Friday, February 9, 2018

कसक...

कभी-कभी बैठे बैठे अचानक से हम दूर कहीं पीछे छूट चुकी याद के सिरे टटोल बैठते हैं... आज ऑफिस से वापस आते हुए कोई पुराना सा लम्हा आकर मेरी आखों के सामने पसर गया... 

इस खुशनुमा मौसम में अचानक से कसक सी उठी, तुमसे बात न कर पाने की कसक... मुझे नहीं पता कि ऐसा क्या है जो वो सुकून नहीं भूल पाता जो हर उस इंसान के साथ रह के मिलता जिसे मैं पसंद करता हूँ. मैं अपनी ज़िन्दगी के सबसे प्यार भरे दौर में हूँ और मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि मैं बहुत खुश हूँ इन दिनों... मुझे यकीन है जैसे मैं तुम्हें खुश देखकर खुश होता हूँ, तुम भी ज़रूर होगी... याद है तुमने एक बार कहा था "आप जहाँ भी, जिसके साथ भी रहेंगे हमेशा खुश रहेंगे और उसे भी रखेंगे जिसको ये खुशनसीबी हासिल होगी..." मैं शायद उस वक़्त नादान था बहुत, कभी सोचा नहीं था कि ये बात आज 16 सालों बाद भी मुझे याद आ जायेगी... कितनी सच थी ये बात, आज मैं सच में बहुत खुश हूँ और यकीन है उस इंसान को भी वो सारी ख़ुशी दे रहा हूँ जिसकी उसने तमन्ना की हो... सच कहूँ तो तुम्हारे यूँ अचानक से चले जाने का असली दुःख ये है कि मैंने एक बेहतरीन दोस्त भी खो दिया, वो दोस्त जिसके पास मेरी हर बकवास सुनने का वक़्त था और मेरी हर गलती सुधारने का भी... 

तुम्हारी उस "हर कोई धोखेबाज है इस दुनिया में.." वाली बात पर जब मैंने कहा कि मैंने तो कभी किसी को धोखा नहीं दिया कभी, तो तुमने कहा था.. "आप तो यूनिक टाइप हैं, आपको तो यही नहीं पता कि धोखा कैसे देते हैं, आप क्या धोखा दीजियेगा किसी को..." तुमने ये भी तो कहा था कि "अपने तरह का मत खोजिएगा कभी, पता नहीं शायद कभी मिले ही नहीं..." मैं आज तुमको बताना चाहता हूँ कि ऐसा कोई मिल गया है मुझे... उसे भी नहीं आता है किसी को धोखा देना... 

मैं फिर से उस इंसान से मिलना चाहता हूँ जिससे 17 साल पहले मिला था, बस इसलिए कि कुछ चीजों को रीसेट कर सकूं... बस इतना ही कि हम कम से कम ऐसे तो बने रहें कि आज तुमको बता सकूँ कि मैं खुश हूँ... 

मालूम है, ऐसा कुछ अब नहीं हो सकता... 
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