ये साल बस अब गुज़र ही जाने वाला है, कितना कुछ है लिखने को लेकिन अपने ही शब्दों में उलझ कर रह गया हूँ... ऐसा लगता है जैसे ढेर सारे शब्द इकठ्ठा हो गए हैं और कलम की नीब पर अटक गए हैं...
ख्यालों में अजीब सी कम्पन महसूस हो रही है, वो कुछ जो तुम्हारे अपने साथ होने पर महसूस करता हूँ... सच में कभी कभी जी करता है, तुम्हें यहाँ इस भीड़ से कहीं दूर ले चलूँ, एक ऐसे जहाँ की तरफ जहाँ अक्सर तुम मेरे सपनों में आती हो.. एक ऐसी पगडण्डी पर जहाँ तुमने कितनी ही बार बेखयाली में मेरे हाथों में हाथ डालकर मुझे प्यार से देखा है... एक परिधि है जहाँ डूबते सूरज की आखिरी किरण मेरे इस प्यारे से चाँद को देखकर सकुचाते हुए दिन को अलविदा कर देती हैं, और एक हसीं सी शाम मेरे नाम कर जाती हैं... एक ऐसी आजादी है जब कलेंडर की तारीखें नहीं बदलती, जब दिन के गुज़र जाने का अफ़सोस नहीं होता... ये एक ऐसा जहाँ है जहाँ मुझे हमेशा से ही ये यकीन है कि मेरी इस गुज़ारिश का लिहाफ़ ओढ़े हुए एक दिन जरूर मेरे साथ चलोगी...

सच कहूं तो मुझे डर लग
रहा है.. कभी कभी लगता है कि काश तुम आके मेरा हाथ थाम लो, और कह दो कि तुम हमेशा मेरे साथ रहोगी... मैं वो इतजार नहीं करना चाहता, जाने कहाँ-कहाँ भटकता रहूँगा... जाने कितने जन्मों तक अपनी आखों से तुम्हारे इंतज़ार को बहता हुआ देखूँगा...
कभी मेरे साथ चलना, तुम्हें अपने सपने दिखाऊंगा... वो जो मैंने तुम्हारी यादों को सिरहाने में रखकर देखे थे.. शायद तुम्हें एहसास हो कि तुम्हारे साथ बिताये लम्हों को कितने करीने से संजोते जा रहा हूँ... आगे आने वाले ज़िन्दगी के तन्हा सफ़र में शायद यही लम्हें मेरे साथ होंगे...
कभी मेरे साथ चलना, तुम्हें अपने सपने दिखाऊंगा... वो जो मैंने तुम्हारी यादों को सिरहाने में रखकर देखे थे.. शायद तुम्हें एहसास हो कि तुम्हारे साथ बिताये लम्हों को कितने करीने से संजोते जा रहा हूँ... आगे आने वाले ज़िन्दगी के तन्हा सफ़र में शायद यही लम्हें मेरे साथ होंगे...
बस इस जाते हुए साल का शुक्रिया करना चाहता हूँ जिसने मेरे डूबते हुए अस्तित्व को एक बार फिर तुम्हारे होने का एहसास दिला दिया.. मुझे और तुमसे कुछ नहीं चाहिए, बस मुझे ये अधिकार दे दो कि मैं तुम्हें हमेशा खुश रख सकूं... एक सपना, एक गुज़ारिश कि आने वाले सालों और कई ज़न्मों तक तुम मेरे साथ यूँ ही चलती रहोगी, मुस्कुराते हुए, खिलखिलाते हुए... मेरे साथ चलोगी न...