कल अभिषेक भाई की एक कविता पढ़ी, एकदम निर्मल बारिश के रंगों से सरोबर..बस उसे पढ़कर कुछ टूटी-फूटी मैंने भी लिख डाली....
कुछ थके-हारे बादल मैं भी लाया हूँ,
यूँ ही चलते चलते हथेली पर गिर गए थे...
उन्हें यादों का बिछौना सजा कर दे दिया है
थोडा आराम कर लेंगे...
हर साल ये यूँ ही आते हैं झाँकने को,
तुम्हारी हर खिलखिलाहट के साथ बरसना
शायद इन्हें भी अच्छा लगता था..
अब तो जैसे ये यादें
टूटे पत्तों की तरह हो गयी हैं,
जिन्हें बारिश की कोई चाह नहीं...
शायद इन बादलों को भी
दिल का हाल मालूम है...
तुम्हारा आना अब मुमकिन नहीं
तभी मैं सोचा करता हूँ....
ये बारिश आखिर मेरे कमरे में क्यूँ नहीं होती ...
कुछ थके-हारे बादल मैं भी लाया हूँ,
यूँ ही चलते चलते हथेली पर गिर गए थे...
उन्हें यादों का बिछौना सजा कर दे दिया है
थोडा आराम कर लेंगे...
हर साल ये यूँ ही आते हैं झाँकने को,
तुम्हारी हर खिलखिलाहट के साथ बरसना
शायद इन्हें भी अच्छा लगता था..
अब तो जैसे ये यादें
टूटे पत्तों की तरह हो गयी हैं,
जिन्हें बारिश की कोई चाह नहीं...
शायद इन बादलों को भी
दिल का हाल मालूम है...
तुम्हारा आना अब मुमकिन नहीं
तभी मैं सोचा करता हूँ....
ये बारिश आखिर मेरे कमरे में क्यूँ नहीं होती ...
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ReplyDeleteशानदार!!
ReplyDeleteबस ये बात अच्छी नहीं लगी - "कल अभिषेक भाई की एक कविता पढ़ी, एकदम निर्मल बारिश के रंगों से सरोबर..बस उसे पढ़कर कुछ टूटी-फूटी मैंने भी लिख डाली."
कविता मेरी टूटी फूटी थी, आपकी तो शानदार है.
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ReplyDelete@अभिषेक भाई...
जी नहीं.... मैं ये कतई नहीं मानूंगा.....
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अब तो जैसे ये यादें
ReplyDeleteटूटे पत्तों की तरह हो गयी हैं,
जिन्हें बारिश की कोई चाह नहीं...
बहुत सुंदर अहसास मुबारक हो
अरे नहीं ... आप यह भी कर लेते है ... भई वाह बहुत खूब !!!
ReplyDeletebahut sundar rachna....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना..
ReplyDeleteबहुत अच्छा सोचा है ......
ReplyDeleteतो बारिश का मौसम आ ही गया.
ReplyDeleteकुछ थके-हारे बादल मैं भी लाया हूँ,
यूँ ही चलते चलते हथेली पर गिर गए थे...
उन्हें यादों का बिछौना सजा कर दे दिया है
थोडा आराम कर लेंगे...
बादल का मानवीय रूप बहुत हृदयस्पर्शी लगा.
सुमन जी,
ReplyDeleteआपकी विशेषता है आप सभी की सुगंध समेटकर अपने घर ले आते हो और उसे अपनी भावनाओं के पंख दे उसे चारों ओर उड़ने को कहते हो.
पसंद है आपकी ये सक्रियता.
बारिश चाहिए कमरे में , बच्चे तुमहरा जो हाल है न टाईम पे बियाह हो जाता तो , बारिश के साथ साथ कमरे में तूफ़ान भी आ जाता ..तब लिखते रहते न कविता तुम तो समझते
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता...आभार...
ReplyDeleteये बारिश आखिर मेरे कमरे में अब भी क्यूँ होती हैं ...
ReplyDeleteकर दें तो फिर कैसा भाव आएगा ? जब वे नहीं तो फिर बारिस भी क्यों ?
बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
बहुत ही प्यारी कविता....
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (27-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
achchi kavita...
ReplyDeleteतभी मैं सोचा करता हूँ....
ReplyDeleteये बारिश आखिर मेरे कमरे में क्यूँ नहीं होती ...
शुभकामनायें आपको !
waah ..shekhar achhi kavita bani hai.....geeli geeli c
ReplyDeleteयादों से घिरा हुआ मन ...
ReplyDeleteबरसात के साथ ...भीनी भीनी यादें ...!!
सुंदर रचना ..!!
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ReplyDelete.आदरणीय अरविन्द मिश्रा सर...
अच्छी पंक्ति सुझाई आपने, लेकिन इस कविता का भाव यही है कि ये बारिश आजकल इसलिए नहीं होती कि वो नहीं है....
अगर बारिश होतो तो जरूर कहता कि अब ये बारिश क्यूँ होती है....
खैर, बहुत बहुत शुक्रिया....
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ReplyDeleteआदरणीय प्रतुल जी,
आप तो मुझे हमेशा शर्मिंदा कर देते हैं...
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बहुत सुन्दर...बधाई
ReplyDeleteअरे भाई लिखे तो हो बहुत शानदार ...वाकई में....सीना चौड़ा कर सकते हो हमारी सबासी के बाद .;..
ReplyDeleteतुम्हारा आना अब मुमकिन नहीं
ये तुम्हारा कोंन है ? बड़ा सवाल है..
ख़ैर कोई भी हो छोड़ो मुझे क्या उससे हमें तो तुमसे लेना देना है ....
तो देखो कविताई इतनी शानदार किये हो की ,,.
बस उसे मेल कर दो तुम..
वो बादलों पर सवार होके तुम्हारे पास दौड़ी चली आएगी....
समझे की नहीं ..
उठो जल्दी से मेल करो ...वरना......
:)
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी कविता....
ReplyDeleteकरीब १५ दिनों से अस्वस्थता के कारण ब्लॉगजगत से दूर हूँ
ReplyDeleteआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
आज दोबारा पढ़ा ..... इतना अच्छा लगा कि फ़िर से तुम्हारी तारीफ़ करने आ गयी .....शुभकामनायें !
ReplyDeletebehtreen rachna...
ReplyDeleteटूटी फूटी कविता इसे कहोगे तो फिर तो जिसे अच्छी कहोगे, वो क़यामत ढा देगी...:)
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