Sunday, March 29, 2015

मेरी बातें अनछुइ सी रह जाती हैं इन दिनों....

आकाश में कुछ रंग बिरंगे फूल रोप दूँ तो,
तुम्हारी हर उदासी के ऊपर
फूलों की खुशबू गिरेगी ....
उस खुशबू से
तुम खुश तो हो जाओगी न....

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आसमां की झूलती खिड़कियों पे आईना है,
ठीक वैसे ही जैसे मेरी खिड़की पे लगा है...
तुम्हारी शक्ल आधी दिखे तो
तुम आईना नीचे कर लगा लिया करती हो,
कह दो तो आसमां भी झुका दूँ
कि देख सको
खिड़की के उस पार
तुम्हारी शक्ल के साथ इश्क भी है मेरा....

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धीमी सी आंच है इस दिल की सिगड़ी में,
इसमे जितनी तेरी याद जलेगी,
इश्क उतना ही कुंदन होगा....

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तुम्हारा चेहरा न गोल है न चौकोर
आकार बदलते हैं कुछ चेहरे
इस चाँद की तरह
होता भी है और कभी-कभी नहीं भी,
लेकिन जब नहीं भी होता
तब भी मुस्कुराता रहता है
छुप-छुप कर....

4 comments:

  1. Nice Article sir, Keep Going on... I am really impressed by read this. Thanks for sharing with us. Latest Government Jobs.

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  2. उस ख़ुशनसीब को रात का काला टीका लगा दूँ या माथे पर बोसा लेकर कहूँ - चश्मेबद्दूर! फिर सोचता हूँ कि ऐसी बातें कोई दिल से कहे तो नज़र नहीं लगती...
    चेहरे पे खुशी छा जाती है
    , आँखों में सुरूर आ जाता है
    जब तुम मुझे अपना कहते हो, अपने पे ग़ुरूर आ जाता है!

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  3. बहुत खूब ... सभी लम्हे वक्त की गर्मी का एहसास कराते हुए ...

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