Monday, April 14, 2025

इक पुरानी तारीख के दस्तख़त.

पहले अगर हफ्ता भर कुछ न लिखो तो मन अशांत हो जाता था, अब साल बीत गया और कुछ भी लिखने की तलब नहीं हुई. उस बीते दौर में कुछ दिमाग में आये तो तुरंत लिखने बैठ जाता था. अब ख्याल भी ऐसे वक़्त आते हैं कि लिख नहीं सकते. फिर जब तक फ्री हो सब भूल-भाल जाते हैं. इसके उपाय में एक व्हाट्सप्प ग्रुप बनाया था बस खुद के साथ, जहाँ रैंडम थॉट्स लिख सकूं. 

पर वो छोटे-छोटे थॉट्स बिना किसी सर-पैर के अलग थलग से दिखाई देते हैं. उनको जोड़-जाड़ कर बस कचरा ही बन सकता है .. 

मैं ऐसा कैसे हो गया, कब हो गया पता ही नहीं चला, अब सब जैसे मैकेनिकल सा है.  हमेशा, हर वक़्त बस एक के बाद एक काम ख़त्म कर देने की हड़बड़ी हो गयी है आज कल... पढ़ना छूट गया, लिखना छूट गया, फोटोग्राफी भी कबकी छूट जाती अगर शिवी नहीं होती. कितनी ही बार सोचा कि  दोबारा लिखना शुरू करूंगा पर अब हो नहीं पाता... अगर ज़िन्दगी में बचा रह गया तो बस काम, जैसे एक फिक्स दिनचर्या और उसमें आँख बंद करके बहते जाना... 

ठहराव कहाँ से लाऊँ पता नहीं. मौसम के इसी दौर में ठहराव मिल गया था कभी, अब शायद कभी न मिले. मैं अचानक से वैसे ही सिंपल सा हो जाना चाहता हूँ जो किसी बेवकूफ की तरह एक अनदेखे से ख्वाब के पीछे भाग पड़ता था. 

अब लगता है कोई भींच के मुझे पकडे और खूब ज़ोर से झकझोर दे और वो सारे पुराने से ख्वाब हमेशा-हमेशा के लिए मेरी आँखों से झड़ जाएँ. इतना वक़्त हो गया है और मैं अब तक इस नयी ज़िन्दगी से तालमेल ही नहीं बिठा पाया हूँ और अक्सर किसी कोने से टकरा के गिर पड़ता हूँ, खुद से ही उठता हूँ. लगता है कहीं दूर चला जाऊं यहाँ से जहां कोई सवाल जवाब न हो, अब किसी को कुछ समझाने का मन नहीं करता... लगता है जाने दो, जैसा समझे गलत समझे चाहे भांड में जाए. 

जिस नुक्कड़ पर रुकना था जब वहीँ फिसलन थी तो बाकी जगह जबरदस्ती का एड़ी घिस घिस कर क्या मिलेगा भला. मेरी भीगी सी रूह पर जो निशान छोड़ गया है अतीत, वो मिटाये नहीं मिटता. 

ज़िन्दगी में कितना कुछ करना था, ऐसा नहीं कि मैंने कभी चाहा कि मेरे कुछ किये पर कोई ताली बजाये लेकिन इन तालियों की ऐसी आदत हो गयी थी कि अब कान तरस जाते हैं.. मैंने वादा किया था कि अब वो किरदार मेरी कहानियों का हिस्सा कभी नहीं बनेगा. वादा टूट गया, शिकायत भी कौन करेगा भला, वो जो खुद हज़ार वादे तोड़ कर हमेशा के लिए चला गया. अब तो कभी-कभी ये याद भी नहीं आता कि वो वादे उसने किये भी थे या बस मैं खुद ही अपने ख्यालों में गढ़ लिए थे.. 

अब और कुछ करने का दिल नहीं करता.. फिर भी करता हूँ बस इक उम्मीद लिए, और शिवी आज कल ऐसे WOW  !! करती है न कि बस लगता है ज़िन्दगी के सारे लम्हें बस वहीँ सिमट के रह जाएँ.. 

कभी-कभी खुल कर बात करने की तलब लगती है, काश सिर्फ एक दोस्त के तौर पर ही सही वो किरदार होता ज़िन्दगी में तो कम से कम ज़िन्दगी के कमज़ोर क्षणों में कहीं कोई दीवार तो होती जहाँ मन की बातें बतला सकता. 

ज़िन्दगी में एक काश ही बाकी रह गया है अब तो .. इस उम्र में अब नए दोस्त भी कहाँ मिलेंगे.  I regret that I lost you as a friend... 

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