Monday, February 27, 2017

ब्लॉग, ज़िन्दगी और मैं... पिछले कई गुज़रे सालों का सफ़र...

आज से 17 साल पहले लिखना इसलिए शुरू हो गया कि किसी को मेरा लिखना बेइंतहा पसंद था, उस वक़्त तो मैं पता नहीं क्या क्या लिख देता था, और वो मुस्कुरा देती थी... जिद्दी थी और पागल भी... सोचता हूँ अगर वो इतनी जिद नहीं करती तो क्या मैं आज इतना सब कुछ लिख भी रहा होता या नहीं... उसका ये एहसान ही रह गया मुझपर, न चुका पाया और न ही भूल पाया... मेरा लिखा हर कुछ बस एक क़र्ज़ के नीचे रह गया.. अगर किसी को भी मेरे लिखे का एक कतरा भी पसंद आये तो मुझे अजीब सा लगता है... मुझे राइटर बनाने की उस एक जिद ने मेरी ज़िन्दगी बदल दी... कहते हैं कि पहला प्यार सबसे हसीं होता है, लेकिन जब पहली बार दिल टूटे तो दर्द भी बड़ा होता है, इतना बड़ा कि उससे उबरने में सालों लग जाते हैं, सदियाँ भी कभी कभी... प्यार लिखते-लिखते अचानक से लिखने में बस दर्द ही बाकी रह गया... उस दौर का हर एक दिन पन्ने पन्ने में संजोया था, उस वक़्त शायद अगर ये ब्लॉग होता तो हर कोई पढ़ पाता... जितना प्यार मैंने उस वक़्त लिखा उतना फिर कभी नहीं लिख पाया, सोचता हूँ कि मैंने प्यार किया ज्यादा या लिखा ज्यादा.... पता नहीं... 

खैर उस डायरी के प्यार को एक दिन राख में तब्दील कर दिया... करीब 3 साल तक फिर कुछ नहीं लिखा एक शब्द भी नहीं... 

फिर 7 साल पहले 2010 में जब ब्लॉग लिखना शुरू किया था तो सोचा भी नहीं था कि इतना कुछ लिख जाऊँगा... पहला ब्लॉग मज़े मज़े में बना लिया था, नाम रखा "Cyclone of Thoughts..." और पहली पोस्ट डाली "Who is Thakrey..."   :P 

फिर दो पोस्ट और डाली लेकिन ब्लॉग का पता बहुत लम्बा रख लिया था, तो अच्छा नहीं लगता था फिर हद से ज्यादा छोटा करके i555.blogspot.com कर लिया, उस वक़्त अंग्रेजी ब्लॉग्गिंग का भूत था लेकिन अंग्रेजी में कभी लिखा नहीं, हाँ ब्लॉग का नाम ज़रूर अंग्रेजी में था, अब तक हम 'Cyclone' से सीधा 'Whispers' पर आ गए थे... नाम था "Whispers from a Silent Heart... " अच्छी चल निकली थी दुकान, ब्लोगिंग का चस्का लग चुका था... उस वक़्त ब्लॉग पर पहेलियाँ भी खूब चलीं... "पहचान कौन" पहेली के नाम से लोगों को हमारा ब्लॉग पता चला... अच्छा दौर था, पहली बार मेरी पहचान उन लोगों के बीच हो रही थी जिनसे मैं कभी मिला नहीं था, हाँ फ़ोन फ्रेंड, लैटर फ्रेंड (उस वक़्त फेसबुक अब जैसा शक्तिशाली नहीं था.... ) बहुत थे पर अजनबियों के बीच खुद को खड़ा करने का मज़ा ले रहां था मैं... 

खैर वापस ब्लॉग पर आते हैं, मैं उन दिनों कुछ भी अपनी निजी ज़िन्दगी के बारे में नहीं लिखता था... सच कहूं तो डर लगता था कि लोग पढेंगे तो क्या सोचेंगे, वही डर जिसने पूरी दुनिया को अपंग बना रखा है.. इसी दौरान मेरा वो ब्लॉग एक दिन अचानक से गायब हो गया, उस वक़्त लगा था कि हैक हो गया है लेकिन अब जब मैं खुद साइबर सिक्यूरिटी में हूँ तो लगता है कुछ और ही हुआ होगा... सारी पुरानी पोस्ट गायब अचानक से ख़त्म हो गयी थी, और मैंने कुछ संजोया भी नहीं था... प्रशांत भैया ने कुछ पोस्ट्स अपने फीड रीडर से निकाल के दीं, हालाँकि जब मैंने उनको पढ़ा तो लगा जाने क्या बकवास लिखा था.... मेरे लिए शायद ये वेक अप कॉल था, मैं एक ब्लॉगर की तरह लिख रहा था जबकि मैं एक लेखक की तरह लिखना चाहता था... नया ब्लॉग बनाया और फिर से लिखना शुरू किया, पहले से कुछ अलग ये सोचे बिना कि कोई इसे पढ़ भी रहा होगा... 

पता नहीं, वो बेहद उदास शाम थी जब मैंने बेपरवाही के साथ अपनी ज़िन्दगी का एक पन्ना खोल के ब्लॉग पर लगा दिया... पता नहीं कितने लोगों ने पढ़ा, खुद से रिलेट किया लेकिन पहली बार मुझे ब्लॉग पर कुछ लिखकर अच्छा सा लग रहा था, फिर मैंने अपने बारे में, अपनी ज़िन्दगी के बारे में बहुत कुछ लिखा... लोग क्या कहेंगे वाला डर निकल गया था, हालाँकि ये लगता था कि कोई घर से न पढ़ ले... बहुत कुछ लिखा उस दरमयान... 

2011-2012 मेरी ज़िन्दगी के सबसे उथल-पुथल वाले सालों में से रहा, उन दिनों मैंने बहुत कुछ पाया... ढेर सारा लिखा, उन दिनों ज्यादा लिखने की वजह भी बहुत ख़ास थी... जबकि आपको पता हो आपके ठीक पीछे बैठ के कोई ब्लॉग के पोस्ट होने का इंतज़ार कर रहा हो... सच में प्यार से ज्यादा खूबसूरत वो वक़्त होता है जब प्यार हो रहा होता है... प्यार किसी भी वक़्त हो, किसी भी उम्र में हो लेकिन जब ये हो रहा होता है न हम एक टीनएजर से ज्यादा कुछ नहीं होते... मैंने उस वक़्त अपनी ज़िन्दगी में जो भी सोचा, जो भी किया सब कुछ लिखा, शायद सिर्फ इसलिए कि मेरे पीछे बैठी अंशु पढ़ सके उसे... उसे पीछे से झाँकने में इसके लिए मैंने क्लास में अपनी सीट पीछे कर ली थी... कमाल है न, इसी ब्लॉग से उसने मुझे जाना, इसी ब्लॉग पर मैंने उससे बातें कीं, यहीं प्यार का इज़हार भी कर दिया... 

सच कहूं तो मैंने खुद के लिए बहुत कम ही लिखा, पहले किसी और के लिए लिखा करता था और फिर किसी और के लिए... हाँ लिखने के लिए कुछ "push" तो चाहिए ही होता है न...

आजकल यहाँ कम ही लिखता हूँ, मैं वापस उसी डर में चला गया हूँ कि लोग पढेंगे तो क्या कहेंगे... :)
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