मांग बैठे ज़िन्दगी तुझसे हम,
              अब तो बस जीने के दो बहाने दे दे...
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              न जाने किस मोड़ पर ले आई है ये ज़िन्दगी,
              मैं रोज वापस जाने का रास्ता ढूँढता हूँ  ...
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              हर रोज हम भीड़ में वो चेहरा पुराना ढूँढ़ते हैं,
              जब होते हैं तन्हा तो रोने का बहाना ढूँढ़ते हैं...
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                  रोता खुदा भी है इस दुनिया की हालत पर
              वरना यह बारिश का पानी इतना नमकीन क्यूँ है..
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