पिछले एक घंटे से न जाने कितनी पोस्ट लिखने की कोशिश करते हुए कई ड्राफ्ट बना चुका हूँ... सारे खयालात स्कैलर बनकर एक दुसरे से भिडंत कर रहे हैं... कई शब्द मुझे छोड़कर हमेशा के लिए कहीं दूर जा चुके हैं, मेरे पास चंद उल-झूलुल लफंगे अक्षरों के सिवा कुछ भी नहीं बचा है ... कई चेहरों की किताबें मुझसे मूंह फेर चुकी हैं... वो अक्सर मेरे बिहैवियर को लेकर शिकायत करते रहते हैं, ऐसे शिकायती लोग मुझे बिलकुल पसंद नहीं है, ऐसा लगता है उनकी शर्तों पर अपनी ज़िन्दगी जीने का कोई एग्रीमेंट किया हो मैंने... बार-बार अपनी कील लेकर मेरी पर्सनल लाईफ पर ठोकते रहते हैं... खैर, ऐसी वाहियात चेहरों की किताबें मैंने भी छत पर रख छोड़ी हैं, धुप-पानी लगते-लगते खुद सड़ कर ख़त्म हो जायेंगी...
लेकिन इस बेवजह के बवंडर में मेरी कलम बेबस होकर आह भरने लगी है.... आज कितने दिनों के बाद खुद के लिखे शब्दों को देखा तो खुद को जैसे कोई सजा देने का मन किया... ना जाने मैं आज कल क्या कर रहा हूँ, कुछ लिखते रहने की आदत छोड़ देना भी मेरे लिए किसी सज़ा से कम नहीं है... मैं आँख बंद कर थोड़ी देर के लिए बैठ जाता हूँ, आस-पास कुछ भी नहीं, कोई भी नहीं जो प्यार से इस सर पर एक हाथ भर फिरा दे ... कभी-कभी किसी का नहीं होना बहुत मिस करता हूँ, हालांकि यूँ अकेले रहने का निर्णय सिर्फ और सिर्फ मेरा है, क्यूंकि मुझे अपने आस-पास मुखौटे लगाए सर्कस के जोकर बिलकुल पसंद नहीं है... लेकिन उनसे बचने की जुगत करते करते ऐसे लोग भी बहुत दूर हो गए हैं जिनसे जुदा रहना मेरे ख्याल में शामिल नहीं था...
अपने आस-पास सूखी लकड़ियों का ढेर इकठ्ठा करके आग लगा लेना चाहता हूँ, लेकिन वो भी मुमकिन नहीं, उस आग के साथ कई नाजुक डोर भी जल जायेंगी.. अगर मुमकिन हुआ तो इन्हीं रिश्तों की नाजुक डोर पकडे-पकडे ही इस दौर से निकल जाऊँगा...
आज समंदर बहुत याद आ रहा है, उसकी वो उचकती लहरें मुझे ज़िन्दगी से लड़ना सिखा जाती हैं... मैं यहाँ से कहीं दूर चला जाना चाहता हूँ, उसी समंदर के आगोश में... उसकी लहरों से लिपट जाना चाहता हूँ ... मुझे माफ़ करना ए ज़िन्दगी कि मुझे जीने का सुरूर ही नहीं आया...
मुझे पता है तुम ये पढ़ोगी तो ज़रूर सोचोगी ये क्या लिखा है, लेकिन क्या करूँ ...तुम्हारे लिए ही कुछ प्यारा सा लिखने बैठा था लेकिन पिछले दो महीने का मौन लिख बैठा हूँ...
:)
ReplyDeleteIs se to kuchh na likh k use ek smiley bhej deta... pagal!!! :)
pagal, ye to kuch likhne ke liye hi likha hai.. kyunki nahin likhan bhi pasand nahin hai na hum dono ko...
Deleteओह ………मगर ये मौन भी बहुत मुखर है।
ReplyDeleteमौन की अपनी भाषा होती है
ReplyDelete...लेकिन उनसे बचने की जुगत करते करते ऐसे लोग भी बहुत दूर हो गए हैं जिनसे जुदा रहना मेरे ख्याल में शामिल नहीं था...
ReplyDeleteकई बातों पर हमारा अख्तियार नहीं रहता..
बातों में प्यार न हो मगर...तुम्हारे मौन में वो प्यार ज़रूर ढूंढ लेगी....
:-)
सस्नेह
अनु
लेकिन उनसे बचने की जुगत करते करते ऐसे लोग भी बहुत दूर हो गए हैं जिनसे जुदा रहना मेरे ख्याल में शामिल नहीं था... **********
ReplyDeleteअच्छा आत्म कथ्य है !!
ReplyDelete" ऐसी वाहियात चेहरों की किताबें मैंने भी छत पर रख छोड़ी हैं, धुप-पानी लगते-लगते खुद सड़ कर ख़त्म हो जायेंगी..." ये बड़ा अच्छा काम किया…
ReplyDeleteबहुत सलीके से लिखा है मौन भी… पहुँच जायेगा सही ठिकाने पर… :)
बहुत बार ऐसा ही होता है ......आज कल हम भी इसी दौर से गुज़र रहें है
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ReplyDeleteकल दिनांक 08/04/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
आज समंदर बहुत याद आ रहा है, उसकी वो उचकती लहरें मुझे ज़िन्दगी से लड़ना सिखा जाती हैं... मैं यहाँ से कहीं दूर चला जाना चाहता हूँ, उसी समंदर के आगोश में... उसकी लहरों से लिपट जाना चाहता हूँ ... मुझे माफ़ करना ए ज़िन्दगी कि मुझे जीने का सुरूर ही नहीं आया...
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति.
kya baat hai! samandar ka upmaan sabse achcha laga...!
ReplyDeleteअपने आप से भागना बहुत कठिन काम है .....मन की कशमकश का गुबार निकल आया .....
ReplyDeleteकभी-कभी किसी का नहीं होना बहुत मिस करता हूँ, हालांकि यूँ अकेले रहने का निर्णय सिर्फ और सिर्फ मेरा है, क्यूंकि मुझे अपने आस-पास मुखौटे लगाए सर्कस के जोकर बिलकुल पसंद नहीं है... लेकिन उनसे बचने की जुगत करते करते ऐसे लोग भी बहुत दूर हो गए हैं जिनसे जुदा रहना मेरे ख्याल में शामिल नहीं था...
ReplyDeletebahut achha aur sachcha likha hai
शुभकामनायें
मुझे अपने आस-पास मुखौटे लगाए सर्कस के जोकर बिलकुल पसंद नहीं है... लेकिन उनसे बचने की जुगत करते करते ऐसे लोग भी बहुत दूर हो गए हैं जिनसे जुदा रहना मेरे ख्याल में शामिल नहीं था...
ReplyDeleteekdam sach hai ..aisa koi pal aisa koi khayal ham sabke jeevan ka hissa kabhi na kabhi jaroor raha hoga.
Akele rahne ka faisla humare khud ka hota h,pr bahut saari chijhen pichhe chhut rhi hoti hai,shayad ! Ek behtar kal ke lie...
ReplyDeleteHum ye sabhi chijhen mahsus karte hain,aapne unhen lafj de diye..kaabiletarif..
Best of luck :)
मन की कशमकश को लिखा है ... अपने मुखर मौन को लिखा है ...
ReplyDeleteलाजवाब लिखा है ...
मेरा मौन सर्वाधिक प्रवाहमयी होता है।
ReplyDeleteसच! कुछ लिखते रहना ही चाहिए... शब्दों तक आते आते कई बार अपना अनसुलझा मन सुलझन की ओर बढ़ जाता है! लिखना चाहिए... लिखते रहना चाहिए!
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