Friday, July 20, 2012

बावरी सी हो तुम...

तुम तो बावरी नदी सी हो
कभी तो होती हो शांत
फूलों की पंखुड़ियों सी,
और कभी हो जाती हो चंचल,
जैसे शाम में समुद्र की लहरें...

तुम तो उस पतंग जैसी हो,
जो उड़ना चाहती है आसमान में
और थामे हो मुझे
एक डोर की तरह...

तुम तो पगली सी हो,
हर शाम बैठे बैठे
रेत के महल बनाती हो
लगाती हो उसमे एक चारपाई,
और मेरे ख्यालों को ओढ़कर प्यार से सो जाती हो...

तुम तो खुशबू बिखेरती उस हवा सी हो
घर के पीछे वाले आँगन में
प्यार के फूल लगाती हो
और हर सुबह उन प्यार भरे फूलों का एक गुलदस्ता
मेरे सिरहाने रख कर जाती हो...

और मैं...
मैं तो हमसफ़र हूँ तुम्हारा
हर पल तुम्हें ही जीता रहता हूँ,
हाथों में हाथ लिए
तुम्हें आसमान की सैर कराता हूँ,
तुम हंसती हो, खिलखिलाती हो
इतराती हो, इठलाती हो....
कभी कभी शरमा कर खुद में सिमट जाती हो...

मैं तो वो आवारा बादल हूँ
जो अपनी बरसात अपने संग लिए चलता है..

21 comments:

  1. bahut acha laga padhkar....mai to ekdum khush ho gai....:-)

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  2. कविता और चित्र दोनों एक से बढ़ कर एक.

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  3. अद्भुत सुन्दर रचना! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है! शेखर भाई

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  4. कोमल भावों से सजी ..
    ..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

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  5. बावरी और आवारा बादल दोनों ही एक से बढ़कर एक हैं... लाज़वाब प्रस्तुति

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  6. बहुत सुन्दर....

    अनु

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  7. नहीं अलग अस्तित्व तुम्हारा,
    हम माला में गँुथे हुये तृण।

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  8. बहुत सुन्दर
    प्यारे से अहसास
    और कोमल भाव से सजी बहुत सुन्दर रचना....
    :-)

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  9. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा आज रविवार के  चर्चा मंच  पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  10. जय हो !

    बावरी पगली पतंग बना के उड़ा दिया
    कुछ नहीं बोलेगी करके अपने को भी
    कविता के अंत में आवारा बादल दिखा दिया ।

    अच्छी है !

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  11. काव्य की मर्म के साथ भवनिष्ठता प्रशंसनीय है ....

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  12. सुन्दर चित्र को सजीव करती हुई रचना बहुत सुन्दर

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  13. मैं तो वो आवारा बादल हूँ
    जो अपनी बरसात अपने संग लिए चलता है..

    बहुत सुंदर विचार. अच्छी कविता.

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  14. कितनी खुब्सुराते से भावों को पिरोया है आपने !
    बहुत खूब ..

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  15. मैं तो वो आवारा बादल हूँ
    जो अपनी बरसात अपने संग लिए चलता है..

    बहुत सुंदर प्रस्‍तुति !!

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  16. वाह ... अनुपम भाव लिए बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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