Friday, April 19, 2024

वो एक दिन और उसकी याद...

मैं उससे कहता हूँ, कि चाहे कितने दुःख हों कम से कम ज़िंदा तो है, ठीक ठाक नौकरी है, घर है...  विकास खाली से मंडराते आसमां को निहार कर कहता है कि उसके बिना ज़िन्दगी जीने से बड़ी सजा भी क्या होगी भला... 

एक शाम जब वो यूँ ही आके लिपट सी गयी थी, ज़िन्दगी के उस एक छोटे से हिस्से में, वो कई बार टुकड़ा टुकड़ा होके बिखर जाना चाहता है.... 

उसे भी नहीं पता नहीं उसे क्या चाहिए, उसने जैसे सब कुछ कोशिश करके देख ली.... जाने किस रास्ते और किस मोड़ पर जाके सुकून मिलेगा... क्या एक closure नहीं मिलने की बेचैनी है, और क्यों नहीं है closure भला... उसने तो यही कहा था न, इससे पहले कि  कहीं दूर चली जाओ जाते-जाते गले लगाते जाना... उसने गुज़ारिश के मुताबिक़ लगा लिया था गले, और विकास को भी शायद कहीं न कहीं ये इल्म था कि  शायद ये आखिरी मुलाकात है तभी तो वो अचानक से भागकर नीचे दरवाज़े तक आया था... 

ज़िन्दगी में इतने माइलस्टोन के बीच भी वो एक ख़ास वो इक ख़ास दिन भुलाये नहीं भूलता, लोग कहते हैं कि एक याद के ऊपर अगर दूसरी अच्छी याद चस्प कर दो तो शायद ये दिन के मायने बदल जाएंगे, उस एक कोशिश में अपने कैलेंडर में उसके आने के दिन को एकऔर माइलस्टोन दे दिया... 

विकास कहता है अंशु सिर्फ एक हमसफ़र नहीं थी... एक सबसे प्यारी दोस्त जिससे कोई भी सुख-दुःख बेपरवाह होकर बांटा जा सकता था, जिसके पास उसके लिए हमेशा वक़्त था... एक रीडर जिसे उसके कुछ भी लिखे का बेसब्री से इंतज़ार रहता था,  जैसे लिखने से पहले ही पढ़ ले.... एक बेहतरीन ट्रेवल पार्टनर, जिसे हर नयी जगह देखने और उसे देखकर Wow !! कहने की तलब लगती हो... चाहे साथ फिल्म देखना हो, साथ किताबें पढ़ना या गाने सुनना, उसके साथ सब कुछ इतना परफेक्ट था... कि अब लगता है कि ज़िन्दगी के कई सारे खांचे एक साथ खाली हो गए और उसे भरने को कोई नहीं... 

पता है, एक रात बड़ा अजीब सा सपना देखा था... कम से कम बस वो इक सपना सुनने के लिए ही आ जाओ... क्या करूँ जिक्र सिर्फ उस एक शाम का, बस वो एक शाम वापस से जीने मेरे साथ आ जाओ... लालबाग़ में बारिश में फंसने के लिए आ जाओ... कभी आ जाओ पिज़्ज़ा लेकर मेरे जन्मदिन पर, या राजाजीनगर के पार्क में मेरे लिए एक कार्ड बनाकर आ जाओ, नहीं करूंगा गुस्सा कसम से और रोक लूँगा इस बार तुम्हें कार्ड फाड़ने से... छोटी ऊँगली पकड़े  "तैय्यब अली प्यार का दुश्मन" गाने के लिए आ जाओ... मेरे लिए फिर से कढ़ी-चावल बनाने आ जाओ... अभी घर से आयी होगी न तुम, तो आ जाओ मेरे लिए पेड़ा लेकर... मुझे बस इक बार सडू कहने ही आ जाओ.... 

या अगर ये सब मुमकिन नहीं तो आ जाओ कहने बस एक अलविदा... फिर से... 
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