परिवर्तन,
ये शब्द और इसका निर्माण
उतना ही सहज है
जितना सुबह के बाद शाम,
शाम के बाद रात,
इसमें कुछ भी अजीब नहीं
कुछ भी असंभव नहीं...
जो आज है वो कल नहीं होगा
जो कल है वो आज नहीं हो सकता,
जिससे आप आज प्रेम करते हैं
उसका बदलना अवश्यम्भावी है,
प्रेम न बदले उसका भार
अपने अंदर के परिवर्तन को उठाना होगा...
परिवर्तन, आज मुझमे है कल सबमे होगा,
सब के पैर परिवर्तन की धुरी पर हैं...
बढ़िया
ReplyDeleteबहुत बढ़िया शेखर
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