Monday, January 6, 2014

तसव्वुर-ए-ज़िंदगी...

आपका यहाँ यूं होना और मेरा लिखा पढ़ना किसी संयोग से कम नहीं... इस 7 अरब की दुनिया में आप मुझे ही  क्यूँ पढ़ना चाहते हैं, ऐसा क्या है यहाँ... यहाँ तो सबकी ज़िंदगी ही एक कहानी है, अपनी कहानियों से इतर दूसरों की कहानियों में इतनी दिलचस्पी क्यूँ भला... 50 करोड़ स्क्वायर किलोमीटर की इस धरती पर मुश्किल से 20 स्क्वायर फीट की जगह घेरा एक इंसान कंप्यूटर पर बैठा कुछ खिटिर-पिटिर कर रहा है, अपनी ज़िंदगी के पन्नों को उलट पुलट कर देख रहा है, उसे इस इन्टरनेट की दीवार पर बैठे बैठे झांकना क्यूँ पसंद है आपको... यहाँ तो आलम ये है कि मेरे घर का आईना भी मेरी शक्ल से ऊब सा गया लगता है, दीवारों की सीलन भी आंसुओं के रंग में नहाई लगती है... मेरे कमरे तक आने वाली सीढ़ियाँ हर रोज़ संकरी सी होती जाती हैं, जैसे किसी दिन बस यहीं कैद कर लेंगी मुझे...

ज़िंदगी एक नदी है, अपनी नाव उतार दीजिये... 
अगर आपको लगता है मैं कुछ अच्छा लिखता हूँ या अलग लिखता हूँ तो ये आपका भ्रम मात्र है, मैं यहाँ एक मुखौटा सा लगा कर बैठा हूँ.... इस ब्लॉग पर पड़ी एक परत सी है, कभी जो हो सके तो इस परत को उघाड़कर इसके अंदर बैठे मेरे स्वयं को देखने की कोशिश कीजिएगा.... मैं भी आपका ही अक्स हूँ जो आपकी ही तरह लड़ रहा है ज़िंदगी से, कोयले की सिगड़ी पर ज़िंदगी को सेक कर कुछ लज़ीज़ बनाने की जुगत में है....अब कहीं ऐसा न समझ लीजिएगा मैं किसी अवसाद में हूँ, मैं तो पूरी तरह से ज़िंदगी में हूँ... डूबा हुआ... ज़ोर से सांस भी लेता हूँ तो ज़िंदगी दौड़ी मेरी बाहों में सिमट आती है... ज़िंदगी को आप कसी ड्राफ्ट में सेव करके नहीं रख सकते, किसी EMI स्कीम से खरीद नहीं सकते... बस इसकी आँखों में आँखें डालकर इसका लुत्फ उठा सकते हैं.... 

किसी बच्चे का सीक्रेट झोला देखा है आपने कभी, उसमे वो हर कुछ डालता जाता है जो उसे अलग लगती है, सड़क के किनारे पड़े किसी गोल चिकने पत्थर को भी उसी मोहब्बत से देखता है जैसे उसी में उसकी ज़िंदगी बसी हो... बस यही तो है हमारी-आपकी ये ज़िंदगी भी, जो भी पसंद आता समेटते जाते हैं, कई चीजों का कोई मोल नहीं होता... बस यूं ही खुद की खुशी के लिए, खुद के साथ के लिए....

अगर आप मेरा लिखा लिखा पसंद करते हैं तो इस लिखे के पीछे की बिताई गयी उन नाम शामों में से मुझे तलाश कर लाना होगा जब मैं अकेला था और उस दर्द को तनहाई को कागज पर उतार दिया था... आपको आकर मेरी उन खुशियों में शरीक होना पड़ेगा जिन्हें बांटने के लिए मेरा पास कभी कोई न था....  तकिये में सर गोतकर बिताई गयी उन भींगी रातों का हिसाब तो मैंने नहीं मांगा और न ही दोबारा उस आवाज़ का साया मांग रहा हूँ जिसके सहारे नींद के आगोश में चला गया था, लेकिन कभी जानिए के ये सब कुछ लिखता हुआ शक्स भी आपकी तरह ही है... आपके दिमाग में उमड़ती-घुमड़ती कुछ बेवजह की बातों को शब्दों की लकीरों में यहाँ उतार रहा हूँ.... मैं दरअसल मैं नहीं, आपका स्वयं हूँ... आप खुद को ही यहाँ पढ़ते हैं....

10 comments:

  1. sach me insan wahi dekhna padna pasand karta hai jis me wo swayam ko dekh sake ...sach kaha hum apko nahi khud ko padhte hn ....bas yoon hi khusiyon ko batorte aur gum ko peeche chodte chalo ...:-)

    ReplyDelete
  2. सच कहा, हम औरों में स्वयं को ही ढूंढ़ते हैं, अपनी ही छवि पा जाते हैं।

    ReplyDelete
  3. शब्द भाव जो व्यक्त होते हैं निश्चित ही उसमें हर पढने वाले को अपना अक्स दिख जाना ही है... आखिर एक से ही तो हैं हम... एक सी ज़िन्दगी ही तो जी रहे हैं हम इंसान... सुख और दुःख के बीच पेंडुलम की भांति झूलते हुए!

    ReplyDelete
  4. कौन सी नयी बात बताई तुमने....
    हम तो तुम्हें पढ़ते ही इसलिए हैं कि लगता है oh!! फिर चुरा लिया इसने हमारा ड्राफ्ट !!!
    :-)
    सस्नेह
    अनु

    ReplyDelete
  5. मेरा अक्स है सर-ए-आईना, पस-ए-आईना कोई और है!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. तुझे दुश्मनों की ख़बर न थी मुझे
      दोस्तों का पता न था

      तेरी दास्ताँ कोई और थी मेरा वाक़या कोई और है.

      Delete
  6. टिप्पणी नंबर एक
    वाह ! बिल्कुल कविता सी लगती पोस्ट ,
    बिलकुल सहज हो हौले हौले से बहती पोस्ट ,
    अपने साथ बहा के ले जाती सी पोस्ट
    किसी और ब्लॉग पे लिखी मेरी पोस्ट ,

    टिप्पणी नंबर दो

    पहला आंकड़ा ही गलत है , दुनिया मात्र सात अरब के लोगो से नहीं चल रही है , यहाँ अरब के अलावा बाकि मूल के लोग भी है और काफी मात्र में है :) और ये किलोमीटर और फिट वाला आकंड़ा सही है या बस यु ही लिख दिया है । दीवारो में सीलन ज्यादा हो तो डाक्टर फिक्सिट लगाओ चली जायेगी , सीढ़ियों पर कोई अतिक्रमण कर रहा है ,तो वो तुम्हारी सीढी है संकरी मत होने दो निकल फेंको उसे , और मुखौटे को भी कौन देख रहा है यहाँ , डुबो मत तैरना सिख जाओ , और जिंदगी को इतनी दूर क्यों कर देते हो कि बेचारी को दौड़ कर आ के गले लगाना पड़ता है पास में रखा करो ना :)))))

    दोनों टिप्पणीयो में से जो पसंद आई है उसे रख लो और दूसरे को निकाल दो यदि आप ऐसा कर सको तो :)))

    ReplyDelete
    Replies
    1. हमने दोनों रख ली हैं.... जब जिसकी जरूरत हो पढ़ लिया करेंगे...
      जवाब नंबर एक

      बहुत बहुत शुक्रिया, आपका कमेन्ट पढ़कर प्रोत्साहन मिलता है.... ब्लॉग पर आते रहा करिए, आपका ब्लॉग को भी पढ़ता रहता हूँ... धन्यवाद...

      जवाब नंबर दो

      इतना सारा ज्ञान एक ही साथ !!!
      किलोमीटर वाला आंकड़ा सही है जैसा गूगल ने बताया पृथ्वी का क्षेत्रफल और अपने बिस्तर का हमने खुद निकाल लिया.....
      घर किराये का है तो उसमे खुद से फिक्सिट नहीं लगा सकते... :P
      कभी कभी बिलकुल ऐसा ही करता हूँ, मजाल नहीं कि कोई और मेरी सीढ़ी पर अतिक्रमण कर जाये, हम तो बगल वाली बिल्डिंग ही गिरा दें ऐसे केस में....
      जान बूझ कर डूब कर रहते हैं, पनडुब्बी माफिक.... कब उस पार चुपपे से निकाल जाएँ किसी को खबर तक न हो...

      और ज़िंदगी बहुत करीब है, बहुत ज्यादा करीब....

      Delete

Do you love it? chat with me on WhatsApp
Hello, How can I help you? ...
Click me to start the chat...