Tuesday, June 24, 2014

आसमां और हथेलियाँ...

ये आसमां इतना विशाल है
बिल्कुल अनंत,
लेकिन उसमे,
मुझे बस शून्य दिखता है
बहुत बड़ा शून्य
जैसे किसी ने
एक बहुत बड़े घूमते कटोरे को
पलट कर रख दिया हो... 
बस ऊपर सब चक्कर खाते हुये दिखाई देते हैं,
कभी सूरज, कभी चाँद तो कभी बादल,
कोई नहीं रुकता मेरे लिए
जैसे सब ढूँढते रहते हैं कटोरे का छोर...

फिर अचानक से
तुम दिखती हो
हथेलियों से अपना चेहरा ढाँपे हुये,
तुम्हारी हथेलियों को सीधा करता हूँ तो
महसूस होता है जैसे
ये छोटे-छोटे हाथों की लकीरें
पकड़ के बैठी हैं मेरा वजूद
जैसे तुम थमी हुयी हो
मेरे भटकाव-मेरी बेचैनी को पकड़कर,
कान लगा कर सुनो तो
उन हथेलियों से,
सुनाई देती है मेरी हर सांस की आवाज़ें...

Sunday, June 22, 2014

एक खाली सा दिन...

मैं अब कोरे कागज को,
कोरा ही छोड़ देता हूँ
तुम्हारी फिक्र और कुछ खयाल
ड्राफ्ट में सेव कर छोड़े हैं...

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मैंने देखा था
उसके आखिरी समय में उसे
उसकी आवाज़ उसका शरीर छोड़ दे रही थी...
आज सुबह उसकी रूह ने,
आवाज़ लगाई है मेरे सपनों में
रूह से भला उसकी आवाज़ को
कौन जुदा कर पाया है आज तक..

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ज़िंदगी के रंग को जाना है कभी,
कभी देखी है
उन गुलाबी-पीले फूलों के चारो ओर
लगी लोहे के कांटे वाली नुकीली बाड़...
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