Thursday, June 28, 2012

आप अपने बच्चों से प्यार नहीं करते क्या...

               क्या आपको याद है थियेटर या सिनेमा हॉल में जब आपने पहली फिल्म देखी थी तब आपकी उम्र क्या थी... खैर छोडिये अगर याद नहीं है तो...  अक्सर मैं देखता हूँ, कई लोग गोद में छोटे बच्चों को लेकर फिल्में देखने चले आते हैं.. क्या आपने भी कभी ऐसा किया है... अब आप पूछेंगे भला इसका इस पोस्ट से क्या लेना देना है... जी आपने सही कहा इसका इस पोस्ट से कोई लेना देना नहीं है लेकिन इस बात का बच्चों की सेहत से ज़रूर लेना देना है... इस तरह की लापरवाही भरी हरकत का बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में गहरा प्रभाव पड़ सकता है...
             पहले शारीरिक पहलू सोचिये, बच्चों के कान के पर्दे कितने नाज़ुक होते हैं, बिलकुल फूल की पंखुड़ियों की तरह... कई फिल्मों में बीच बीच में कानफाडू शोर या संगीत होता है... इस शोर के प्रभाव से बच्चों के कान के पर्दे फट सकते हैं, अगर भगवान् की दया से न भी फटें तो ये कमज़ोर हो सकते हैं, जिससे उनके सुनने की शक्ति कमज़ोर हो सकती है... लगातार अँधेरे में इतने बड़े रौशनी से भरे स्क्रीन को देखने से उनकी आँखों पर भी प्रभाव पड़ सकता है...
फिर उनके मानसिक प्रभावों पर भी ध्यान दीजिये, बच्चे आखिर क्या सीखते हैं... वही जो वो अपने आस पास देखते हैं... आस पास के माहौल को अपना पथप्रदर्शक मानते हुए ये नादान सी जानें आज कल की फिल्मों से क्या सीख रही हैं कभी आपने इस बारे में विचार किया है... आज कल की फिल्में कितनी भी पारिवारिक हों ये इन छोटे छोटे बच्चों के बालमन को ध्यान रख कर नहीं बनायीं जातीं.... फिल्मों में होने वाली मार-धाड़, अश्लील दृश्य आपके बच्चे को एक गलत दिशा में सोचने के लिए प्रेरित कर सकते हैं...
               आपने फिल्मों के सर्टिफिकेट्स के बारे में तो ज़रूर सुना होगा... केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा फिल्मों को सामान्यतः तीन तरह के सर्टिफिकेट दिए जाते हैं... "U" "U/A" और "A"...
     "U" सर्टिफिकेट उन फिल्मों को दिया जाता है जो आप 4 साल से ज्यादा की उम्र के बच्चों के साथ देख सकते हैं, बहुत कम ही फिल्मों में आपने ये सर्टिफिकेट देखा होगा.. अभी की फिल्मों में फरारी की सवारी  ऐसी ही फिल्मों में से एक है... लेकिन इस तरह की भी फिल्में 4 साल से छोटे बच्चों के साथ देखने से बचना ही चाहिए...
          उसके बाद नंबर आता है "U/A" सर्टिफिकेट वाली फिल्मों का.. इस श्रेणी की फिल्मों के कुछ दृश्यों मे हिंसा, अश्लील भाषा या यौन संबंधित सामग्री हो सकती है, इस श्रेणी की फिल्में केवल 12 साल से बड़े बच्चे किसी अभिभावक की उपस्थिति मे ही देख सकते हैं... मतलब ये फिल्में भी आपको 12 साल से छोटे बच्चों को नहीं दिखानी चाहिए.. आज कल बनने वाली अधिकांशतः फिल्में इसी श्रेणी की होती हैं...
        तीसरी श्रेणी है "A" .. यह वह श्रेणी है जिसके लिए सिर्फ वयस्क यानि 18 साल या उससे अधिक उम्र वाले व्यक्ति ही पात्र हैं...
              चूंकि वो नन्हे बच्चे कुछ बोल नहीं सकते तो उनकी तरफ से मैं आपसे बस इतनी सी गुज़ारिश करना चाहूँगा, अपनी खुशियों का थोडा बलिदान और करें... और बच्चों के साथ फिल्में देखने न जाएँ और न ही घर पर ही उन्हें इस तरह की फिल्में देखने दें... अपनी आने वाली पीढ़ियों का ख़याल करें...

Sunday, June 17, 2012

पापा, आपसे माफ़ी मांगता ही रहूँगा...

             भले ही मैं इस तरह के ख़ास दिनों में कोई यकीन नहीं रखता, मेरे लिए पापा की बातें करने के लिए कोई एक दिन काफी नहीं हो सकता... लेकिन जब आस पास सब एक दूसरे को फादर्स डे की मुबारकबाद देते नज़र आते हैं तो कुछ-न-कुछ सोचने पर मजबूर हो ही जाता हूँ... जैसे फादर्स डे कोई त्यौहार हो गया हो दीवाली की तरह, हैप्पी दिवाली कहा पटाखे फोड़े, मिठाई खायी... और अगली सुबह उन फोड़े हुए पटाखों के कचरे को झाड़ू मार कर साफ़ कर दिया... मेरे ख़याल से फादर्स डे का मतलब तो तभी सफल होगा जब हर एक संतान ज़िन्दगी भर अपने पिता के पास रहे उनके बुढापे के उन लड़खड़ाते हुए क़दमों में उनका हाथ मजबूती से थामे रहे, क्यूंकि उन्हीं हाथों को पकड़ कर हमने भी कभी अपने पहले लड़खड़ाते कदम बढ़ाये थे...
पापा, मेरे भतीजे के साथ...
" आप कभी मेरे साथ भी ऐसे ही खेलते होंगे न... :-)"
कई कई बातें जो मैं और किसी से नहीं कह पाता, आईने के सामने जाकर बयान कर देता हूँ... अक्सर ये एकालाप मुझे खूब रुलाता है... पता नहीं क्यूँ बचपन में मैं आपके उतना करीब नहीं आ पाया, शायद आपका यूँ सख्त और अनुशासनप्रिय होना मुझे हमेशा आपसे डरा कर रखता था... फिर जैसे जैसे इस दुनिया की भागदौड़ में खुद को खड़ा करने की जद्दोजहद करने लगा, इस कठिन डगर पर चलने की तैयारी करने लगा तब एहसास हुआ कि आपकी वो सख्ती, वो डांट सिर्फ और सिर्फ मेरे भले के लिए थी... आपकी सिखाई हुयी हर वो बातें जब आज ज़िन्दगी के कठिन मोड़ पर मेरा हाथ थामे रहती हैं तब मालूम पड़ता है आप कितने ख़ास हैं मेरे लिए... पापाजी... ये वो शब्द हैं जिससे मुझे हमेशा इस बात का एहसास रहता है कि इस दुनिया के संघर्ष में, इसकी पथरीली और जलन भरी सड़कों पर लड़ने के लिए मैं अकेला नहीं हूँ कोई और भी उस भगवान् के प्रतिरूप में मेरा हाथ मजबूती से थामे एक सारथी की तरह मुझे हर उस मंजिल तक पहुंचाने की कोशिश में है, जिस मंजिल के हज़ार सपने मेरी आखों ने बुने हैं... आप मेरे लिए मेरे लहू में दौड़ते हुए जीवन से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं...
            जानता हूँ आपने मेरे लिए कई सपने देखे हैं... इन सपनों में आपका कोई भी स्वार्थ नहीं था, हर उस स्वार्थ से दूर आपने पूर्ण समर्पण किया अपनी इस कीमती पौध को हरा भरा करने की... ये पौधा आज अपनी उस ज़मीन से अलग होकर बिलकुल भी खुश नहीं है... ये पैसे कमाने की भागदौड़ में आपसे दूर हो गया... ये आत्मग्लानि बढती ही जा रही है, शायद कभी ख़त्म नहीं होगी... कभी कभी सोचता हूँ मुझे पढ़ा लिखा कर आपको क्या मिला, घर में कभी न ख़त्म होने वाला सन्नाटा... अकसर मुझे आप अपने सपनों में दिखाई देते हैं, उस सन्नाटे भरे आँगन में कुर्सी पर बैठे हुए, आपकी इन बूढी आखों में जैसे एक कभी न ख़त्म होने वाला इंतज़ार है... मन करता है सब कुछ छोड़-छाड़ कर आपके पास चला आऊं, लेकिन वो भी नहीं कर पाता... पापा, ये सपने मुझे बहुत परेशान करते रहते हैं... या तो मैं बाकी लोगों की तरह कभी प्रैक्टिकल नहीं बन पाया या फिर अन्दर से बहुत कमजोर हो गया हूँ... हालांकि आपके पास लौट आने की कोशिश जारी है लेकिन बस यही चाहता हूँ कि मैं आने वाले हर एक युग में, हर एक जन्मों में आपका ही बेटा बनूँ ताकि जो अगर कुछ आपके लिए इस जन्म में कर पाने में अक्षम हूँ आपके लिए वो हर कुछ कर सकूं...
           आपकी सख्ती के कारण आप मुझे क्रूर नज़र आते थे... इसी मुगालते के कारण आपसे कभी प्यार से अपने दिल की कोई बात नहीं कह पाया, ये भी नहीं की मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ और आप मेरे लिए दुनिया के सबसे बड़े आदर्श हैं...पिछली बार की ही तरह इस बार भी, पापाजी... हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजियेगा...

Friday, June 15, 2012

इससे पहले कि तुम मुझसे कहीं दूर चली जाओ, जाते जाते मुझे एक बार गले से लगा लेना..



जाने क्यूँ जैसे उम्मीदें ख़त्म होती जा रही हैं... कलेंडर की ये बदलती तारीखें, एक एक दिन जैसे फास्ट-फॉरवर्ड मोड में हो... हर सुबह एक नयी उम्मीद के साथ शुरू होती है और रात ढलते ढलते दिल बुझता जाता है, जाने क्या होगा... जाने क्या होने वाला है... ज़िन्दगी की ये सड़क जैसे अगले मोड़ पर थम सी जाने वाली है... हर रोज आँखों से बहते इस इंतज़ार में आगे के रास्ते बह चुके हैं....
तुम्हारी ज़िन्दगी के बंद कमरे को खोलते खोलते जाने कब और कैसे मेरी दुनिया भी उसी कमरे में सिमट के रह गयी.. ये बंद कमरा मुझे अपना सा लगने लगा था, अगर तुम वो कमरा भी छोड़ कर चली गयी तो मैं भी उसके दरवाज़े हमेशा के लिए बंद कर दूंगा... तुम्हारे इस कमरे में खुद को बिखरने से शायद बचा सकूं.... लेकिन अगर ऐसा न हो पाया तो गर कभी हो सके तो उस कमरे में आग लगा देना, यूँ टूट कर बिखर जाने से बेहतर ही होगा कि मैं ना ही रहूँ....
याद है तुम्हें जब पिछले साल के आखिरी दिन तुम्हें अपनी गुजारिश का लिहाफ दिया था, लेकिन शायद उसमें तुम्हें मेरे प्यार की वो गर्माहट महसूस नहीं हुई जो इतनी शिद्दत से तुम्हारे लिए बचा कर रखी थी... मुझे पता है तुम भी सोचती होगी मैं पागल हूँ जाने किस सपने की तलाश में यूँ आसमान की तरफ ताकता रहता हूँ... कभी कभी लगता है मेरे सपने भी उन तारों की तरह हो गए हैं, जो देखने में तो बहुत खूबसूरत हैं लेकिन मैं चाह कर भी उनको नहीं छू सकता उनको अपनी ज़िन्दगी की चादर पर नहीं टांक सकता ... मुझे माफ़ कर देना, तुम्हारे लाख समझाने के बावजूद भी मैं कभी खुश नहीं रह पाऊंगा... इस अकेली बेतुकी ज़िन्दगी को जीने से पहले बस एक आखिरी गुज़ारिश करना चाहता हूँ... पता नहीं इस तेज़़  धूप में में मेरी इस गुजारिश की बूँदें तुम्हें भिगो पाएंगी या नहीं... फिर भी  इससे पहले कि तुम मुझसे कहीं दूर चली जाओ, जाते जाते मुझे एक बार गले से लगा लेना... शायद इस एहसास के सहारे आने वाले सालों और जन्मों की साँसों को तुम्हारे नाम कर सकूं....

डायरी के पन्नो से :- 12-04-2012

Sunday, June 10, 2012

एक टुकड़ा इश्क तेरा और एक चुटकी चाहत है मेरी...:-)

       जाने कैसे ज़िन्दगी के इन अनजान रास्तों में भटकता भटकता तुम्हारे उस बंद कमरे के दरवाज़े तक आ पहुंचा... उस बंद कमरे से लेकर आज इस प्यारे से नीले आसमान तक के सफ़र को बहुत खूबसूरत तो नहीं कह सकता लेकिन अब वो रास्ते मुझे बहुत याद आते हैं... वो वक़्त जब मुझे ये लगने लगा था कि तुम्हारी ज़िन्दगी की किताब में मैं यादों का एक पुराना पन्ना भर बनके रह जाऊँगा... ग़र कभी तुम इस  किताब के पन्नों को बेतरतीबी से पलटते हुए मुझे याद करती तो ये ज़रूर सोचती कि अज़ब पागल लड़का था....
     खैर, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और आज ज़ब तुम चुपके से मेरी ज़िन्दगी के पीछे से मुस्कुराते हुए झांकती हो तो दिल करता है तुम्हारे लिए कोई नए से अठारहवें सुर में कोई प्यारा रोमांटिक सा गाना लिख दूं, तुम्हारे लिए इन्द्रधनुष में हमारे प्यार का आठवां रंग भी जोड़ दूं... दूर किसी आकाशगंगा में से सबसे खूबसूरत तारा लाकर तुम्हारी अंगूठी में सजा दूं....  इन सपनों में बहने वाली तुम्हारी हर एक मुस्कराहट को इस बादल भरे आसमान पर टांक दूं, फिर जब भी बारिश होगी तो उसकी बूंदों के साथ तुम्हारी हर हंसी तुम्हारे चेहरे पर फ़ैल जाया करेगी... यकीन मानो इस बारिश के बूंदों को तुम्हारे चेहरे पर देखने के बाद मेरे दिल को कभी खुद पर पड़ने वाली धूप का एहसास तक नहीं होगा... कभी तुम्हारी इन मुस्कुराती आखों की तरफ देखता हूँ तभी ये एहसास होता है कि इन मुस्कराहट की वजह मैं हूँ शायद...  ऐसे में समझ नहीं आता तुम्हें क्या कहूं... तुमसे बस इतना ही कहना चाहता हूँ ये सारी खुशियाँ सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए ही बनी थीं, लेकिन कहीं दूर उस क्षितिज के कोने में अटकी पड़ी थीं मैंने बस उसका रास्ता तुम्हें दिखा दिया...  बस उस लम्हें पर गुमान सा होता है जब तुमने आसमान टटोलते मेरे हाथों में अपने सपने डाल दिए थे... मेरी उनींदी पलकों में अचानक से तुम्हारे मोहब्बत की चांदनी चमचमा उठी थी... वो ठंडी धूप जिसमे तुम्हारे होने का अस्तित्व अंगड़ाई ले रहा था... तुम्हारी इन मुस्कुराहटों की रखवाली के लिए तुम्हारी इन आखों की पलकों पर अपनी नज़रों का नूर रख छोड़ा है, हमेशा इसी तरह हँसते रहना नहीं तो ये नूर भी तुम्हारे आंसुओं में भीग जाएगा.... मुझे तुम्हारी आखों में सजने वाले सपनों को सच होते हुए देखना है...
        तुम्हारे साथ इन बिताये खूबसूरत लम्हों की तस्वीर को ऐसी जगह सजा के रखना चाहता हूँ जिसे जब-जहाँ जी चाहे देख सकूं इसलिए तो  उस आसमान की चादर को धो कर साफ़ कर दिया है... जब भी तुम्हें खूब जोर से मिस करूंगा तुम्हें वहां से झांकते हुए देख लिया करूंगा... जानता हूँ जाने कितनी ही बार तुमसे कह चुका हूँ फिर भी ये एक ऐसी लाईन है जिसे तुम बार बार सुनना चाहोगी... यही कि विकास अंशु से बहुत प्यार करता है... ;-) और हाँ इन अनजान रास्तों से जिन पगडंडियों को मैं झाँका करता था न,  वो खुशियों की गलियां अब अनजान नहीं लगती...

Saturday, June 9, 2012

माफ़ करो इन्हें, ये तो इनके पढने-खेलने के दिन हैं...

           5 जून को दिए दिल्ली हाई कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले ने 15 वर्ष की उम्र में हुए एक मुस्लिम लड़की के विवाह को जायज ठहराया..
वैसे भारतीय संविधान के हिन्दू मैरेज एक्ट के अनुसार विवाह की मानित उम्र लड़कियों के लिए 18 और लड़कों के लिए 21 तय की गयी है... लेकिन इसमें मुस्लिम, पारसी, ईसाई और जेविश धर्म का जिक्र नहीं किया गया है... इस्लामिक क़ानून के मुताबिक़ कोई भी मुस्लिम लड़की बिना अपने माता-पिता की इजाज़त के शादी कर सकती है, बशर्ते उसने प्यूबर्टी हासिल कर ली हो. अगर उसकी उम्र 18 साल से कम भी है तो उसे अपने पति के साथ रहने का हक़ है... तो क्या भारतीय संविधान भी धर्म के हिसाब से शादी की उम्र तय करेगा... वैसे अगर दूसरे मुल्कों की बात करें तो मुस्लिम देशों को छोड़कर अधिकतर पश्चिमी देशों में विवाह की उम्र लडकों के लिए 18 और लड़कियों के लिए 16 है... हालाँकि एशिया महाद्वीप में अधिकतर जगह लड़कों के साथ-साथ लड़कियों की भी उचित उम्र 18 ही है... इरान में लड़कियों की न्यूनतम आयु 9 साल निर्धारित की गयी है और ब्रुनेई में तो इससे जुड़ा कोई नियम ही नहीं है यानी वहां बाल विवाह आज भी जायज है... ध्यान रहे कि आज से करीब एक साल पहले कर्नाटक हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में सुनाया था कि बिना माता-पिता की अनुमति की कोई भी लड़की 21 साल से कम की उम्र में विवाह नहीं कर सकती... वैसे अगर धर्म, प्रदेश का पक्ष हमलोग दरकिनार कर दें तो भी एक सवाल तो मेरे मन में उठ ही रहा है कि क्या 15 वर्ष की उम्र में विवाह उचित है... अगर हाँ तो इसे बाल विवाह की ही संज्ञा दे दें तो क्या गलत होगा... भले ही लड़की शारीरिक तौर पर थोड़ी तैयार हो लेकिन क्या वो मानसिक तौर पर विवाह की ज़ेम्मेदारियां उठा पाने में सक्षम होगी...बहरहाल उम्मीद करता हूँ इस फैसले का असर आने वाली शादियों पर तो नहीं पड़ना चाहिए... क्यूंकि इतनी कम उम्र में होने वाले विवाह की  संख्याओं में अब कटौती हो रही है और मेरे ख्याल से ऐसा होना भी चाहिए... भले ही कोर्ट ने १५ वर्ष की उम्र को विवाह के लिए पर्याप्त मान लिया हो लेकिन ये फैसला आपको करना है कि आप विवाह के लिए उचित अवस्था क्या मानते हैं..
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            भाई मेरा तो कहना है कि कानून कोई भी हो लेकिन उसके फायदे और नुक्सान पर भी गौर कर लिया जाना चाहिए... क्या 15 साल की उम्र भी कोई शादी की उम्र होती है... अरे ये पढने-लिखने और खेलने कूदने की उम्र होती है....

Wednesday, June 6, 2012

आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया...

             कभी कभी वक़्त इतनी तेजी से इन चंचल लहरों के संग हो लेता है कि पता ही नहीं चलता कब हम बहते बहते कितनी दूर चले आये हैं... ऐसा लगता है जैसे कल ही की बात थी जब मैंने ब्लॉगिंग शुरू की थी... आज इस शतकीय पोस्ट पर जब पीछे पलट कर देखता हूँ तो ज़िन्दगी के कई पन्ने यूँ ही अधखुले से फडफडाते हुए जान पड़ते हैं... सामान्यतः मैं अपनी पुरानी पोस्ट्स नहीं पढ़ता, लेकिन जाने अनजाने में कुछ पोस्ट अपने दिल के इतने करीब से होकर गुज़रते हुए यहाँ उतारी हैं कि आज सब कुछ फिर से पढने का मन किया.... कुछ को पढके हंसी भी आई और कुछ ने आखें भी नम कर दीं... कुछ पोस्ट को पढ़ के तो ऐसा लगा जैसे इतना सब कुछ मैंने कैसे लिख दिया... मेरे कई बीते लम्हों को यूँ ही समेटता रहा हूँ हमेशा... कई सारी पोस्ट आज भी अन्दर तक उतर आती हैं...
             ब्लॉग लिखना शुरू करने के पहले अक्सर मैं यूँ ही बकवास अपनी डायरी में लिख लिया करता था, तब तो ये भी पता नहीं था ये कमबख्त किस चिड़िया का नाम है... अगर प्रतीक ने अपना ब्लॉग नहीं बनाया होता तो मुझे पता भी नहीं चलता.... हालांकि वो इंग्लिश में लिखता था लेकिन उसी समय मेरा भी ब्लॉग बनाने का मन किया... इसके बारे में कुछ तो पता नहीं था... ब्लॉग बनाने, उसका टेम्पलेट वगैरह खोजने का पूरा का पूरा काम मनीष ने किया... मुझे ब्लॉगर बनाने का पूरा क्रेडिट मनीष को... और मेरी पोएम्स को पढ़कर उसको झेलने के लिए मैं निशांत को भी हमेशा थैंक्स बोलूँगा... प्रतीक, मनीष और निशांत तुम तीनो का बहुत बहुत शुक्रिया मुझे इस दुनिया में लाने के लिए.... आज मैं यहाँ बहुत खुश हूँ, जब कभी भी मेरा खामोश दिल चुपके से सुगबुगाता है तो उसे यहाँ सबके सामने रख पाता हूँ... इस ब्लॉग ने मुझे बहुत कुछ दिया... कई सारे अच्छे दोस्त जिनसे हर सुख दुःख बाँट सकता हूँ... सबके नाम तो गिनाना शायद मुश्किल है लेकिन कुछ लोग जो अपने से भी ज्यादा अपने हो गए इन पिछले करीब दो सालों में.... चाहे वो "एनी टाईम अवेलेबल" रहने वाली दोस्त मोनाली हो या फिर मुझे ढेर सारा मानने वाले देव भिया, अजय भैया, शिवम भैया,  प्रशांत भाई, अभिषेक भाई, वंदना और ऐसे न जाने कितने ही अपने जिनसे मिलवाने में मेरे इस ब्लॉग ने मदद की... हालांकि सबसे बातें बढाने में फेसबुक ने काफी मदद की लेकिन फिर भी ब्लॉग का महत्व कम नहीं हो सकता.... ये ब्लॉग केवल मेरे विचारों के बवंडर को समेटने का सिर्फ एक जरिया मात्र नहीं बल्कि एक अपने आप में मेरी एक छोटी सी प्यारी दुनिया है... जहाँ हर तरह के लोग हैं जो अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा सा लगने लगे हैं...आप सभी लोगों ने मेरे हर अच्छे बुरे लम्हों को इन पोस्ट्स के माध्यम से पढ़ा, सराहा, हौसला दिया... आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया... आप यूँ ही पढ़ते रहे और मैं यूँ ही लिखते रहने की कोशिश करता रहूँगा...
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