Friday, February 22, 2013

गुमगश्ता से कुछ ख़याल...

ज़िदगी तेज़ भागती है बहुत, बिलकुल बुलेट ट्रेन की तरह... हर रोज़ ज़िन्दगी में कई लोग मिलते हैं.. कुछ लोग तयशुदा होकर प्लेटफोर्म में तब्दील हो जाते है, वहां आकर ज़िन्दगी हर रोज रूकती है... यहाँ ज़िन्दगी को थोडा धीमापन मिलता है... और कुछ यूँ ही अपने खोखले लिबास में आते हैं बस थोड़ी देर के लिए और हमेशा के लिए खो जाते हैं.. ट्रेन की खिडकियों पर बैठकर सफ़ेद आखों से, होठों पर केवल एक सतही मुस्कान लिए उन्हें अलविदा कह देना ही अच्छा लगता है...

सुबह का अखबार
एक प्याली चाय
और हाथ में एक अधजली सिगरेट...
तुम्हारा यूँ मेरी ज़िन्दगी में होना
उस सिगरेट से कम नहीं
मैं तुम्हें जला देना चाहता हूँ
क्यूंकि तुम्हारा होना परेशान करता है
तुम आकर अटक गए हो
इन उँगलियों में...
जितना तुम्हें जलाता हूँ
मेरा फेफड़ा भी उतना ही जलता है
मैंने भी सोच लिया है,
अब ऐसा कभी न होगा
जल्द ही जला दूंगा
हम-दोनों के बीच बने इस रिश्ते को...
याद रखना
तुम मेरी ज़िन्दगी की आखिरी सिगरेट हो...

लोग जब मेरे कमरे में आते हैं, बत्ती जला देते हैं... जाने क्यूँ मुझे अँधेरा अच्छा लगता है, अगर रौशनी की बिलकुल भी ज़रुरत न हो तो बत्तियां बुझाकर बैठने का मन करता है... अंधेरों में आखों को तकलीफ नहीं होती और दिल को भी सुकून मिलता है.... रोशनियाँ आखों में जलन पैदा करती हैं, खुद के लिए ही कई सवाल खड़े कर देती है... इस उजाले में आखें अपने अन्दर छुपे सारे ख़याल छुपा लेती हैं... सब कुछ अन्दर ही अन्दर तूफ़ान मचाता रहता है... बहुत कठिन होता है उजाले और अँधेरे के बीच सामंजस्य बिठाना... आखों से ढुलकते उन एहसासों को जबरदस्ती बाँध लगाकर रोकते रहने की जुगत में कई बार खुद से ही चिढ होने लगती है....

कितना अजीब होता है
जब कोई न हो
आस-पास
उन्हें पोंछने को
और अगर कोई देख ले तो
बस ये कहना कि
" चला गया था कुछ आँखों में... "
ये कमबख्त आंसू भी अजीब होते हैं...

13 comments:

  1. jaane kyu andhera itna khoobsurat hota hai....

    ReplyDelete
  2. हाँ, सही कहा :(

    ReplyDelete
  3. आँखों से तो निकलता है, चला तो मन में जाता है किसी की बातों का नश्तर..

    ReplyDelete
  4. आँखें सबसे बड़ी चुगलखोर होती हैं!

    ReplyDelete
  5. सच में आखिर अँधेरे से हम जितना दूर भागे आखिर में इस अँधेरे में ही हम क्यूँ वो सकून पाते हैं इस अँधेरे को ही हम दूर भगाते है और फिर धीरे से उसी के पास चले जाते है


    मेरी नई रचना

    खुशबू

    प्रेमविरह

    ReplyDelete
  6. याद रखना
    तुम मेरी ज़िन्दगी की आखिरी सिगरेट हो...जाने कहां ऐसा ही कुछ पढ़ा था...तब भी अच्‍छर लगा था..अब भी

    ReplyDelete
  7. कितना अजीब होता है
    जब कोई न हो
    आस-पास
    उन्हें पोंछने को
    और अगर कोई देख ले तो
    बस ये कहना कि
    " चला गया था कुछ आँखों में... "
    ये कमबख्त आंसू भी अजीब होते हैं...

    बेहद संवेदनशील. सुंदर प्रस्तुति.

    ReplyDelete
  8. बेहद ही सुन्दर प्रस्तुति.
    मेरे ब्लोग्स संकलक (ब्लॉग कलश) पर आपका स्वागत है.
    "ब्लॉग कलश"

    ReplyDelete
  9. वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

    ReplyDelete
  10. आज की ब्लॉग बुलेटिन खोना मुझे मंजूर नहीं मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  11. बहुत सुन्दर रचना | बधाई

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

    ReplyDelete

Do you love it? chat with me on WhatsApp
Hello, How can I help you? ...
Click me to start the chat...