Wednesday, February 25, 2015

हर ज़र्रे से इश्क है मुझे....

प्यार कभी अधूरा नहीं होता,
वो हमेशा उतना ही पूरा होता है
जितनी कि
जिस्मों की जद्दोजहद के बाद 
उस आखिरी-क्षण की उत्तेजना...

****

मेरे शब्दों के कोई
सिर-पैर नहीं होते,
जब तक अंदर रहें
मन के कोने में
बिलबिलाते रहते हैं,
मैं इन शब्दों को पचा नहीं पाता
अपच से पीड़ित मेरे मन से निकले  
इन अनंत शब्दों के बीज से
उग आते हैं कई घने जंगल,
मैं उन जंगलों में बैठ कर
अपने अस्तित्व को नकार दिया करता हूँ....  

****

कभी-कभी सुबह खिड़कियों से आती रोशनी
अच्छी नहीं लगती
मैं रहना चाहता हूँ अंधेरे में
बस और थोड़ी देर,
इस अंधेरे को अपने अंदर
खीच लेना चाहता हूँ
सिगरेट के उस आख़िरी कश की तरह....

**** 

धरती खीच लाती है
हर रोज इस धूप को,
मैं खुद को रज़ाई में गोतकर
तैरना चाहता हूँ
इस गुरुत्वाकर्षण के नियम के खिलाफ,
इस खिड़की से आती हुई
इस नुकीली धूप के सिरे को उधाड़कर
जला देना चाहता हूँ... 

1 comment:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26-02-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1901 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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