tag:blogger.com,1999:blog-7104233150823978670.post2837478774309383915..comments2024-03-27T12:37:26.047+05:30Comments on खामोश दिल की सुगबुगाहट...: कांच के शामियाने... सिर्फ उपन्यास या किसी का सच... Shekhar Sumanhttp://www.blogger.com/profile/02651758973102120332noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-7104233150823978670.post-31152972092860203702016-12-12T22:10:31.344+05:302016-12-12T22:10:31.344+05:30अच्छी गुफ्तगू उपन्यास की ....अच्छी गुफ्तगू उपन्यास की ....दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7104233150823978670.post-84538219224445821032016-12-12T21:13:18.447+05:302016-12-12T21:13:18.447+05:30बहुत शुक्रिया शेखर , ये नहीं पता था कि उसी रात तुम...बहुत शुक्रिया शेखर , ये नहीं पता था कि उसी रात तुमने किताब खत्म कर ली . ये 'नारीवादी ' शब्द मुझे भी समझ में नहीं आता. अगर औरतों के दुःख तकलीफ के बारे में बातें करो तो झट से नारीवाद का तमगा दे दिया जाता है.पर क्या फर्क पड़ता है. जिसे जो बातें कहनी हो कह ही जाता है...जैसे तुमने भी कह ही डाली. <br /><br />और ये जानकार तुम्हें बहुत ख़ुशी और संतोष होगा कि कई फ्रेंड्स ने ये किताब उनलोगों तक rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.com