दिन और वक़्त तो याद नहीं लेकिन मैं बहुत छोटा था, एक बार जब पापा दाढ़ी बना रहे थे तो मेरा हाथ ब्लेड से कट गया था, पापा का वो परेशान चेहरा और माँ की वो नम आखें... जब तक मेरे चेहरे पर मुस्कराहट वापस नहीं आई थी तब तक उन्हें भी चैन नहीं आया था......
पापा के कन्धों की वो सवारी, जब मैं अपने आपको सबसे लम्बा समझने लगता था.. जैसे कोई राजसिंहासन मिल गया हो... वो ख़ुशी जो अब शायद दुनिया की सबसे महंगी कार में बैठने पर भी न मिले...
मैं कुछ ७-८ साल का रहा हूँगा, टीवी देख रहा था...मंझले भैया ने कहा टीवी क्या देख रहे हो चलो आज तुम्हें क्रिकेट खेलना सिखाता हूँ... उनका प्रयास मुझे टीवी से दूर करना था, टीवी से तो दूर हो गया लेकिन क्रिकेट का ऐसा चस्का लगा कि बस उन्ही का सिखाया हुआ खेलता आया हूँ...
बचपन में अपने बड़े भैया से काफी करीब था, उनके साथ खेले हुए वो सारे खेल याद हैं, चाहे उनके पैरों पर झूलना हो या उन्हें गुदगुदी लगाकर भाग जाना... उन्हें गुदगुदी भी तो खूब लगती थी, या ये भी हो सकता है कि मुझे खुश करने के लिए ऐसा दिखावा करते होंगे... पर जो भी था ये खेल बहुत मजेदार था....
ये बचपन की यादें बहुत कमाल होती हैं छोटी छोटी चीज़ो मे छुपी होती हैं।
ReplyDeleteयादें धुंधली नहीं होती दोस्त.अगर होतीं तो आपको व्वो सब याद न होता जो लिखा है.
ReplyDeleteसमय ज़रूर बीत जाता है पर यादें हमेशा ज़ेहन में ताज़ा बनी रहती हैं.
यशवंत जी ने सही कहा ये यादे धुंधली नहीं होती पर और गहरी होती जाती है स्मरति पटल पर और शायद ये यादे ही है जो आपको जीवन के झंझावातो से लड़ना सिखाती हैं.
ReplyDeletechhoti chhoti khushi ... yaadon ka khoobsurat kaarwaan
ReplyDeleteYADEN BHI KAMAAL KI HOTI HAI...JO KABHI NAHI BHOOLTI
ReplyDeleteचलो अच्छी बात ये है कि व्यस्त होने के बावजूद भी लिख रहे हो.... यादों को ऐसे ही लिखते रहो...... इन्हें पढ़ना अच्छा लगता है......
ReplyDeleteसमय ज़रूर बीत जाता है पर यादें हमेशा ज़ेहन में ताज़ा बनी रहती हैं|
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा आपने
ReplyDeleteतीन से घृणा न करो
ReplyDelete1 रोगी से
2 दुखी से
3 निम्न जाती से
मुहम्मद साहब
बचपन की मधुर यादें स्मृति पटल पर अंकित हो जाती हैं.बचपन,जवानी बुढ़ापा शरीर के धर्म हैं जिनको एक के बाद एक आना ही होता है.मन पुरानी स्मृतियों में विचरण करके भी सुख या दुःख का एहसास करता रहता है. आभार सुन्दर संस्मरणों से अवगत कराने के लिए.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आयें,आपका स्वागत है.
ऐसे ही लिखते रहियें .....मन का बच्चा ताउम्र बच्चा बना रहे :-)))
ReplyDeleteबचपन की यादें हमारी सबसे अमूल्य... आँखे बंद करो तो आज भी जीवंत हो उठती हैं.. बहुत अच्छा लिखा है आपने बिलकुल सजीव चित्रण बचपन का..
ReplyDeleteyaadein......bhulaye nahi bhulati..
ReplyDeleteबचपन यूँ ही स्मृतियों से तांक -झाँक करता रहता है !
ReplyDelete:) :)
ReplyDeleteबचपन की यादें अनमोल होती हैं!
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com