Saturday, June 22, 2019

कीमत...

"पता है, तुम खुश रहोगे तो मैं हमेशा खुश रहूंगी..."
"लेकिन मेरी ख़ुशी तो तुम्हारे साथ रहने में है..."
"आज न कल तो तुम्हें अकेले खुश रहना सीखना होगा न..."
"पर मैं तो ऐसे खुश नहीं रह पाऊंगा कभी...."
"फिर मैं भी दुखी रहूंगी हमेशा...."
"मैं तुम्हें दुखी नहीं देख सकता...."
"तो फिर खुश रहना सीख लो...."
"ठीक है..."

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"कैसे हो ? "
"ठीक हूँ..."
"सच कह रहे हो न ?"
"हाँ, बोला तो..., तुम खुश हो न.."
"हाँ, तुम खुश हो तो मैं भी खुश...."

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कीमत किस चीज की नहीं होती... हर बात, हर चीज, हर ज़िन्दगी, हर ख़ुशी यहाँ तक की हर दुःख की भी अपनी एक कीमत होती है...  किसी और की ख़ुशी की कीमत का रास्ता कभी-कभी अपने दुःख से होकर गुजरता है... पर इस सबसे ज्यादा मुश्किल है दुखी होकर भी खुद को खुश दिखाना, अब ये हुनर कहाँ से लाये इंसान पता नहीं... ये जहां सच में झूठा है, सच में... यहाँ हम अपनी मर्ज़ी से दुखी भी नहीं हो सकते.. 

कभी किसी ने कहा था कि हमेशा अपने दिल की सुनना आज कोई उसी दिल को रौंद के आगे बढ़ जाने को कह रहा है... दूसरों के लिए वो सब कुछ कह देना उतना ही आसान होता है जितना तपती धूप में किसी का थक कर गिर जाना.... 

Sunday, June 16, 2019

डेडलॉक...

ज़िन्दगी में कई सारे फेज होते हैं, बचपन में जब आप अपने पिता का सम्मान करते हैं, फिर एक वक़्त आता है जब दूरियां बढ़ जाती हैं, आपको आजादी चाहिए होती है और उनको अनुशासन, मन कड़वा होता है उन दिनों, नज़र बचाते फिरते हैं...  फिर एक वक़्त के बाद गर्व भाव आता है कि उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में इतना कुछ किया, सबके लिए... सबका ख्याल रखा... और फिर धीरे धीरे जब उनपर प्यार आना शुरू होता है वो बूढ़े हो चुके होते हैं... फिर झिझक इतनी ज्यादा होती है कि प्यार जतला नहीं पाते... 

आज कल मैं आश्चर्य भाव में हूँ, हर बात पर गुस्सा करने वाले, अपनी जिद पूरी करवाने वाले आज मुझे कुछ नहीं कहते... वो बस चाहते हैं कि मैं जो चाहता हूँ वो मुझे मिले, उन्हें पता है कि अगर ये खुशियाँ मुझे आज नहीं मिलीं तो मैं कितना टूट जाऊँगा... मैं उनकी ख़ुशी के लिए अपनी ख़ुशी से मुहँ भी नहीं फेर सकता क्यूंकि उन्हें पता है इस तरह मैं कभी खुश नहीं हो पाऊंगा, और मैं खुश नहीं हुआ तो वो भी नहीं.... 

चारो तरफ डेडलॉक है, और इसमें सब फंसे हुए हैं... बस इस बात का गर्व है कि उन्होंने मेरी खुशियों की अहमियत समझी और आज मेरे हर निर्णय में मेरे साथ खड़े हैं, वो सिर्फ कहने को मेरे पिता नहीं हैं उन्होंने मेरे लिए सच में खुद को बदल लिया... अफ़सोस बस यही है कि इन खुशियों का महत्व हर कोई नहीं समझता, उनके लिए अजीब तरह की Priorities हैं, और मैं ये भी नहीं कह सकता कि वो अपनी जगह पर सही हैं...

खैर, पापाजी मुझे कई बार ऐसा लगा कि आप शायद भावनाओं को नहीं समझते, आज भी बहुत बार लगता है लेकिन आपने मुझे समझा और मेरी बदकिस्मती भी देखिये बदले में कुछ ख़ास नहीं है देने को... बस एक डेडलॉक दे दिया है मैंने उस भरोसे के बदले में... जब मेरी ख़ुशी में दूसरों को ख़ुशी मिलने लगे तो मैं बलिदान भी कैसे दूं, उससे भला कौन खुश होगा... जब मैं ही खुश नहीं...

काश हर पिता अपने बच्चों के साथ खड़े होते, उनपर उतना ही भरोसा करते, उसी तरह जिस तरह आप मेरे साथ खड़े हैं, मुझपर भरोसा किया है... 

मैं लड़ रहा हूँ, आगे भी लड़ना चाहता हूँ, बस हिम्मत नहीं मिलती....मैं आपको वो ख़ुशी देना चाहता हूँ जो आपको मुझे खुश देखकर मिलती हो... और मेरी ख़ुशी ऐसे पिंजरे में कैद हो गयी है जिसकी चाभी मेरे हाथ में है ही नहीं... 

Tuesday, June 11, 2019

कोमा...

उम्मीदों का क्या है, कभी जगती हैं कभी ख़त्म हो जाती हैं....  हर सुबह एक नयी उम्मीद के साथ शुरू होती है और रात ढलते ढलते दिल बुझता जाता है, जाने क्या होगा... जाने क्या होने वाला है... ज़िन्दगी की ये सड़क जैसे अगले मोड़ पर थम सी जाने वाली है... हर रोज आँखों से बहते इस इंतज़ार में आगे के रास्ते बह चुके हैं....

कई साल पहले तुमने एक बंद कमरा खोला था, लगता है मैं आज भी उसकी चौखट पर खड़ा हूँ, पर इस बंद कमरे की एक-एक ईंट अब मेरी रग-रग में बहती है, मेरी दुनिया अब यहीं सिमट के रह गयी है.. मेरे साथ यही एक तो दिक्कत है, मुझे इश्क़ के आलावा कुछ समझ ही नहीं आया... तुम्हें हर रोज उतनी ही शिद्दत से गले लगाने की ख्वाइश थी, पर इन ख्वाहिशों का क्या है, कुछ पूरी होती हैं और कुछ इसलिए बनी होती हैं ताकि टूट सकें... 

कभी सोचती हूँ की कैसा होता अगर बंद कमरा बंद ही रहता ....या फिर बिना कुछ कहे मै तुमसे दूर चली जाती ,पता नहीं मै किस चीज से भाग रही थी शायद अपने आप से और अपनी जिंदगी से ,मै सब कुछ खोने वाली थी और शायद जिंदगी में तुम्हे खोकर कुछ नहीं बचता मेरे पास .....अब तुम मेरे साथ हो तो लगता है कि मै कहीं भी अकेली नहीं हूँ तुम साथ न होकर भी साथ होते हो हमेशा ....... :-)

ये जो ज़िन्दगी के ख्व़ाब हैं न, वो टूटते हैं तो बहुत तकलीफ होती है और मुझे तो बहुत ही ज्यादा... बहुत वक़्त बीत गया है इस ख्व़ाब को सीने से लगाये हुए, ये अब मेरे खुद के वजूद का हिस्सा हैं.. इसके इतर ज़िन्दगी हो शायद मुमकिन लेकिन वैसी तो नहीं ही होगी जिसकी चाह थी हमेशा से... लगता है, दुनिया में सब छोड़ जाएँ बस तुम न जाओ कहीं... तुम्हारे लिए क्या मुमकिन है क्या नहीं ये तो शायद तुम्हीं जानों, तुम्हारी बातों के इर्द गिर्द कई सारी जिंदगियां हैं, कई सारे रिश्ते हैं.... मेरे से कहीं पुराने... मेरा तो जो होना है हो ही जाएगा....

पता नहीं, अगले जन्म में भी तुमसे मिलने की ख्वाइश रखूँ या न रखूँ... अगर कहीं अगले जन्म में भी यूँ भी बिछड़ना लिखा हो तो... नहीं मिलने का तो कोई दुःख नहीं होगा, पर यूँ बार-बार बिछड़ना न हो पायेगा... 

सुनो न, मत मिलना अब कभी... अलविदा.... 
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