Thursday, January 25, 2024

मैं इश्क़ लिखता हूँ, तो तेरी याद आती है...

मैं इन दिनों
सादे खत लिखता हूँ,
शब्द जैसे इस रूखी धूप में
सूख से जाते हैं...


****************

देखा है तुमने कभी
मार्च की हवाओं का गुलदस्ता,
भरी है कभी पिचकारी में
मेरी साँसों की नमी...
कहो तो इस नमी में भिगो के लिए आऊं
तुम्हारे लिए कई सारे छोटे-छोटे चाँद....

****************

मैं दोषी हूँ उन शब्दों का,
जिन्हें मैंने पेन्सिल से लिखा
और मिटा दिया
नटराज के इरेजर से...

****************

जब कभी कोई कहता है मुझे
"तुम इश्क़ बहुत अच्छा लिखते हो..."
मैं याद करता हूँ तुम्हारी मुस्कान
और दोहरा देता हूँ मन-ही-मन
"तुम बहुत प्यारी लगती हो मुस्कुराते हुए..."
क्या करूँ,
मैं इश्क़ लिखता हूँ तो तेरी याद आती है...

****************

मेरी लिखी हर नज़्म
एक कचिया है,
हर शाम की तन्हाई के खेत में
उपज आई लहलहाती फसल को जो काट देती है
हर सुबह...

****************

मैं ऊब जाना चाहता हूँ
इस दुनिया से हमेशा के लिए
पर ऊब नहीं पाता...
मैं डूब जाना चाहता हूँ
कहीं किसी समंदर में
पर डूब नहीं पाता...
ऐसी चाहतें
ट्यूबवेल के नीचे लगे पत्थर
पर जमी कजली है...

****************

मेरे सपने, मेरी ज़िन्दगी के शीशे पर तुम्हारी परछाईं का आपतन बिंदु है....

****************

मेरे बालों में कहीं-कहीं आई ये सफेदी एक नज़्म है जो मैंने तुम्हारे इंतज़ार में लिखी है....


1 comment:

Do you love it? chat with me on WhatsApp
Hello, How can I help you? ...
Click me to start the chat...