Friday, January 24, 2014

कोई भी नज़्म तुमसे बेहतर तो नहीं....

हो जाने दो तितर-बितर इन
आढ़े-तिरछे दिनों को,
चाहे कितनी भी आँधी आ जाये,
आज भी तुम्हारी मुस्कान का मौसम
मैं अपने दिल में लिए फिरता हूँ...

तुम्हारे शब्द छलकते क्यूँ नहीं
अगर तुम यूं ही रही तो
तुम्हारी खामोशी के टुकड़ों को
अपनी बातों के कटोरे में भर के
ज़ोर से खनखना देना है एक बार...

ये इश्क भी न, कभी पूरा नहीं होता
हमेशा चौथाई भर बाकी बचा रह जाता है,

अपनी ज़िंदगी की इस दाल में
उस चाँद के कलछुल से
तुम्हारे प्यार की छौंक लगा दूँ तो
खुशबू फैल उठेगी हर ओर
और वो चौथाई भर इश्क
रूह में उतर आएगा.....

गर जो तुम्हें लगे कभी
कि मैं शब्दों से खेलता भर हूँ
तो मेरी आँखों में झांक लेना,

लफ़्ज़ और जज़बातों से इतर
तुम्हें मेरा प्यार भी मयस्सर है...

13 comments:

  1. इतनी खूबसूरत कविता से ज्यादा किसी को और क्या चाहिए ?
    पढ कर बस एक बड़ी सी स्माइल आ गई..... धन्यावाद दोस्त … :-)

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    1. दोस्तों को धन्यवाद नहीं कहा करते... :)

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  2. जब मुस्कानें मौसम बन जायें तो कौन कष्ट आपको सता पायेगा शेखर बाबू।

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    1. हा हा हा... मुझे खुद नहीं पता, इन दिनों मैं लिख रहा हूँ बस लिखता जा रहा हूँ जो भी दिल करता है.... :)

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  3. मेरी ओर से भी एक लम्बी मुस्कान!!!

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  4. मुस्कुराहटें फ़ैल गयीं :)

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  5. बहुत प्यारी भावपूर्ण रचना...

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  6. अरे नहीं.....बचा रहने दो न चौथाई.....
    भरते रहने की कोशिश जारी रहे प्लीस :-)

    सस्नेह
    अनु

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