यही एक तस्वीर मिली जिसमे आपने मुझे पकड़ा हुआ है... |
मेरा बचपन तो बस यूँ देखते देखते ही गुज़र गया, याद है माँ, मैं हमेशा आपका आँचल पकड़े पकड़े चलता था, सब कहते थे मैडम इसको कब तक यूँ ही चिपका कर चलते रहिएगा... आखिर एक दिन आपने मुझसे अपना आँचल छुडवा ही लिया... मुझे आज भी याद है मैं उस दिन कितना रोया था, तब से आज तक बस रोता ही रहा हूँ... न जाने कितनी जगह वही सुकून, वही छावँ ढूँढता हूँ, लेकिन ऐसा कहीं हो सका है भला... यहाँ तो चारो तरफ बड़ी तेज धूप है, मेरा शरीर मेरी आत्मा सब कुछ झुलसी जा रही है...
या खुदा तू इस फेसबुक से कुछ सीखता क्यूँ नहीं, देखो न ये कितने परिवर्तन लाता रहता है... और ये टाईम-लाईन का ऑप्शन तो हमलोग को भी मिलना चाहिए... मुझे देखना है वो वक़्त जब माँ मुझे अपनी गोद में उठाए घूमती होगी, जब पापा की ऊँगली थामे मैंने चलना सीखा होगा... जब मेरे रोने की आवाज़ सुनकर सब मुझे दुलारने लगते होंगे... जब दुनिया की इन समझदारी भरी बातों से मेरा कोई वास्ता नहीं था, जब खुशियों का मतलब केवल माँ की वो मुस्कराहट थी...
मुझे शिकायत है तुम्हारी ज़िन्दगी की इस बनावट से... इसमें बैक डोर से इंट्री का कोई ऑप्शन क्यूँ नहीं... ओ खुदा तुमने "क्यूरियस केस ऑफ़ बेंजामिन बटन" नहीं देखी क्या ?? ऐसा ही कुछ संशोधन अपनी किताब में भी लाओ न... मैं भी यहाँ से रिवर्स में जीना चाहता हूँ... बस अब बहुत हुआ, अब और आगे नहीं जाना... मुझे फिर से माँ की वही गोद चाहिए, पापा के कंधे की सवारी और आस पास मेरा ख्याल रखने वालों की भीड़...
माँ आपकी फेवरेट प्रार्थना याद है न आपको...
हम न सोचें हमें क्या मिला है,
हम ये सोचें किया क्या है अर्पण,
फूल खुशियों के बांटें सभी को,
सबका जीवन ही बन जाए मधुवन...
अपनी करुणा का जल तू बहाके,
कर दे पावन हर एक मन का कोना..
ए भगवान् अगर सबको एक न एक दिन मरना ही है तो, मेरी एक आखिरी ख्वाईश
कबूल कर लो न प्लीज.... माँ का आँचल पकडे ही मैं अपनी सांस की आखिरी गिरह
खोलना चाहता हूँ...
देख लो आज मदर्ज़ डे नही है फिर भी मै आ गयी। बहुत सुन्दर भाव हैं शुभकामनायें आशीर्वाद। और आपकी माँ को भी सलाम जिस ने इतना प्यारा बेटा इस ब्लागजत को दिया।
ReplyDeleteकहाँ से शब्द लाऊं....या शब्दों की आवशकता ही नहीं है...कुछ भावनाएं यूँ ही समझ आ जाया करती हैं...
ReplyDeleteआपको और आपकी लेखनी को ढेर सा आशीष...
शुभ आशीष.
ReplyDeletespeechless!
ReplyDeleteगलत ! आगे की सोचो । ग्रो अप मुन्ना ।
ReplyDeletegrow hokar kya karoonga sir ??? kya maa ka wo aanchal milega ???
Deleteगलत ! आगे की सोचो । ग्रो अप मुन्ना ।
Deleteinsan chahe jitna bada hi kuo n ho jaye umra me ya ohde me ma ke anchal ki jaroorat sabko rahti hai...wahi ek jagah hai jaha hum apne sare dukh dard bhool jate hn ....koi bhi cheej usko replace nahi kar sakti.....
मां की जगह दिल में अलग रहती है । उसे मानसिक कमजोरी नहीं बनाना चाहिए ।
Deletemaaf kijiyega.... lekin maa ko yaad karna aur unki god mein sar rakhkar chain ki neend sone ki baat sochna maansik kamzori hai, ye mujhe aaj hi pata chala... khair is tarah ki kamzori hamesha bani rahe, bas yahi umeed rakhta hoon....
Deleteनिः शब्द कर दिया दोस्त आपने।
ReplyDeleteकल 23/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
baaki sab mast h except da last line...
ReplyDeletebtw tu bachpan me cute lagta tha.. bade ho k kya ho gaya? :P
मन को छू गई शेखर भाई
ReplyDeleteबहुत खूब ....माँ के लिए ये श्रद्धा हूँ ही बनाये रखे ...आँखे नाम हो गई ...ईश्वर की आशीष बनी रहे ...
ReplyDeleteभगवान को अब सुनना चाहिये, टाइमलाइन जैसा कुछ हो..
ReplyDeleteक्या करें हम सब रिवर्स गियर में जाना चाहते हैं पर जा नहीं पाते ..... ढेर सा आशीष !!!
ReplyDeleteशेखर!
ReplyDeleteकुकहह कह सकूं ऐसी हालत नहीं मेरी.. और कुछ कह पाऊं ऐसे शब्द नहीं मेरे पास!! मगर जैसे टाइम लाइन जैसी कोइ चीज़ नहीं दुनिया में, टाइम मशीन जैसी कोइ मशीन नहीं, वैसे ही अपने दिल की स्थिति बताने वाला तरीका नहीं!! निशब्द हूँ!!!
काश सभी की ज़िंदगी मे एक रिवेर्स बके स्पेस जैसा कोई बटन होता तो क्या बात थी संवेदन शील पोस्ट....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeleteमाँ को सलाम| माँ के लिए ये श्रद्धा बनाये रखे|
ReplyDeleteदिल को छू लिया...
ReplyDeleteमाँ की गोद में सर रखने जैसा सुकून और कहीं नहीं
माँ के लिए ये श्रद्धा यूँ ही बनाये रखें ,ईश्वर का आशीष बना रहे ...
ReplyDeleteहर एक शब्द दिल को छू गई! भावपूर्ण प्रस्तुती!
ReplyDeleteदिल को छू लिया...शेखर भाई
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