मैं-अच्छा साहब गाय कब से हमारी माता है, मतलब किसी वेद में किसी ग्रंथ में, कहीं ऐसा उद्धरण जहां से पता चले कि अगर हम गाय को माता न माने तो हम हिन्दू ही नहीं हैं...
साहब- सब कुछ उद्धरित हो ये ज़रूरी तो नहीं, गाय हमारी माता है तो है, हमें उसका सम्मान करना चाहिए.....
मैं- बराबर कह रहे हैं साहब, लेकिन फिर हम पिता, चाचा, मामा का सम्मान क्यूँ नहीं करते....
साहब(गुस्से में)- तुम हिन्दू हो या नहीं तुम्हें अपनी संस्कृति का मज़ाक बनाते शर्म नहीं आती....
मैं- माफ कर दीजिये सर, गलती हो गयी... अच्छा हम जो ये बेल्ट, पर्स, जूते पहनते हैं वो भी तो हमारी माँ की ही चमड़ी से बनता है, हम ये सब उपयोग क्यूँ करते हैं... आपके जूते भी तो उसके ही लग रहे हैं...
साहब- --------------------
मैं- हमें तो ये सब रोक देना चाहिए....
साहब- हाँ क्यूँ नहीं हम ये सब बैन कर देंगे...
मैं- क्या निर्यात भी बंद कर देंगे ???
साहब- ---------------------
मैं- अच्छा, जब हमारी माता सड़क किनारे कचरे में से पोलिथीन बीन कर खाती रहती है तब आप क्या करते हैं....
साहब- -------------------
मैं- अच्छा साहब, ये सब छोड़िए.... ये बताइये जो आपको असली माँ है जिसने आपको जन्म दिया है, दिन भर में कितने घंटे आप उसकी सेवा करते हैं....
साहब- -------------------
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, जब तक जीने की चाह हो जीते रहें , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteप्रश्न मौलिक हैं, काश वह आदर्श पुनः आ पायें।
ReplyDeleteशेखर तुम्हारी (स्मोकिंग किल्स एंड सो डज दिस सोसाइटी...) वाली पोस्ट पर कमेंट का आप्शन नहीं है ...उदास क्यूँ हो ..इतनी frustration क्यूँ ? TC
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