Friday, February 18, 2011

आतंक के साए में....... राग तेलंग

चश्मा उतारता हूं
धुंधली हो जाती है दुनिया

ऐसा लगता है

बारूदी धुएँ से अटा पड़ा है सब कुछ

चीज़ें साफ़ नज़र नहीं आतीं

जैसे अभी-अभी हुआ है विस्फोट
क्षत-विक्षत लाशें चलती हुईं दिखती हैं

स्त्रियों-बच्चों के भय से स्वर मिलाकर

जो कहना चाहता हूं अटक जाता है गले में ही

बेरहम तंत्र

मेरे सामने जो नोट फेंक जाता है
उसमें से बाहर निकलकर आता है
एक बूढ़ा क्रांतिकारी
झुककर देता है मुझे मेरा चश्मा
कहता है
`सत्यमेव जयते को फिर से पढ़ो और नया कुछ गढ़ो´ ।

.....रचनाकार
            राग तेलंग.. 

         साथ में एक ख़ूबसूरत सी प्रार्थना, आप भी सुनिए...

18 comments:

  1. दिल को छू गई आपकी रचना, और गीत के तो क्या कहने ।

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  2. dil ke kareeb hai yah gajab ka ahsas .badhai

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  3. बढियां...आतंक के साये में....
    वाह क्या तरीका है...इज्जत दे के इज्जत बचाने का....
    शर्म की बात है... हमारे कानून इस बात पे ध्यान नहीं देते .... और एक वक़्त के बाद पीडिता खुद ..किसी को पीड़ित करने लगती है....
    शायद... होता हो ऐसा लेकिन जीने का जज्बा देखिये .... फिर भी जिए जाते हैं यहाँ...

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  4. उसमें से बाहर निकलकर आता है
    एक बूढ़ा क्रांतिकारी
    झुककर देता है मुझे मेरा चश्मा

    kya baat hai....kya khoob dhoondkar laaye ho....bohot bohot hi kamaal ki kavita hai....kya kahoon, i hav no words...its amazing!!!

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  5. मन को छू गये आपके भाव। धन्यवाद|

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  6. पिछले दिनों राग जी को आमने-सामने रायपुर में सुनने का अवसर मिला. इस कवि की ईमानदार संवेदना और उसकी साफ-साफ अभिव्‍यक्ति प्रभावित करती है.

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  7. दिल को छू गई आपकी रचना.

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  8. दिल है कि धडकने का सबब भूल गया है
    जीने का सलीका और अदब भूल गया है ।

    bahut sundar rachna

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  9. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 22- 02- 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  10. प्रार्थना नहीं सुन पाया ,लेकिन कविता के भाव बहुत असर कर गये

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  11. `सत्यमेव जयते को फिर से पढ़ो और नया कुछ गढ़ो´

    सुंदर अभिव्यक्ति.

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  12. marmik abhivyakti...maan ko chu gayi........

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  13. बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना..

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