इन दिनों तुम्हारी ज़िन्दगी में उलझा हूँ, जाने कितनी पहेलियाँ कितने अनकहे से सपने दिखते हैं... अपने आपको जैसे एक बंद कमरे में कैद करके बैठी हो, खिड़कियाँ भी बंद हैं, कोई डर है कि कहीं कोई चुपके से झाँक न ले, कहीं चुरा न ले उन सपनो को... तुम्हें शायद खबर नहीं कि ये कमबख्त आखें सब कुछ कह जाती हैं, कितना ही समझा लो, संभाल लो, झाँकने वाले झाँक ही लेते हैं इन परदों के पीछे... और हम जैसे बदतमीज़ दोस्त तो कभी मौका नहीं छोड़ते न, चाहे कितना भी छुपा लो...
जितनी ही बार तुमसे मिलता हूँ, उतनी ही बार तुम्हें तन्हा देखता हूँ, जैसे आस पास की दुनिया से कहीं दूर ही चलती रहती हो... कई बार तुमसे पूछा लेकिन शायद अभी तक तुम्हारे मन में मैं अपने लिए वो भरोसा नहीं जगा पाया हूँ...
जाने कब तक मुझे यूँ ही दूर रखोगी अपनी ज़िन्दगी से, एक न एक दिन मना ही लूँगा तुम्हें ... तुम भी सोचती होगी अजब पागल लड़का है, लेकिन क्या करें मुझे यूँ बंद किताबों के पन्ने अच्छे नहीं लगते, इस अकेलेपन से नफरत सी है मुझे, कुछ ज्यादा ही घुट चूका हूँ इसमें मैं ... इसलिए अब कोई भी अकेला यूँ परेशान सा इंसान अच्छा नहीं लगता...
बस इसे मेरी जिद समझो, बेवकूफी या फिर पागलपन... अपने सपने सच करना इंसान के बस में है या नहीं ये तो नहीं पता लेकिन इतना ज़रूर जानता हूँ दूसरों के सपनो को पूरा करने में उनकी मदद जरुर की जा सकती है, और यकीन मानो मुझे इसमें ज्यादा ख़ुशी मिलती है...मैंने कहा था न मुझे दूसरों के सपनो में रंग भरने का शौक है...
और ज्यादा क्या कहूं, बस यूँ ही तुम्हारी ज़िन्दगी के बंद दरवाज़े पर खड़ा मिलूंगा, जब जी चाहे दरवाज़ा खोल लेना... हाँ थोडा जल्दी करना मुझे ज्यादा इंतज़ार करना अच्छा नहीं लगता, दरवाज़ा तोड़ के भी आ सकता हूँ अन्दर... :)
और ज्यादा क्या कहूं, बस यूँ ही तुम्हारी ज़िन्दगी के बंद दरवाज़े पर खड़ा मिलूंगा, जब जी चाहे दरवाज़ा खोल लेना... हाँ थोडा जल्दी करना मुझे ज्यादा इंतज़ार करना अच्छा नहीं लगता, दरवाज़ा तोड़ के भी आ सकता हूँ अन्दर... :)
अपने सपने सच करना इंसान के बस में है या नहीं ये तो नहीं पता लेकिन इतना ज़रूर जानता हूँ दूसरों के सपनो को पूरा करने में उनकी मदद जरुर की जा सकती है, और यकीन मानो मुझे इसमें ज्यादा ख़ुशी मिलती है...मैंने कहा था न मुझे दूसरों के सपनो में रंग भरने का शौक है...
ReplyDeleteवाह... इसे कहते हैं शौक... जो भी लिखा है, दिल की गहराइयों से निकला है... और उतना ही गहरा है...
लिख तो दिया है आपने कि दरवाजा तोड़ के भी आ सकता हूँ.. मगर मुमकिन नहीं.. कमाल के अंदर बंद भंवरा चाहकर भी छेदकर बाहर नहीं निकलता और शहतूत की शाख पर रेशम के धागे बुनता खुद उसमें ही कैद होकर दम तोड़ देता है!!
ReplyDeleteएक कविता की तरह लगी यह पोस्ट!! सुन्दर!!
are chachu,
ReplyDeleteachhe dost jabardasti bhi ghus aate hain, wo apne dost ko kabhi akela nahi chhod sakte....
संध्या जी,
ReplyDeleteबस यही समझ लीजिये कि दिल से ही निकला है.....
Wah! Wah! maane k bhai miyaan doobe pade ho ek dum.. sahi h.. lage raho.. koshish karne walo ki haar nahi hoti type koi baat khud hi khud se keh lo, hume to filhaal yaad nahi aa rahi :)
ReplyDeleteअच्छा लगा एंड में स्माइली देख के...
ReplyDelete"when all the doors of the hope are closed...try at least breaking one of them"
बढ़िया पोस्ट गुरु...
gr888 .....good luck :) darvaaja todne se pahle ye bhaanp lena vo akeli hain :-)
ReplyDeleteसंवाद की खिड़किया और आमन्त्रण के दरवाजे खुले रहें।
ReplyDeleteकल 14/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
"मुझे यूँ बंद किताबों के पन्ने अच्छे नहीं लगते...."
ReplyDeleteसुन्दर!
दिल से लिखी गयी दिल तक पहुँचती भावनाएं!
दूसरों के सपने सच करने का सपना जो आपने देखा है , हम तो यही चाहेंगें ये जरूर सच हो ....
ReplyDeleteshekhar ji kya kahu...sach mai padh kar laga ki koi dil ki baat keh raha hai...bahut bahut khoob...liked it too much
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत पोस्ट है...कई बार लोग बंद कमरों में तब्दील हो जाते हैं, ऐसे में किसी अपने की बेहद जरूरत होती है जो दरवाजा तोड़ कर भी आ सके।
ReplyDeleteपोस्ट से एक सादामिजाज, भले इंसान की सूरत उभरती है...देख कर अच्छा लगा।