प्यार- कई लाख जन्म |
चेम्ब्रा पीक याद है, ये फोटो वहीँ ली थी. इसको देख कर ख्याल आया कि तुम्हें भूलने में कितना वक़्त लगेगा आखिर.
न ही अब कोई एकांत है, न ही कोई सन्नाटा बस अब अकेलापन है जो हर रोज़ कचोटता है. ऐसा लगता है जैसे मुझे तुमसे बहुत सारी बातें करनी है, अपने सुख-दुःख तुम्हें बताने हैं. एक दोस्त की तरह ही सही, तुम्हारे जैसे बेहतरीन दोस्त का खो जाना मेरे इस जन्म का सबसे बड़ा नुक्सान है .
अक्सर एक निर्वात में खुद को पाता हूँ. वहाँ बेहिसाब कहानियां हैं, अधूरी कहानियां. उसमें से बस एक सम्पूर्ण कहानी है, तुम्हारा वो क्षणिक सा साथ. ऐसा क्यों होता है जब जिनका मुश्किल दिनों में साथ दिया हों वे अक्सर ज़िन्दगी आसान होने पर एक काली सरल रेखा खींच, मुंह मोड़ कर चल देते हैं. इस विरह के बाद, उससे जुड़ी जीवन की जटिलतायें समाप्त हो जानी चाहिए किन्तु मनुष्य अजब प्राणी है कि दुर्भिक्ष में पेड़ से चिपके हुए कंकाल की तरह स्मृतियों को सीने से लगाये रखता हैं.
तुम्हारी यादें जैसे एकदम अंदर तक समा गयी हैं, कभी कभी आश्चर्य होता है कि कैसे इतने सालों के बाद भी तुम्हारी वो सारी छोटी-छोटी बातें भी याद रह गयी हैं. मुझे पता है, अब तुम्हारी बातें और उनका जिक्र मुझे नहीं करना चाहिए.
अब जब तुम्हारे बारे में एक और पोस्ट लिखने बैठा हूँ, खुद को किसी उथले पानी में फंसी मछली से तुलना करने का दिल करता है, पर इस पानी के समांनांतर एक बहुत ही खारा समुद्र है जहाँ वैसे भी मेरा अस्तित्व अधूरा ही रहेगा, क्यूंकि मुझे हमेशा से शांत और कलकल करती नदियाँ ही रास आयी हैं.
इस एकांत का विस्तार क्षितिज के अंत तक है, लेकिन इसके अंदर असंख्य कुचले हुए सपने हैं, बेवजह के समझौते हैं, अदृश्य बंधन हैं. तुम्हारी एक स्मृति आती है और अवसाद नाम का कीड़ा तुरंत डंक मारने लगता है. मैं इसीलिए भी मन मारकर लिखने बैठ जाता हूँ, तुमने हमेशा कहा है कि लिखो.. सारी संभावनाएं हैं कि बिखरे हुए शायर का लिखा हुआ सालों-साल पढ़ा जाता रहे, लेकिन मुझे कोई क्यों भला आज से सौ साल बाद पढ़ना चाहेगा.. और इस ठिठुरती हुई सर्द में कब तक मैं अपना लिखा बचा रख पाऊंगा ..
हर बार ये सोचता हूँ कि क्या तुम्हें मुझसे बस इसलिए प्यार हुआ था, क्यूँकि मुझे शब्दों को सलीके से लिखने का हुनर था... एक इंसान के तौर पर आखिर क्या था कि तुम सब कुछ भूल-भाल कर मेरी तारीफों के पुल बाँध दिया करती थीं. क्यूँ मेरे काँधे, आज भी तुम्हारा टिका हुआ सर खोजते रहते हैं, क्यों तुम्हारी छोटी से छोटी याद मुझे आज भी झंझोड़ देती है...
मैंने अपने आपको लिखने के बारे में सिर्फ़ इतना ही कहा है कि, मैंने तुम्हारे लिए तब लिखना शुरू किया था जब नंगे पैरों के तले घास की ओस की बूँदें हुआ करती थी, अब घास पर पैर रखो तो घास भी जैसे चुभती है... इन सारी बीती बातों का कोई हिसाब नहीं है, न ही कभी होगा...
ये शहर हमेशा वो लिखावट याद रखेगा और तुम मेरी हर एक अधूरी कहानी का हिस्सा रहोगी, ये एक आखिरी सत्य है... इस एक आखिरी बात के साथ तुम्हारे किरदार को अपनी कहानियों से अलविदा कर रहा हूँ, पता नहीं उस किरदार के बिना मेरी कितनी कहानियां पूरी हो पाएंगी. लेकिन इन कहानियों का कोई मोल नहीं जब इन्हें पढ़कर हमारे आँखों में ख़ुशी की चमक की बजाय ढेर सारी नमी आ जाती हो... एक आखिरी बार अपने मन के गुबार को निकाल दूँ तो तो शायद चैन से जी पाऊं.
अब हम वापस से जैसे अजनबी से होके रह गए हैं. पर कहीं न कहीं तुमसे मुलाकात की उम्मीद आज भी है. सही है या गलत पता नहीं. उम्मीद रखने में कोई बुराई भी नहीं होनी चाहिए... चाहे वो मुलाक़ात, इस ब्रह्मांड की अनंत धुरी पर ही क्यों न हो.
खैर, उम्मीद और अफ़सोस की बात करने का कोई मतलब नहीं, आज के लिए बस जन्मदिन मुबारक हो, तुम आज भी मेरी दुआओं में हो, हमेशा रहोगी.
मुझे याद है तुमने कहा था कि तुम्हें हमेशा मेरी विश का इंतज़ार रहेगा. मुझे पता है तब से अब तक सब कुछ बदल चुका, फिर भी.