Tuesday, April 14, 2015

एकम एक, एक दूनी दो, एक तिया तीन...

आज की तारीख देख रही हो न.... तुम मानो या न मानो ये तारीख़ तो महज एक छलावा भर है... किसने कहा कि तुम्हें इसी दिन मुझसे प्यार हुआ था... क्या पता एक हफ्ते पहले हुआ हो, या एक महीने पहले या फिर सात जन्म पहले ही... हाँ बस ये तारीख ही है जो हमें याद है सलीके से, बाकी के जज़्बातों को तो तारीखों का जामा पहनाना मुश्किल ही है...
अजीब बात है न, हम ये तारीख ही तय नहीं कर पाते कि हमें प्यार हुआ कब था... अब प्यार कोई बाइनरि फ्लैग थोड़े न है, जो एक और सिफ़र के बीच ही सिमट जाये....
प्यार के इस analog सिग्नल को कितना भी ग्राफ में उतार लो पता कभी नहीं चलेगा कि आखिर किस Dimension पर दिल हाथ से निकल गया...

सुबह दफ्तर जाने की हड़बड़ी है और नींद ने भी आंखो में दस्तक दे दी है... बस एक इश्क़ का बटन ही है जो बंद होने का नाम नहीं ले रहा, उसपर ये बंगलौर का कातिल आशिक़ाना मौसम....

मैंने तुम्हारे लिए बहुत कुछ लिखा है, आगे भी लिखूंगा लेकिन क्यूँ न आज अपनी खामोशीयों को कुछ कहने दें.... आखिर उन लंबे सुहाने रास्तों पर टहलते हुये कई बार हमारी खामोशियों ने
भी बहुत कुछ कहा है एक दूसरे से....

6 comments:

  1. बहुत कोमल अहसास...दिल छूते हैं ये शब्द...

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  2. तारीख गवाह कब हुई है प्यार की । बहुत खूबसूरत एहसास ।

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  3. ख़ामोशी की भी जुबां होती है.

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  4. खामोशियाँ अच्छी है... सुन्दर रचना

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  5. वाह वाह शेखर ..क्या खूब

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