Sunday, July 5, 2015

माँ, मैंने आपकी खामोशियाँ पढ़नी सीखी हैं...

वैसे तो कहा जाये तो हम तीनों भाइयों मे से सबसे ज्यादा वक़्त मैंने ही माँ के साथ बिताया है, लेकिन एक वर्किंग मदर अपने बच्चे को कितना वक़्त दे पाती है वो तो सबको पता ही है... उस कम वक़्त में भी जब माँ के पास कहने के लिए ज्यादा कुछ नहीं होता था, बस उनके चेहरे के हाव-भाव पढ़ने की ज़रूरत अपने आप महसूस हो गयी, फिर न जाने कब मैं इस काम में इतना दक्ष हो गया कि आज भी माँ कुछ कहे न कहे शब्द अपने आप बुनने लगते हैं... 

जब फोन करता हूँ उधर से आई एक हेलो की आवाज़ से सब कुछ पता चल जाता है... हो सकता है ये गुण सब बच्चे अपने हिसाब से डेव्लप कर लेते हों, और ऐसा कर लेने पर खुशी भी मिलती हो... 

आज भी आपको अपने प्रमोशन के बारे में  बताने के लिए फोन किया तो आपकी वो खामोश सी खुशी हौले हौले से मेरे दिल में उतर गयी... आपका कुछ कहना, न कहना कोई माने नहीं रखता क्यूंकी आपकी खामोशियों के शब्द तो तभी मेरे अंदर आ गए थे जब आप मुझे ये दुनिया दिखाने के लिए तैयार कर रही थीं... 
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