बहुत पहले पूजा जी की एक पोस्ट पढ़ी थी... रहना नहीं देश बिराना रे... किस तरह बंगलौर में होली खेलते इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों पर पुलिस ने कार्यवाई की थी... सच में बहुत कुंठित हुआ था मन वो पढ़ के... और इस बार जब मैं बंगलौर था तो यही सोच सोच के आधा हुआ जा रहा था कि बिना होली के रहूँगा कैसे... क्या रंग, गुलाल हुडदंग कुछ भी नहीं होगा... खैर कोशिश करना तो हमारा फ़र्ज़ था, तो होली के एक दिन पहले बाकायदा रंग और गुलाल खरीदने का कार्यक्रम बना... शाम को अपनी दोस्त पुष्पा के साथ निकले और थोड़ी खोज पड़ताल के बाद केवल गुलाल ही खरीद पाए... अब हम तो ठहरे बिहारी, बिना पानी वाले पक्के रंग के बिना आखिर होली खेलें तो कैसे... लेकिन क्या करते, मन को बहला लिया... वो कहते हैं न "समथिंग इज बेटर देन नथिंग..."
तो अब इंतज़ार था होली की सुबह का, पता चला कि होली के दिन हमारे दोस्तों की क्लास है institute में... ऐसा लगा कि पूजा जी की बात सच हो जायेगी... होली खेलना तो दूर यहाँ तो होली के दिन छुट्टी भी नहीं है... लेकिन धीरे धीरे सब ठीक होने लगा, सब ने जाकर रिक्वेस्ट की कि क्लास की छुट्टी की जाए और होली खेलने की परमिशन भी दी जाय... और दोनों ही मांगें मंज़ूर कर ली गयीं...
अरे हाँ, सुबह सुबह नास्ते की टेबुल पर पता चला था कि कुछ लड़के पानी वाले पक्के रंग भी खरीद कर लाये हैं, ऐसा लगा जैसे प्यासे कौवे को पानी से भरा घड़ा दिख गया हो... आनन फानन में उनसे दुकान का पता लिया और पूरा पता सुने बिना ही निकल पड़े... सडकों पर रोज की तरह चहल पहल, जबके बंगलौर में आधी से ज्यादा आबादी उत्तर भारतियों की है फिर भी होली के कोई लक्षण नहीं .. सभी साफ़ सुथरे कपड़ों में अपने अपने ऑफिस की तरफ जाते हुए दिख रहे थे... सच में लग रहा था किसी पराये देश में आ गए हैं... खैर हमें उनसे क्या जो खुद ही अपने त्यौहार भूल गए हों, हम तो अपनी ही धुन में चले जा रहे थे....साथ में अनिल भी था, दोनों उतने ही बेचैन थे रंगों के लिए... काफी खोज के बाद भी जब दुकान नहीं मिली तो वापस दोस्तों को फोन मिलाया तो पता चला कि हम कहीं और ही पहुँच गए हैं, उन्होंने बताया कि इनफ़ोसिस के पास कोई अयप्पा टेम्पल है उसी के आस पास रंग मिलेंगे... हम भी लोगों से पूछते पूछते उधर की तरफ बढ़ चले, किसी तरह हमें वो दुकान भी मिली और रंग भी... अब हम इतने थक गए थे और देर भी हो रही तो वहां से जल्दी से ऑटो करके institute पहुंचे... वहां तो पहले से ही माहौल बन चुका था.. फिर क्या उसके बाद जो हुआ, उसको बताने के लिए नीचे की तस्वीरें ही काफी हैं... तस्वीरें बड़ी करके देखने के लिए उनपर क्लिक करें...
तो अब इंतज़ार था होली की सुबह का, पता चला कि होली के दिन हमारे दोस्तों की क्लास है institute में... ऐसा लगा कि पूजा जी की बात सच हो जायेगी... होली खेलना तो दूर यहाँ तो होली के दिन छुट्टी भी नहीं है... लेकिन धीरे धीरे सब ठीक होने लगा, सब ने जाकर रिक्वेस्ट की कि क्लास की छुट्टी की जाए और होली खेलने की परमिशन भी दी जाय... और दोनों ही मांगें मंज़ूर कर ली गयीं...
अरे हाँ, सुबह सुबह नास्ते की टेबुल पर पता चला था कि कुछ लड़के पानी वाले पक्के रंग भी खरीद कर लाये हैं, ऐसा लगा जैसे प्यासे कौवे को पानी से भरा घड़ा दिख गया हो... आनन फानन में उनसे दुकान का पता लिया और पूरा पता सुने बिना ही निकल पड़े... सडकों पर रोज की तरह चहल पहल, जबके बंगलौर में आधी से ज्यादा आबादी उत्तर भारतियों की है फिर भी होली के कोई लक्षण नहीं .. सभी साफ़ सुथरे कपड़ों में अपने अपने ऑफिस की तरफ जाते हुए दिख रहे थे... सच में लग रहा था किसी पराये देश में आ गए हैं... खैर हमें उनसे क्या जो खुद ही अपने त्यौहार भूल गए हों, हम तो अपनी ही धुन में चले जा रहे थे....साथ में अनिल भी था, दोनों उतने ही बेचैन थे रंगों के लिए... काफी खोज के बाद भी जब दुकान नहीं मिली तो वापस दोस्तों को फोन मिलाया तो पता चला कि हम कहीं और ही पहुँच गए हैं, उन्होंने बताया कि इनफ़ोसिस के पास कोई अयप्पा टेम्पल है उसी के आस पास रंग मिलेंगे... हम भी लोगों से पूछते पूछते उधर की तरफ बढ़ चले, किसी तरह हमें वो दुकान भी मिली और रंग भी... अब हम इतने थक गए थे और देर भी हो रही तो वहां से जल्दी से ऑटो करके institute पहुंचे... वहां तो पहले से ही माहौल बन चुका था.. फिर क्या उसके बाद जो हुआ, उसको बताने के लिए नीचे की तस्वीरें ही काफी हैं... तस्वीरें बड़ी करके देखने के लिए उनपर क्लिक करें...
बहुत सुन्दर, सभी होली के रंग में सराबोर। बधाई।
ReplyDeleteहोली की ढेर सारी बधाई शेखर, बंगलौर बड़ा स्ट्रेंज बिहेव करता है यार, हमने भी २ होलियाँ स्वाहा की हैं इस शहर के लफड़े में, पर अच्छा लगा तुमने मस्त एन्जॉय किया....शुभ होली!!!!
ReplyDeleteYaar same maine Gurgaon main bhi dekha, wahan holi ka mahaul hee nahin tha. Jab apne shehar Faridbad pahucha toh logon ko holi khel bahut accha laga. Main jyada der nahin khel paya per jitni bhi khela,accha laga. Sach main apna desh ab paraya lagne laga hain.
ReplyDeleteशेखर जी! यह आपके पिछले कई पोस्ट से चले आ रहे मूड से अलग हटकर पोस्ट है.. शायद होली का चमत्कार ही कुछ ऐसा है.. चित्रों से सजी यह होली-स्मृति भी अच्छी लगी!
ReplyDeleteतस्वीरें देख के लग रहा है होली जोरदार रही है आपकी ...
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई ...
सुन्दर चित्रावली से सजी बढ़िया प्रस्तुति...
ReplyDeleteहोली की बधाईयाँ...
आप कहाँ श्रीमान..सभी रंगे हैं..
ReplyDeleteहमें बैंगलोर की पहली होली बहुत अखड़ी थी...उसके पहले दिल्ली और पटना में थे. पटना में तो ऐसा हुडदंग मचाते थे कि क्या कहें. यहाँ उस साल बैंगलोर में कोई जान पहचान का भी नहीं था. होली असल में दोस्तों का त्यौहार है...जहाँ चार लोग मिल गए होली अच्छी हो जाती है. इस बार तो बस एक ही दोस्त आया था...फिर हमने दो पड़ोसियों को लपेटे में ले लिया...तो होली अच्छी ही रही.
ReplyDeleteअगली बार अगर इत्तिफाकन होली में बैंगलोर में रहे तो इंदिरानगर के पास थिप्पासांद्रा मार्केट है...वहां खूब सारे रंग, पिचकारी सब मिलता है. इधर आओगे तो पुआ वगैरह भी खिला दूँगी :)