Sunday, July 9, 2023

आओ कुछ नया लिखें ...

कुछ नया लिखने की ख्वाइश और आग्रह के पतले से खांचे में, एक नयी सुबह हुई...  वैसे तो शब्द आजकल उतना साथ नहीं देते लेकिन इस बार मैं बवंडर लिखना चाहता हूँ, ऐसा बवंडर जिसमे वो सब पुराने मटमैली परतें उड़ जाएँ और ये सुबह खिलखिलाती सी लगे, जब तक की मेरी याददाश्त है तब से ही मुझे अपनी गोदी में छोटी सी लड़की चाहिए थी, पहले बहन के रूप में और जैसे ही ये एहसास हुआ कि वो मुमकिन नहीं तब से ही इक बेटी के रूप में, इस लम्बे इंतज़ार में मैंने बहुत कुछ पाया, बहुत कुछ खोया. एक वक़्त ऐसा लगने लगा था कि हर ख्वाब की तरह कहीं ये भी अधूरा न रह जाए... 

पर इस बार वक़्त इतना बेरहम न था, उस ख़ुशी ने दस्तक दे दी, और आज कल दिन-रात सुबह-शाम बस उसी के इर्द-गिर्द घूम रही जैसे ज़िन्दगी. 

जानता हूँ, अब मेरे लिखे में वो साहित्यिक टच नहीं रहा जिसे पढ़कर कुछ आखें चमक जाया करती थी, कुछ दिल तड़प जाया करते थे, कुछ आखें गीली हो जाया करती थीं.
इसलिए तो अब नहीं लिखता, या ये कहूँ कि नहीं लिख पाता... फिर भी... 


इक नदी आयी है मेरे आँगन में,
खिलखिलाती है तो
उसकी लहरें जैसे 
किलकारियां मारती हैं,
बिलकुल मासूम सी... 

इस नदी के किनारे पे 
बैठा मैं 
बस एक-टक निहारा करता हूँ.... 

दुनिया की सारी
कविताओं के रूठने के बाद,
मेरी खुद की एक मुकम्मल नज़्म
अब मेरे पास है.... 

Do you love it? chat with me on WhatsApp
Hello, How can I help you? ...
Click me to start the chat...