Saturday, March 23, 2013

आखिरी ख़त उस दीवाने का...

                                                                                                                             22 मार्च 1931
साथियो,
   स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे  नहीं चाहता । लेकिन मैं एक शर्त पर जिन्दा रह सकता हूँ कि  मैं कैद होकर या  पाबन्द होकर जीना नहीं चाहता ।
   मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रान्ति का प्रतीक बन चुका  है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है-- इतना ऊंचा कि  जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊंचा मैं हरगिज़ नहीं हो सकता ।
   आज मेरी कमजोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं ... अगर मैं फाँसी  से बच गया तो वे जाहिर हो जाएँगी और क्रान्ति का प्रतीक चिन्ह मद्धिम पड़  जाएगा या संभवतः मिट भी जाए .. लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते-हँसते मेरे फांसी चढ़ने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह बन्ने की आरज़ू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देनेवालों की तादाद इतनी बढ़ जायेगी कि  क्रान्ति को रोकना साम्राज्यवाद या शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रह जायेगी ।
   हाँ, एक विचार आज भी मेरे  में आता है कि  देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थीं, उसका हजारवां भाग भी पूरा नहीं कर सका .. अगर स्वतंत्र, जिंदा रह सकता तब शायद इन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता ।
   इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच  फाँसी  से बचे रहने का नहीं आया .. मुझसे अधिक सौभायशाली कौन होगा ? आजकल मुझे स्वयं पर बहुत गर्व है ... अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतज़ार है .. कामना यह की ये और नज़दीक हो जाए

                                                                                                                              आपका साथी,
                                                                                                                              भगत सिंह ...

उसे यह फ़िक्र है हरदम नया तर्ज़े-जफ़ा क्या है,
हमें ये शौक है देखे सितम की इंतहा क्या है।

दहर से क्यूँ ख़फा  रहें, चर्ख़ का क्यूँ गिला करें,
सारा जहां अदू सही, आओ मुकाबला करें ।

कोई दम का मेहमाँ हूँ ए अहले-महफ़िल,
चराग़े-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ ।

हवा में रहेगी मेरे ख़याल  की बिजली,
ये मुश्ते-ख़ाक है फानी, रहे रहे न रहे ।

                                                       अच्छा रुखसत, खुश रहो अहले-वतन; हम तो सफ़र करते हैं ...

11 comments:

  1. भगत सिंह और उनका क्रान्ति दर्शन आज की परिस्थितियों में अत्‍यन्‍त प्रासंगिक हो गया है।

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  2. बहुत सुन्दर ...
    पधारें "चाँद से करती हूँ बातें "

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  3. शहीद भगतसिंह को नमन

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  4. क्या जज्बा था.....
    नमन उन जांबाजों को..

    अनु

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  5. वीर शहीदों को शत-शत नमन...

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  6. भारत माता के वीर सपूतों को शत-शत नमन...

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  7. यज्ञ में आहुति भला और कैसे परिभाषित हो सकती है।

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  8. कल दिनांक25/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  9. aaj ki taareekh me yuvaao ko bhagat singh ka shaheedi diwas bhale yaad na rahe, ipl ki teams ke sabhie khilaadiyo ki boli kitne me lagi yah zarur yaad rahta hai

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  10. This comment has been removed by a blog administrator.

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