Thursday, March 22, 2018

बस एक बेहतर कल की तलाश में...

मैं घिसता हूँ खुद को हर रोज,
खुद को खुद से आगे निकालना चाहता हूँ,
ये रगड़ एक आग पैदा करती है
मैं अकेला बैठ कर जल जाता हूँ हर शाम उसमें...
थक कर, घायल होकर
सवाल फिर खुद से ही करता हूँ
कि क्या ज़रुरत है इस संघर्ष की
दिल भी कन्धा उचका कर दे देता है जवाब,
"शायद बस एक बेहतर कल की तलाश में..."

मैं निराश होता हूँ क्यूंकि
मैं वो नहीं बन पाया
जो शायद बनना ज़रूरी था मुझे,
फिर भी मैं हर रोज लड़ता हूँ
निराशा को दरकिनार करता हूँ,
"शायद बस एक बेहतर कल की तलाश में..."

मेरे पास हर उस कल के सपने हैं,
जो कल नहीं आया अब तक
पता नहीं वो कल कभी आएगा भी या नहीं,
मेरे तले ज़मीं भी रहेगी या नहीं तब तक...

मेरा आज मुझे धिक्कारता है
क्यूंकि मेरा आज कभी आने वाला कल था
जिसकी फ़िक्र मैंने कभी नहीं की
और अब मैं अपना आज गंवा बैठा हूँ
"शायद बस एक बेहतर कल की तलाश में..."

ज़िन्दगी से कई सवाल हैं मेरे,
मैं नोटबुक में लिखता रहता हूँ
जो कभी उस दुनिया में कभी सामना हुआ तो
पूछ पाऊं उन सवालों को
फिलहाल तो आज बस मैं सवाल ही लिखता जा रहा हूँ
"शायद बस एक बेहतर कल की तलाश में..."

लगता है कि शायद कभी
किसी मोड़ पर गर
पर्दा गिराना हो इस ज़िन्दगी के नाटक से
तो क्या वो भी कर लूंगा मैं,
"शायद बस एक बेहतर कल की तलाश में..."

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