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मैं सालों से लिख रहा हूँ, लिखता ही चला रहा हूँ... पता नहीं लिख रहा हूँ या बस अपनी कलम से कागज पे पड़ी ये सिलवटें हटा रहा हूँ... कोरे पन्ने खाली से लगते हैं मुझे, जैसे चीख चीख के कोई धुन तलाश रहे हों, उनपर अपनी स्याही उड़ेलकर उन्हें एक अधूरापन सौंप कर आगे बढ़ जाता हूँ.... शायद उन अधूरे-अधलिखे लफ्जों और धुनों की गिरहों को खोलकर कोई खोज ले अपना वजूद और बना दे अपने प्यार से भरा संगीत....
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कैब में बैठ के ऑफिस से घर जा रहा हूँ, काफी दिन से गर्मी की उठा पटक के
बाद बाहर हलकी हलकी बारिश हो रही है... गाडी में FM पर धीमे आवाज़ में कोई
गाना बज़ रहा है... अचानक से ड्राईवर एक गाने पर ज़ोर ज़ोर से गुनगुनाने लगता
है, और गाने की आवाज़ बढ़ा देता है... गाना है, "मौसम है आशिकाना, ए दिल कहीं
से उनको ऐसे में ढूंढ लाना"...
यकीन मानिए मैं बंगलौर में हूँ, और ड्राईवर भी दक्षिण भारतीय ही है...
ये लिखते लिखते गाने की आवाज़ और तेज़ हो गयी है, "ज़िन्दगी भर नहीं भूलेगी ये बरसात की रात"....
यकीन मानिए मैं बंगलौर में हूँ, और ड्राईवर भी दक्षिण भारतीय ही है...
ये लिखते लिखते गाने की आवाज़ और तेज़ हो गयी है, "ज़िन्दगी भर नहीं भूलेगी ये बरसात की रात"....