Showing posts with label प्यार-मोहब्बत सा कुछ. Show all posts
Showing posts with label प्यार-मोहब्बत सा कुछ. Show all posts
Saturday, September 29, 2018
Friday, September 7, 2018
तुम प्यार करोगी न मुझसे
तुम प्यार करोगी न मुझसे,

तब, जब मैं थक के उदास बैठ जाऊँगा
तब, जब दुनिया मुझपे हंस दिया करेगी
तब, जब अँधेरा होगा हर तरफ
तब, जब हर शाम धुंधलके में भटकूँगा मैं उदास
तब एक उम्मीद का दिया जगाये
तुम प्यार करोगी न मुझसे...

तब, जब मैं थक के उदास बैठ जाऊँगा
तब, जब दुनिया मुझपे हंस दिया करेगी
तब, जब अँधेरा होगा हर तरफ
तब, जब हर शाम धुंधलके में भटकूँगा मैं उदास
तब एक उम्मीद का दिया जगाये
तुम प्यार करोगी न मुझसे...
तब, जब मुझे दूर तक तन्हाई का रेगिस्तान दिखाई दे
तब, जब मेरे कदम लड़खड़ाएं इस रेत की जलन से
तब, जब मैं मृगतृष्णा के भंवर में फंसा हूँ
तब, जब इश्क़ की प्यास से गला सूख रहा हो मेरा
तब अपनी मुस्कान ओस की बूंदों में भिगोकर
तुम प्यार करोगी न मुझसे...
तब, जब ये समाज स्वीकार नहीं करे इस रिश्ते को
तब, जब प्रेम एक गुनाह मान लिया जाए
तब, जब सजा मिले हमें एक दूसरे के साथ की
तब, जब मुँह फेर लेने का दिल करे इस दुनिया से
तब इस साँस से लेकर अंतिम साँस तक
तुम प्यार करोगी न मुझसे...
तब, जब ये समाज स्वीकार नहीं करे इस रिश्ते को
तब, जब प्रेम एक गुनाह मान लिया जाए
तब, जब सजा मिले हमें एक दूसरे के साथ की
तब, जब मुँह फेर लेने का दिल करे इस दुनिया से
तब इस साँस से लेकर अंतिम साँस तक
तुम प्यार करोगी न मुझसे...
Sunday, November 5, 2017
अपने सबसे प्यारे दोस्त को ताउम्र खुश रख पाने का सुख.....

तुम्हारी ये खिलखिलाती सी मुस्कुराहटें, हज़ारों बहते हुए समन्दरों पर मेरे ख़्वाबों का आपतन बिंदु है... जब तुम हंसती हो तो मुझे इस दुनिया की सारी बंदिशों के खिलाफ जाने का दिल करता है, जैसे तुम्हारे चेहरे पर आने वाली हर मुस्कान के लिए ऐसे हर जहाँ हर बार कुर्बान... बहुत साल पहले मुझसे किसी ने कहा था कि मैं डूब कर मोहब्बत करता हूँ, पर मुझे लगता है जो डूब ही न पाए वो मोहब्बत ही कहाँ है भला...
तुम जब भी मुझसे पूछती हो न कि "मैं क्या कर रहा हूँ..." और मैं जवाब दे देता हूँ, "कुछ नहीं... "
मेरा ये "कुछ नहीं..." समझ लो एक खाली गुल्लक है, जिसमे तुम अपने ख़्वाबों के सिक्के डालती जा सकती हो ता उम्र... इस गुल्लक से आती हुयी खनखनाती सी आवाज़ के भरोसे ही तो मेरी सांस चलती है इन दिनों.. ये "कुछ नहीं..." ही सब कुछ है मेरे लिए क्यूंकि इस "कुछ नहीं... " से ही मैं अपना "सब कुछ" तुम्हारी इन छोटी-छोटी हथेलियों में डाल के सुकून से चल सकता हूँ उन अनगिनत जन्मों के सफ़र पर तुम्हारे साथ....
इस दुनिया में कई सारे सुख हैं लेकिन मेरे लिए सबसे बड़ा सुख है अपने सबसे प्यारे दोस्त को ताउम्र खुश रख पाने का सुख....
Friday, January 24, 2014
कोई भी नज़्म तुमसे बेहतर तो नहीं....
हो जाने दो तितर-बितर इन
आढ़े-तिरछे दिनों को,
चाहे कितनी भी आँधी आ जाये,
आज भी तुम्हारी मुस्कान का मौसम
मैं अपने दिल में लिए फिरता हूँ...
तुम्हारे शब्द छलकते क्यूँ नहीं
अगर तुम यूं ही रही तो
तुम्हारी खामोशी के टुकड़ों को
अपनी बातों के कटोरे में भर के
ज़ोर से खनखना देना है एक बार...
ये इश्क भी न, कभी पूरा नहीं होता
हमेशा चौथाई भर बाकी बचा रह जाता है,
अपनी ज़िंदगी की इस दाल में
उस चाँद के कलछुल से
तुम्हारे प्यार की छौंक लगा दूँ तो
खुशबू फैल उठेगी हर ओर
और वो चौथाई भर इश्क
रूह में उतर आएगा.....
गर जो तुम्हें लगे कभी
कि मैं शब्दों से खेलता भर हूँ
तो मेरी आँखों में झांक लेना,
लफ़्ज़ और जज़बातों से इतर
तुम्हें मेरा प्यार भी मयस्सर है...
आढ़े-तिरछे दिनों को,
चाहे कितनी भी आँधी आ जाये,
आज भी तुम्हारी मुस्कान का मौसम
मैं अपने दिल में लिए फिरता हूँ...
तुम्हारे शब्द छलकते क्यूँ नहीं
अगर तुम यूं ही रही तो
तुम्हारी खामोशी के टुकड़ों को
अपनी बातों के कटोरे में भर के
ज़ोर से खनखना देना है एक बार...
ये इश्क भी न, कभी पूरा नहीं होता
हमेशा चौथाई भर बाकी बचा रह जाता है,
अपनी ज़िंदगी की इस दाल में
उस चाँद के कलछुल से
तुम्हारे प्यार की छौंक लगा दूँ तो
खुशबू फैल उठेगी हर ओर
और वो चौथाई भर इश्क
रूह में उतर आएगा.....
गर जो तुम्हें लगे कभी
कि मैं शब्दों से खेलता भर हूँ
तो मेरी आँखों में झांक लेना,
लफ़्ज़ और जज़बातों से इतर
तुम्हें मेरा प्यार भी मयस्सर है...
Sunday, November 10, 2013
तेरे बिना ज़िंदगी भी लेकिन ज़िंदगी नहीं....

सच कहते हैं सुख और सुकून की परिभाषा तो वही बयां कर सकता है जो प्रेम में हो... सुख तो तभी है जब तुम्हारा सर मेरे कांधे पर टिका हो और हम साथ ज़िंदगी बिताने के खयाल बुन रहे हों... तुम्हारे हाथों में हाथ डाले बैठे रहना सोंधे एहसास सरीखा है... तुमने जाते जाते मुझे जो चॉकलेट दिया था न उसे अभी तक संभाले रखा है, पता नहीं क्यूँ लेकिन कई बार उसे एकटक देखता रहता हूँ, तुम्हारे होने का एहसास दिखता है उसमे मुझे.... वैसे हम प्रेमियों के सपने भी कितने मासूम होते हैं न, साथ बिताए जाने वाले लम्हों के आलावा ज़िंदगी से और कहाँ कुछ चाहिए होता है भला.... मैं भी उन्हीं की तरह बहुत सलीके से ज़िंदगी की नब्ज़ थामे तुम्हारे साथ बढ़ना चाहता हूँ....
मैं हँसना चाहता हूँ , बिना किसी खास वजह के ही खुद से बक-बक करना चाहता
हूँ, दिल करता है खूब ज़ोर से चीखूँ-चिल्लाऊँ... खुद को इस दुनिया की भीड़
में झोंक देना चाहता हूँ, थोड़ी देर के लिए ही सही खुद को भूल जाना चाहता
हूँ... अपने चेहरे से जुड़ गए अपने वजूद, अपने नाम को अलग कर देना चाहता
हूँ... खुद के मौन से जो दूरी मैंने बना ली थी वही मौन दोबारा मुझे घेरता जा रहा है... तुम्हारी एक झलक इस मौन के काँच को तोड़कर मुझे मेरी साँसों से मिला देगी.... तुम्हारे इंतज़ार की एक पतली सी पगडंडी मेरी आँखों से निकल कर तुम्हारी तलाश कर रही है... कलेंडर की तरफ नज़र जाती है तो दिल बैठ जाता है, कैसे कटेगा ये वक़्त...
Sunday, October 20, 2013
अधूरे खत....
सर में बहुत तेज़ दर्द हो रहा है, लेकिन लिखना है... कुछ तो लिखना है ही... बाहर रात लगभग ठहर चुकी है, हाँ अंदर भले ही एक झंझावात से घिरा होकर लिख रहा हूँ... कई दिनों से ज़िंदगी के प्लेयर पर पौज़ बटन खोजने का दिल कर रहा है, आस-पास एक तरह का कान-फाड़ू संगीत बजता रहता है... इस सब से अलग मैं चाहता हूँ कि थोड़ी देर के लिए ही सही, लेकिन मैं अतीतजीवी हो जाऊँ... या फिर बस थोड़ी देर ठहरकर उन बीती पगडंडियों को निहारूँ, कितना कुछ पीछे छूट गया... मैं कुछ भी पीछे नहीं छोडना चाहता था, लेकिन क्या कुछ समेट कर चलता... काश ऐसी कोई पोटली होती जहां सबको समेट लिए जाता... कई ऐसे लोग, ऐसी बातें हैं जो बहुत याद आती हैं... अब तो वहाँ नहीं लौट सकता कभी भी.... अतीत में जीए हुये लम्हें वर्तमान में आकर अरबी आयत में तब्दील हो जाते हैं, उससे पवित्र और कुछ भी नहीं लगता...
************
ज़िंदगी की कोई मंजिल नहीं होती, इन्फैक्ट मंजिल नाम की कोई वस्तु जीवन में होती ही नहीं... Exist ही नहीं करती, जो होता है बस रास्ता होता है, अगर आप ज़िंदगी के इन रास्तों पर हड़बड़ी मे गुज़र जाना चाहते हैं तो मंजिल पर पहुँचने के बाद उन रास्तों का हिसाब नहीं दिया जा सकेगा... बस इन्हीं रास्तों पर चलने का सुख लेना चाहता हूँ, सिर्फ तुम्हारे साथ... कोयले की धीमी धीमी आंच पर ज़िंदगी को पकाना चाहता हूँ...
************
कभी तुमसे वादा लिया था कि तुम साथ चलोगी हमेशा... बड़ी मिन्नत से वो प्यार का बीज इस रिश्ते की ज़मीन पे बोया था, आज तो ये इत्तू सा पौधा निकल आया है इश्क का... शायद अब इस पौधे को और ज्यादा खयाल की ज़रूरत होगी, यकीन मानों उस अतीत में जाकर झांक आया हूँ तुम्हारी आखों को, बला की सी खूबसूरत हैं.... वहीं अतीत के कुछ पन्ने पलटा तो ये नज़र आया कि कभी ये भी कहा था तुमसे... याद तो होगा ही तुम्हें न...
************

************
कितना कुछ लिखने का सोचा तो था लेकिन, अभी बीते दिनों ही किसी ने मेरी इस तरह की पोस्ट्स को अधूरे खत का नाम दिया था, इसलिए इस पोस्ट को अधूरे खत की ही तरह अधलिखा छोड़ रहा हूँ.... ये पढ़ते हुये अपनी आखें बंद कर लेना, कई अनखुले-अधखुले जज़्बात तुम्हारी आखों पर मेरे होंठों के निशान छोड़े जाएँगे.. और हाँ परेशान मत होना ये पोस्ट लिखते-लिखते सर दर्द भी खत्म हो चुका है....
Monday, April 15, 2013
ये तो बस एक साल गुज़रा है, सारे जनम तो बाकी हैं अभी...
एक साल !!! क्या बस सिर्फ एक साल ... ऐसा लगता है जैसे मैं तुम्हे बरसों से जानता हूँ ,सदियों से ,जन्मों से ...
फिर
तो लगता है अभी तो बस एक साल बीता है ,न जाने कितने जन्म बाकी हैं अभी... कुछ चीजें अन एक्स्प्लेनेबल होती हैं... बीता एक साल भी कुछ ऐसा ही था... मुझे मालूम है बीते साल में मैं तुम्हे शायद उतनी खुशियाँ नहीं दे सका जितने की तुमने उम्मीद की होगी फिर भी आने वाले समय की पोटली से ढेर सारा
प्यार निकाल कर तुम्हे दे सकूं यही तमन्ना है ...
बस तुमसे एक छोटी सी गुजारिश है, तुम यूं छोटी छोटी बातों पर परेशां न हो जाया करो, मुझे अपने आप से नफरत सी होने लगती है ... तुम्ही हर एक मुस्कान कीमती है मेरे लिए .....
***
तुम्हारी ये अटखेलियाँ करती हंसी ,
बस तुमसे एक छोटी सी गुजारिश है, तुम यूं छोटी छोटी बातों पर परेशां न हो जाया करो, मुझे अपने आप से नफरत सी होने लगती है ... तुम्ही हर एक मुस्कान कीमती है मेरे लिए .....
***

जैसे हो कोई ,
चांदनी सलोनी सी
उतर आती है आँगन में
और रोशन कर देती है
मेरे दिल के हर एक कोने को ..
तुम्हारी ये चंचल मुस्कान
बदल देती है हर गम की परिभाषा ..
है बस एक प्यार भरी गुजारिश
कि उम्र के हर निराशजनक दौर में,
हर उस
समय
जब आस पास हो कई आलोचनात्मक वजहें
उनके बीच से गुजरते हुए भी
बनी रहनी चाहिए
तुम्हारे चेहरे पर ये
ये प्यार भरी मुस्कान .....
***
अभी तो आगाज -ए -इश्क है जाना, अंजाम अभी बाकी है,
***
अभी तो आगाज -ए -इश्क है जाना, अंजाम अभी बाकी है,
गुजारने है कई सारे दिन अभी, कई सुहानी शाम अभी बाकी है ..."
***
मैंने सोचा था तुम्हारी इन प्यारी प्यारी आँखों में कभी आंसू न आने दूं पर मैं तो हरजाई निकला तुम्हे ढेर सारा परेशां करता हूँ न... चलो अभी माफ़ कर दो ,शायद तुम्हारे लिए कुछ तोहफा छुपा रखा हो मेरी जिंदगी ने ...
तुम्हे खबर भी कहा है जानां ...
***
मैंने सोचा था तुम्हारी इन प्यारी प्यारी आँखों में कभी आंसू न आने दूं पर मैं तो हरजाई निकला तुम्हे ढेर सारा परेशां करता हूँ न... चलो अभी माफ़ कर दो ,शायद तुम्हारे लिए कुछ तोहफा छुपा रखा हो मेरी जिंदगी ने ...

कि तुम मुझे जिंदगी सी लगती हो ..
तुम्हारी जुल्फों से होकर गुजरती है
ये ठंडी हवाएं जब ..
जाने क्यों सिहर मैं जाता हूँ ..
वो चाँद का बावरापन तो देखो
हर शाम झाँकता है
तुम्हारे आँगन में
किसको सुनाऊं आखिर
हाल मैं अपने दिल का
देखता वो तुम्हें है
और जल मैं जाता हूँ ..
और जल मैं जाता हूँ ..
ये शरबत के गिलास की कुछ बूँदें
जब तुम्हारे लबों से ढुलक जाती हैं
पीती तुम हो और भीग मैं जाता हूँ
तुम्हे खबर भी कहा है जानां ...
कि तुम मुझे जिंदगी सी लगती हो...
***
नीचे लिखी तुकबंदी को ग़ज़ल कहने कि गलती नहीं करूंगा क्यूंकि शेर लिखने के कई नियम होते हैं जो मुझे आते नहीं... खैर ये जो कुछ भी है बस तुम्हारे लिए ही है...
मुरीद हूँ मैं तेरी हर एक मुस्कान का हमनफस ,
***
नीचे लिखी तुकबंदी को ग़ज़ल कहने कि गलती नहीं करूंगा क्यूंकि शेर लिखने के कई नियम होते हैं जो मुझे आते नहीं... खैर ये जो कुछ भी है बस तुम्हारे लिए ही है...
मुरीद हूँ मैं तेरी हर एक मुस्कान का हमनफस ,
हटा दे ये पर्दा उस
चिलमन से, कि अब शाम होने को है ..
शाम भी है, सुकून भी और तेरा साथ भी है हमदम,
बस ठहर जाओ थोड़ी देर कि, बरसात भी अब होने को है ..
यूं बाहर बाहर झांक कर कैसे जान पाओगी मेरी मोहब्बत को तुम,
गले मिलो तो पता चले किस कदर मेरा दिल तेरा होने को है...
***
"मेरे पास तुम्हे देने के लिए कुछ खास तो नहीं है आज बस ये इत्तू सा लम्हा तुम्हे दे रहा हूँ, मुझे पता है इस लम्हें में तुम मुस्कुरा रही होगी... देखो न मुस्कराते हुए तुम कितनी प्यारी लगती हो....
चार शब्द समेटता हूँ मैं,
"मेरे पास तुम्हे देने के लिए कुछ खास तो नहीं है आज बस ये इत्तू सा लम्हा तुम्हे दे रहा हूँ, मुझे पता है इस लम्हें में तुम मुस्कुरा रही होगी... देखो न मुस्कराते हुए तुम कितनी प्यारी लगती हो....
चार शब्द समेटता हूँ मैं,
बस तुम्हारे लिए....
इन लफ्जों को कोई
इन लफ्जों को कोई
अक्स-ए -गुल समझ लेना
और टांक लेना अपनी
जुल्फों के जूड़े में...
वो इब्तिदा -ए -इश्क की
एक शाम थी जब
हमने अपना खाली दिल
तुम्हारे नाम कर दिया ...
आँखों से होते हुए तुम्हारी हम
दिल से, अपने दिल के, दिल में बस गए
और सपनो से बुनी इस जिंदगी
को
सुबह-ओ-शाम कर दिया ....
***
"तुम ढूँढती रहती हो मेरी आँखों में अपने प्यार की निशानियाँ ,
***
"तुम ढूँढती रहती हो मेरी आँखों में अपने प्यार की निशानियाँ ,
और मुझे रश्क है बस इस बात का कि मैंने तुम्हारी आँखों को देखा है ....
***
ये पॉडकास्ट जो बड़े ही प्यार से सलिल चाचू ने रिकॉर्ड करके भेजा था, उसे भी आज ही अपने ब्लॉग पर लगा पा रहा हूँ....
***
ये पॉडकास्ट जो बड़े ही प्यार से सलिल चाचू ने रिकॉर्ड करके भेजा था, उसे भी आज ही अपने ब्लॉग पर लगा पा रहा हूँ....
Saturday, December 8, 2012
ये सर्दियां और तुम्हारे प्यार की मखमली सी चादर...
आज मौसम ने फिर करवट ली है, ज़रा सी बारिश
होते ही हवाओं में ठण्ड कैसे घुल-मिल जाती है न, ठीक वैसे ही जैसे तुम मेरी
ज़िन्दगी के द्रव्य में घुल-मिल गयी हो... तुम्हारी ख़ुशबू का तो पता नहीं
लेकिन तुम्हारा ये एहसास मेरी साँसों के हर उतार-चढ़ाव में अंकित हो गया है...
आज शाम जब ऑफिस से निकला तो ठंडी हवा के थपेड़ों ने मेरे दिल पर दस्तक दे
दी... इस ठण्ड के बीच तुम्हारे ख्यालों की गर्म चादर लपेटे कब घर पहुँच गया
पता ही नहीं चला...
ऐसा
नहीं है कि मैंने बहुत दिन से तुम्हारे बारे में कुछ लिखा न हो, लेकिन जब
भी तुम्हारा ख्याल मेरे दिलो-दिमाग से होकर गुज़रता है, जैसे अन्दर कोई
कारखाना सा चल पड़ता है, और ढेर सारे शब्द उचक-उचक कर कागज़ पर उतर आने के
लिए बावरे हो जाते हैं... वैसे तो मैं हर किसी चीज से जुडी बातें लिखता हूँ
लेकिन अपने लिखे को उतनी शिद्दत से महसूस तभी कर पाता हूँ जब कागज़ पर
तुम्हारी तस्वीर उभर कर आ जाती है, गोया मेरी कलम को भी अब तुम्हारे प्यार
में ही तृप्ति मिलती है...
शाम
को जब तुम्हें जी भर के देखता हूँ तो सुकून ऐसा, मानो दिन भर सड़कों पे
भटकने के बाद किसी ने मेरे पैरों को ठन्डे पानी में डुबो दिया हो, सारा
तनाव, सारी परेशानियां चंद लम्हों में ही काफूर हो जाती हैं और बच जाता तो
बस तुम्हारे मोहब्बत का वो मखमली एहसास... तुम्हारे साथ हमेशा न रह पाने
का गुरेज़ तो है लेकिन इस बात का सुकून भी है कि मैं तो कबका तुम्हारी आखों
में अपना आशियाना बना कर तुम्हारी परछाईयों में शामिल हो चुका हूँ....
तुम्हें पता तो है न
मेरी ख्वाईशों के बारे में
ख्वाईशें भी अजीब हैं मेरी,
कि चलूँ कभी नंगे पाँव
किसी रेगिस्तान की
उस ठंडी रेत पर ,
हाथों में लिए तुम्हारे
प्यार के पानी से भरा थर्मस...
काँधे पर लटका हो
तुम्हारा दुपट्टा
और उसके दोनों सिरे की पोटलियों में
मेरी ख्वाईशों के बारे में
ख्वाईशें भी अजीब हैं मेरी,
कि चलूँ कभी नंगे पाँव
किसी रेगिस्तान की
उस ठंडी रेत पर ,
हाथों में लिए तुम्हारे
प्यार के पानी से भरा थर्मस...
काँधे पर लटका हो
तुम्हारा दुपट्टा
और उसके दोनों सिरे की पोटलियों में
बंधी हो तुम्हारे आँगन की
वो सोंधी सी मिटटी,
उसमे हो कुछ बूँदें
तुम्हारे ख़्वाबों के ख़ुशबू की,
दो चुटकी तुम्हारे इश्क का नमक
और ताजगी हो थोड़ी
वो सोंधी सी मिटटी,
उसमे हो कुछ बूँदें
तुम्हारे ख़्वाबों के ख़ुशबू की,
दो चुटकी तुम्हारे इश्क का नमक
और ताजगी हो थोड़ी
गुलाब के पंखुड़ियों पर
ढुलकती ओस के बूंदों की...
सच में
ख्वाईशें भी अजीब हैं मेरी...
ढुलकती ओस के बूंदों की...
सच में
ख्वाईशें भी अजीब हैं मेरी...
तुम्हें पता भी है हमारा प्यार किस सरगम से बना है, किसी सातवीं दुनिया के आठवें सुर से... जो तुम्हारे दिल से निकलते हैं और मेरे दिल को सुनाई देते हैं बस... और किसी को कुछ सुनाई नहीं देता... बाहर बारिश की कुछ बूँदें आवाज़ लगा रही हैं, आओ इन गीली सड़कों पर धीमे धीमे चलते हुए अपने क़दमों के निशां बनाते चलते हैं... तुम्हारे एहसास के क़दमों के कुछ निशां इस दिल पर भी बनते चले जायेंगे... ताउम्र तुम्हारा एहसास यूँ ही काबिज़ रहेगा इस दिल पर...
Tuesday, November 6, 2012
तुम नहीं हो तो क्या हुआ, तुम्हारा एहसास तो है... An evening without you...
आज
की शाम पिछले एक साल की हर शामों से थोड़ी अलग है, पिछले गुज़रे एक साल की
पोठली बना कर जो तुम मेरे पास छोड़ गयी हो.. उस पोठली में कितना कुछ है, वो
दिसंबर की सर्दी, जनवरी की घास पर पड़ी ओस की वो बूँदें, फ़रवरी की वो हलकी
सी धूप, मार्च के पेड़ों
से गिरते पत्ते, अप्रैल की चादर में लिपटा वो तुम्हारा इकरार, मई की शाखों
पर लगे वो ढेर सारे गुलमोहर के फूल... और भी न जाने कितना कुछ...
जैसे-जैसे इस पोठली के एक एक खजाने के साथ इस शाम का हर एक अकेला लम्हा
गुज़ार रहा हूँ,
उतना ही ज्यादा और ज्यादा खुद को तुम्हारे करीब पाता हूँ... पूरा शहर अपने
आप में मगन है, वही गाड़ियों की आवाजें, कुछ बच्चे बगल वाली छत पर खेल रहे
हैं, बीच बीच में कोई फेरीवाला भी आवाज़ लगा जाता है.. लेकिन इस सबसे अलग
मैं इस शहर से
कुरेद कुरेद कर तुम्हारी हर एक झलक को अपनी पलकों के इर्द-गिर्द समेटने की
जुगत में लगा हूँ... इस शहर की हवाओं में बहुत कुछ बह रहा है, इन हवाओं में
घुले तुम्हारे एहसास को अपनी साँसों में भर के एक ठंडक सी महसूस कर रहा
हूँ... कई सारे लफ्ज़ हैं जो इन कागज़ के पन्नों पर उतरने के लिए धक्का-मुक्की
मचाये हुए हैं, उन सभी लफ़्ज़ों को करीने से सजा कर एक ग़ज़ल लिखना बहुत
मुश्किल जान पड़ता है कभी न कभी कोई एक्स्ट्रा लफ्ज़ उतरकर इसे खराब किये दे
रहा है...
छुट्टी का दिन बहुत शानदार होता है न, ज़िन्दगी की हर एक शय को हम फुर्सत में देखते हैं, आज भी अकेले यूँ बैठा बैठा उन कई सारे अँधेरे लम्हों को मोमबत्ती की लौ से रौशन कर रहा हूँ, तुम्हें लगता होगा मैं तुम्हें मिस कर रहा होऊंगा, लेकिन नहीं मैं तो उन बीते पन्नों को पढ़ पढ़ कर खुश हुआ जा रहा हूँ जहाँ से होकर गुज़रते हुए आज तुम्हारे लिए ये लम्हा चुराया है और ये ख़त लिख रहा हूँ...
सुनो, तुम्हें पता है जब भी अपने आने वाले कल के बारे में सोचता हूँ, तो मुझे क्या नज़र आता है ? एक लॉन और उसमे लगा एक झूला, काफी देर तक उस लॉन में खड़ा रहता हूँ, फिर सामने की तरफ देखता हूँ तो एक घर, सपनों का घर... पीली-नीली दीवारें, हरी खिड़कियाँ, खिडकियों पर झूलती तुम्हारी पसंद के मनीप्लांट की लताएं... बालकनी में लगी वो विंड-चाईम... सिर्फ एक घर नहीं बल्कि उसके चारो तरफ लिपटे हमारे ढेर सारे सपने...
आने वाले आधे महीने के बीच हो सकता है न जाने कितने ही ऐसे लम्हें आयेंगे जब हम एक धागे के एक एक छोर को पकडे एक-दूसरे से दुबारा मिलने का इंतज़ार कर रहे होंगे, लेकिन मुझे यकीन इस बात का ज़रूर है कि जब हम मिलेंगे बहुत खूबसूरत होगा वो लम्हा...
खैर, बाहर का मौसम बहुत खुशगवार हो रहा है, हलकी बारिश और सर्द हवा... हवा चलती है तो जिस्म से हरारत सी पैदा होती है, फिर जल्दी से तुम्हारे यादों की चादर ओढ़ कर खुद को खुद में समेट लेता हूँ...
कैफ़ी आज़मी जी की एक ग़ज़ल याद आ रही है...
वो नहीं मिलता मुझे इसका गिला अपनी जगह
उसके मेरे दरमियाँ फासिला अपनी जगह...
छुट्टी का दिन बहुत शानदार होता है न, ज़िन्दगी की हर एक शय को हम फुर्सत में देखते हैं, आज भी अकेले यूँ बैठा बैठा उन कई सारे अँधेरे लम्हों को मोमबत्ती की लौ से रौशन कर रहा हूँ, तुम्हें लगता होगा मैं तुम्हें मिस कर रहा होऊंगा, लेकिन नहीं मैं तो उन बीते पन्नों को पढ़ पढ़ कर खुश हुआ जा रहा हूँ जहाँ से होकर गुज़रते हुए आज तुम्हारे लिए ये लम्हा चुराया है और ये ख़त लिख रहा हूँ...
सुनो, तुम्हें पता है जब भी अपने आने वाले कल के बारे में सोचता हूँ, तो मुझे क्या नज़र आता है ? एक लॉन और उसमे लगा एक झूला, काफी देर तक उस लॉन में खड़ा रहता हूँ, फिर सामने की तरफ देखता हूँ तो एक घर, सपनों का घर... पीली-नीली दीवारें, हरी खिड़कियाँ, खिडकियों पर झूलती तुम्हारी पसंद के मनीप्लांट की लताएं... बालकनी में लगी वो विंड-चाईम... सिर्फ एक घर नहीं बल्कि उसके चारो तरफ लिपटे हमारे ढेर सारे सपने...
आने वाले आधे महीने के बीच हो सकता है न जाने कितने ही ऐसे लम्हें आयेंगे जब हम एक धागे के एक एक छोर को पकडे एक-दूसरे से दुबारा मिलने का इंतज़ार कर रहे होंगे, लेकिन मुझे यकीन इस बात का ज़रूर है कि जब हम मिलेंगे बहुत खूबसूरत होगा वो लम्हा...
खैर, बाहर का मौसम बहुत खुशगवार हो रहा है, हलकी बारिश और सर्द हवा... हवा चलती है तो जिस्म से हरारत सी पैदा होती है, फिर जल्दी से तुम्हारे यादों की चादर ओढ़ कर खुद को खुद में समेट लेता हूँ...
कैफ़ी आज़मी जी की एक ग़ज़ल याद आ रही है...
वो नहीं मिलता मुझे इसका गिला अपनी जगह
उसके मेरे दरमियाँ फासिला अपनी जगह...
अब कभी तुझसे ना बिछरूँ ये दुआ अपनी जगह...
इस मुसलसल दौड में है मन्ज़िलें और फासिले
पाँव तो अपनी जगह हैं रास्ता अपनी जगह...
Sunday, October 28, 2012
चलो कुछ तारे तुम्हारे नाम कर दूं..
हर उस बैंगनी रात की गवाही में
उस नीले परदे को हटाकर
चिलमन के सुराखों से,
झांकता हुआ आसमान की तरफ
पल पल बस यही सोचता हूँ,
कुछ तारे तुम्हारे नाम कर दूं...
जब भी उन थके हुए पैरों को
कभी डुबोता हूँ जो
पास की उस झील में,
सन्न से मिलने वाले उस
सुकून को महसूस करके सोचता हूँ,
कुछ ठन्डे पानी के झरने तुम्हारे नाम कर दूं...
जब भी अकेले में कभी
करता हूँ तुम्हारा इंतज़ार,
हर उस पल
घडी के इन टिक-टिक करते
क़दमों को देख कर ये सोचता हूँ,
घडी की सूईओं के कुछ लम्हें तुम्हारे नाम कर दूं...
जब भी तुम्हारे साथ
बिताया वक़्त कम लगने लगता है,
जब कभी भी
तुम्हें भीड़ में खोया मैं
अच्छा नहीं लगता,
अपनी उम्र के साल गिनते हुए सोचता हूँ,
आने वाले सारे जन्म बस तुम्हारे नाम कर दूं...
उस नीले परदे को हटाकर
चिलमन के सुराखों से,
झांकता हुआ आसमान की तरफ
पल पल बस यही सोचता हूँ,
कुछ तारे तुम्हारे नाम कर दूं...
जब भी उन थके हुए पैरों को
कभी डुबोता हूँ जो
पास की उस झील में,
सन्न से मिलने वाले उस
सुकून को महसूस करके सोचता हूँ,
कुछ ठन्डे पानी के झरने तुम्हारे नाम कर दूं...
जब भी अकेले में कभी
करता हूँ तुम्हारा इंतज़ार,
हर उस पल
घडी के इन टिक-टिक करते
क़दमों को देख कर ये सोचता हूँ,
घडी की सूईओं के कुछ लम्हें तुम्हारे नाम कर दूं...
जब भी तुम्हारे साथ
बिताया वक़्त कम लगने लगता है,
जब कभी भी
तुम्हें भीड़ में खोया मैं
अच्छा नहीं लगता,
अपनी उम्र के साल गिनते हुए सोचता हूँ,
आने वाले सारे जन्म बस तुम्हारे नाम कर दूं...
Friday, September 21, 2012
प्यार एक सफ़र है, और सफ़र चलता रहता है...

उसकी ठीक दूसरी तरफ प्ले ग्राउंड में कुछ बच्चे खेल रहे हैं, उनकी दुनिया में कोई परेशानी नहीं है...परेशानियां है भी तो कितनी प्यारी-प्यारी सी... किसी की बॉल किसी दूसरे बच्चे ने ले ली, किसी के पैरों में थोडा सा कीचड लग गया... किसी को आईसक्रीम खानी है... उन छोटे छोटे बच्चों के आस-पास ही तो ज़िन्दगी है... ज़िन्दगी उन्हें दुलार रही है, उन्हें संवार रही है... उन बच्चों के साथ उनके माता-पिता भी ज़िन्दगी ढूँढ़ते रहते हैं... उनको खेलते हुए देखकर मेरे चेहरे पर बरबस ही मुस्कराहट की कई सारी रेखाएं उभर आती हैं....
************************
सामने की तरफ देखता हूँ तो एक प्रेमी जोड़ा हाथों में हाथ डाले धीमे धीमे टहल रहा है... उन्हें लगता है यूँ धीमे चलने से वक़्त भी धीमा हो जायेगा... लेकिन ये तो उसी रफ़्तार से चलता है... वो बड़े प्यार से एक दूसरे की आखों को देख रहे हैं... अपनी अपनी निजी परेशानियों को थोड़ी देर के लिए भूलकर बस एक दूसरे का साथ इंजॉय कर रहे हैं शायद... दोनों में से कोई कुछ नहीं कह रहा है... या फिर ये वो भाषा है जो मैं नहीं सुन सकता... इन खामोशियों के कोई अलफ़ाज़ भी तो नहीं होते... वो बिना कुछ कहे ही हर कुछ सुन सकते हैं, हर कुछ महसूस कर सकते हैं... इस लम्हें को कोई भी चित्रकार या फोटोग्राफर कैद करना चाहेगा... बादल आसमान को धीरे धीरे ढकते जा रहे हैं... हलकी-हलकी बारिश शुरू हो गयी है.... लेकिन उन्हें कोई फर्क नहीं... वो तो कब के प्यार की बारिश को महसूस कर रहे हैं... बादल गरजने की ज्यादा आवाज़ तो नहीं महसूस की लेकिन बिजली का चमकना साफ़ दिख गया अँधेरे में.... अचानक से बारिश तेज़ हो गयी है... बारिश... उफ्फ्फ क्यूँ होती है ये बारिश... पार्क की सारी बेंच गीली हो गयी हैं... मैं अपनी छतरी निकाल कर अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगता हूँ... वो अब भी एक दूसरे का हाथ पकडे एक शेड के नीचे खड़े बारिश के थमने का इंतज़ार कर रहे हैं..
*************************
पार्क
की एक बेंच पर बैठा आसमान से बातें कर रहा हूँ कि, दो बेंच छोड़कर बैठे
दो थोड़े जाने पहचाने चेहरे दिखे.. पिछली बार की ही तरह कोई कुछ नहीं बोल
रहा.. एक लम्बी चुप्पी के बाद लड़की ने कुछ कहा, लड़के ने हामी में सर हिला
दिया है... और फिर खामोशियाँ बातें करने लगीं... प्यार करने वालों को देखकर
अच्छा लगता है... वैसे भी इस भाग दौड़ में यूँ फुरसत के पल कितने कम रह गए
हैं... शुक्र है प्यार के इस रास्ते में दोराहे नहीं होते... इंसान उस साथ
को जीता रहता है और खुश रहता है... आज मौसम ठीक है लेकिन मुझे कुछ काम है,
मैं पार्क के गेट से बाहर
निकलते हुए एक बार पलट कर देखता हूँ... वो दोनों अब भी खामोश हैं... वो शाम
बहुत मुलायम सी थी और वो दोनों इसे ओढ़कर बड़े प्यार से बैठे थे....
**************************
आज
काफी दिनों बाद पार्क आया हूँ, पर सब कुछ पुराना पुराना सा है... वैसे
भी चीजें कहाँ बदलती हैं उन्हें देखने का नजरिया बदलता जाता है... बदलना भी
एक अजीब शय है, मैं कभी कभी मज़ाक में अंशु से पूछता हूँ कि पिछले १ साल
में तुम्हारी ज़िन्दगी में क्या क्या बदला, तो वो खिलखिला कर जवाब देती है
"तुम जो आ गए..." और ऐसा कह कर अपना सर मेरे कंधे पर टिका दिया करती है...
उस समय उसकी आखों में अजीब सी चमक होती है... फिर मैं ग़र पूछूं कि मेरे
अलावा क्या बदला... फिर वो बोलती है "छोडो न कुछ भी बदला हो मुझे क्या..
बदलने दो जो भी बदलता है..." इन्हीं ख्यालों में खोया खोया मैं यूँ ही
मुस्कुरा रहा हूँ... तभी मेरी नज़र एक लड़के पर पड़ी, वही जिसे मैं नहीं जानते
हुए भी जानता हूँ... वो आज अकेला है, शायद इंतज़ार कर रहा हो उस लड़की
का.... लेकिन आखों में इंतज़ार की कोई झलक नहीं... वो सूनी आखों से पास के
गमले की मिटटी को देख रहा है... काफी देर तक कोई हलचल नहीं... उसका अकेलापन
मुझे परेशान कर रहा है... मन में कई तरह के प्रश्न घुमड़ रहे हैं.. फिर भी
बिना उससे कुछ कहे वहां से उठ जाता हूँ...
**************************
पता
नहीं क्यूँ आज उस निश्चित समय पर मैं पार्क आने के लिए बहुत बेचैन हूँ...
तेज़ क़दमों से मैंने पार्क के अन्दर कदम रखा, फिर घडी की तरफ निगाह डाली तो
आज शायद थोडा पहले आ गया... मैंने इधर उधर निगाह दौड़ाई और एक खाली बेंच
पर बैठ गया... नज़र पार्क के गेट पर टिकी हुयी है, भला किसका इंतज़ार है मुझे
और क्यूँ... वो लड़का आता हुआ दिख रहा है, लेकिन वो आज भी अकेला है... वो
आकर अपनी उसी पूर्वनिर्धारित बेंच पर बैठ गया है... थोड़ी देर इंतज़ार करने
के बाद मुझसे रहा नहीं जाता और मैंने उसकी तरफ कदम बढ़ा दिए हैं... मैं उसको जाकर हेलो करता हूँ...
वो थोड़ी अजीब सी प्रश्नवाचक निगाहों से मुझे देखता है..
मे आई सिट हियर ???
या स्योर...
डु यू नो हिंदी .. ? (बंगलौर में ऐसा पूछना पड़ता है....)
हाँ.. (इसका जवाब हाँ में होना ज़रूरी था नहीं तो बाकी की पोस्ट इंग्लिश में हो जाती...)
फिर
मैं उसको वो बातें बताता हूँ जो मैंने ओबजर्व की थीं... मेरी बातें सुनते
सुनते उसकी आखें और सूनी होती जा रही हैं ... वो इसका कोई जवाब नहीं देता,
उठ कर जाने लगता है ...
क्या हुआ ??
कुछ नहीं... मेरी ट्रेन है आज रात को, मैं ये शहर छोड़ कर जा रहा हूँ ....
फिर शायद उसे मेरी आखों में उभर आये ढेर सारे प्रश्न दिखने लग गए... काफी सोच कर रूंधे गले से उसने कहा..
कल रात उसकी शादी हो गयी, उसके पापा हमारी शादी को तैयार नहीं थे... और बिना उनकी मर्ज़ी के वो तैयार नहीं थी...
फिर काफी देर तक वहां सन्नाटा छाया रहा, मेरे पास उसे कहने के लिए कुछ नहीं था... थोड़ी देर बाद उसने खुद कहा...
इस शहर ने हमें बहुत कुछ दिया.. हम यहीं मिले, यहीं दोस्त बने और फिर यहीं प्यार भी हो गया... आज जब वो मेरे साथ नहीं है तो इस शहर को यूँ ही छोड़ कर जा रहा हूँ, मैं नहीं चाहता कि इस शहर को मैं उदास निगाहों से कभी देखूं... चाहता हूँ पार्क की इस बेंच पर फिर कोई प्यार करने वाले बैठे, यहाँ अपनी उदासी का रंग नहीं बिखेरना चाहता... इस शहर को अपनी तन्हाई से दूर रखना चाहता हूँ... ताकि कल अगर इस शहर को कभी याद करूँ तो बस अच्छी अच्छी यादें ही मिलें... हमें साथ में जितना वक़्त भी भगवान् ने दिया बस उन्ही लम्हों को समेटे एक नए सफ़र पर निकल रहा हूँ... जानता हूँ उतना आसान नहीं होगा मेरे लिए, लेकिन उतना आसान आखिर दुनिया में है भी क्या भला... ये आखिरी इम्तहान भी देना ज़रूरी है न अपने प्यार को निभाने के लिए... ताकि अगर इस इम्तहान में पास हो गया तो फिर अगले जन्म में उसके साथ हमेशा हमेशा रह सकूं....
वो जा रहा है, मैं चाह कर भी कुछ न बोल सका...
बारिश धीमे धीमे अपनी बूँदें धरती पर फैला रही है... पहली बार मिटटी की सोंधी खुशबू मुझे अच्छी नहीं लग रही... आस-पास का माहौल नम हो गया है, सडकें धुंधली दिखने लगी हैं... छतरी होते हुए भी मैं नहीं खोल रहा और भारी कदमो से पार्क से बाहर निकल रहा हूँ, पलट कर देखता हूँ तो एक प्रेमी जोड़ा एक दूसरे का हाथ पकडे उसी शेड के नीचे खड़े बारिश के थमने का इंतज़ार कर रहा है... सच में प्यार जितनी देर भी रहता है हम बस उसी में रहते है... ये सफ़र चलता रहता है और साथ साथ हमारी ज़िन्दगी भी ...
कल रात उसकी शादी हो गयी, उसके पापा हमारी शादी को तैयार नहीं थे... और बिना उनकी मर्ज़ी के वो तैयार नहीं थी...
फिर काफी देर तक वहां सन्नाटा छाया रहा, मेरे पास उसे कहने के लिए कुछ नहीं था... थोड़ी देर बाद उसने खुद कहा...
इस शहर ने हमें बहुत कुछ दिया.. हम यहीं मिले, यहीं दोस्त बने और फिर यहीं प्यार भी हो गया... आज जब वो मेरे साथ नहीं है तो इस शहर को यूँ ही छोड़ कर जा रहा हूँ, मैं नहीं चाहता कि इस शहर को मैं उदास निगाहों से कभी देखूं... चाहता हूँ पार्क की इस बेंच पर फिर कोई प्यार करने वाले बैठे, यहाँ अपनी उदासी का रंग नहीं बिखेरना चाहता... इस शहर को अपनी तन्हाई से दूर रखना चाहता हूँ... ताकि कल अगर इस शहर को कभी याद करूँ तो बस अच्छी अच्छी यादें ही मिलें... हमें साथ में जितना वक़्त भी भगवान् ने दिया बस उन्ही लम्हों को समेटे एक नए सफ़र पर निकल रहा हूँ... जानता हूँ उतना आसान नहीं होगा मेरे लिए, लेकिन उतना आसान आखिर दुनिया में है भी क्या भला... ये आखिरी इम्तहान भी देना ज़रूरी है न अपने प्यार को निभाने के लिए... ताकि अगर इस इम्तहान में पास हो गया तो फिर अगले जन्म में उसके साथ हमेशा हमेशा रह सकूं....
वो जा रहा है, मैं चाह कर भी कुछ न बोल सका...
बारिश धीमे धीमे अपनी बूँदें धरती पर फैला रही है... पहली बार मिटटी की सोंधी खुशबू मुझे अच्छी नहीं लग रही... आस-पास का माहौल नम हो गया है, सडकें धुंधली दिखने लगी हैं... छतरी होते हुए भी मैं नहीं खोल रहा और भारी कदमो से पार्क से बाहर निकल रहा हूँ, पलट कर देखता हूँ तो एक प्रेमी जोड़ा एक दूसरे का हाथ पकडे उसी शेड के नीचे खड़े बारिश के थमने का इंतज़ार कर रहा है... सच में प्यार जितनी देर भी रहता है हम बस उसी में रहते है... ये सफ़र चलता रहता है और साथ साथ हमारी ज़िन्दगी भी ...
Sunday, August 19, 2012
एक बात जो कहनी है तुमसे ...
जाने क्यूँ अतीत का ये पन्ना इतना बेचैन सा
है, हर शाम हवा के धीमे से थपेड़े से भी परेशान होकर फडफडाने लगता है...
आज उस पन्ने को खोलते हुए एक सुकून सा लग रहा है...
*******************
वो पल अक्सर ही मेरी आखों के सामने आ जाया करता है, जब तुम्हें पहली बार देखा था... उस समय तक तो तुम्हारा नाम भी नहीं जानता था, ये भी नहीं कि तुम्हारी ज़िन्दगी के ये खुरदुरे से खांचे मुझे अपने पास खींच ले जायेंगे... उस समय तक तुम मेरे लिए बस एक ख्याल थीं, बस एक चेहरा जिसपर मैंने उस दिन उतना ध्यान भी नहीं दिया था... बात आई-गयी हो गयी थी... यूँ कभी तुम्हारे बारे में कभी कुछ सोचा भी नहीं... फिर पता नहीं कैसे वो चेहरा मेरे ख्यालों के इतना करीब आ गया कि उसने मेरे सपने में दस्तक दे दी... न ही ये आखें वो सपना भूल सकती हैं और न ही उसमे दिखती तुम्हारी वो रोती हुयी भीगी पलकें... अगली सुबह मैं भी बहुत बेचैन सा हो गया था, सोचा जल्दी से तुम्हें एक झलक बस देख भर लूं, कहीं तुम कोई जानी पहचानी तो नहीं.... काफी देर तक याद करता रहा कि कहीं तुम्हें पहले देखा तो नहीं... अपनी ज़िन्दगी की किताब कोलफ्ज़-दर-लफ्ज़ सफहा-दर-सफहा पलटता रहा लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था, तुम तो बिलकुल नयी सी
थी मेरी ज़िन्दगी में... फिर अचानक से तुम्हारा ये चेहरा भला क्यूँ मेरे
आस-पास से गुजरने लगता है...
सोचा अगले दिन तुमसे बात करूंगा, तुमसे तुम्हारा नाम पूछूंगा... लेकिन इतनी हिम्मत जुटा पाना शायद मुश्किल ही था... तुम अब एक पहेली ही थी मेरे लिए... बस आते जाते नज़रें चुराकर तुम्हें देख भर लिया करता था, अब तक तो तुम्हारा नाम भी पता चल गया था... और भी बहुत कुछ समझने की कोशिश करता रहता था... पता नहीं ये मेरा भ्रम था या और कुछ लेकिन मुझे तुम्हारे आस -पास दूर तक पसरा हुआ एकांत नज़र आता था... जैसे अकेले किसी अनजान से सफ़र पर हो... लगता था जैसे तुम्हें किसी दोस्त की ज़रुरत हो, मैं तुम्हारे उस एकांत को अपनी दोस्ती से भर देना चाहता था...
वो रातें अक्सर उदास होती थीं, उनमे न ही वो सुकून था और न ही आखों के आस पास नींद के घेरे... बस गहरा सन्नाटा था... हर सुबह उठकर बस तुम्हें एक झलक देख भर लेने की हड़बड़ी... तुम जैसे मुझसे नज़रें बचाना चाहती थी, हमेशा दूर-दूर भागते रहने की कोशिश... तुम्हारी ज़िन्दगी में पसरे उस एकांत और उदासियों का हाथ पकड़कर मैं तुम्हारे शहर से कहीं दूर छोड़ आना चाहता था... तुम्हें ये बतलाना चाहता था कि नींद आखिर कितनी भी बंजर क्यूँ न हो उसपे कभी न कभी किसी सुन्दर से ख्वाब का फूल खिलता ज़रूर है... तुम्हारी इन परेशान सी पलकों तले तुम्हारे लिए खूबसूरत ख्वाबगाह बना देना चाहता था... पर अब तक तुमने मुझे इसकी इजाजत नहीं दी थी...
मेरे दोस्त इसे कोई प्रेम कहानी समझने की भूल कर बैठे थे, उस समय तक तो मैं तुम्हें जानना भर चाहता था, तुम्हारी ज़िन्दगी की दरो-दीवार पर लिखे चंद लफ्ज़ पढना चाहता था... एक तड़प सी थी, एक बेचैनी... ठीक वैसे ही जैसे कोई चित्रकार अपने सामने पड़े खाली कैनवास को देखकर बेचैन हो उठता है... तुम्हारे अन्दर उस उदास, तन्हा इंसान में अपने आप को देखने लगा था... मैं किसी भी तरह तुम तक पहुंचना भर चाहता था...
हाँ ये सच है कि उस समय तक मुझे तुमसे प्यार नहीं था, लेकिन प्यार से भी कहीं ज्यादा मज़बूत एक धागा जुड़ गया था तुम्हारी ज़िन्दगी के साथ... जैसे एक मकसद, एक ख्वाईश.... तुम्हें हमेशा खुश रखने की, तुम्हें दुनिया की सारी खुशियाँ देने की... किसी का ख़याल रखने और उसको हमेशा खुश देखने की किस परिधि को प्यार कहते हैं ये मुझे कभी समझ नहीं आया... लेकिन तुम्हारे सपनों को सहेजते सहेजते बहुत आगे निकल गया... जब इस बात का एहसास हुआ तब अचानक ही जैसे आस-पास सब कुछ थम सा गया... काफी देर तक कमरे में खामोशियाँ चहलकदमी करती रहीं... गौर से अपनी ज़िन्दगी की सतहों पर देखा तो उनपर तुम्हारे नाम का प्यार अनजाने में ही पसर चुका था... मुझे तुमसे प्यार हो गया था, तुम्हारे बिना जीने की सोच से भी डर लगने लगा था...मेरे पास खुश होने की कई वजहें थीं लेकिन मैं उदास था... उदास इसलिए कि अब तुम्हें खो देने का डर सता रहा था....
*******************
वो पल अक्सर ही मेरी आखों के सामने आ जाया करता है, जब तुम्हें पहली बार देखा था... उस समय तक तो तुम्हारा नाम भी नहीं जानता था, ये भी नहीं कि तुम्हारी ज़िन्दगी के ये खुरदुरे से खांचे मुझे अपने पास खींच ले जायेंगे... उस समय तक तुम मेरे लिए बस एक ख्याल थीं, बस एक चेहरा जिसपर मैंने उस दिन उतना ध्यान भी नहीं दिया था... बात आई-गयी हो गयी थी... यूँ कभी तुम्हारे बारे में कभी कुछ सोचा भी नहीं... फिर पता नहीं कैसे वो चेहरा मेरे ख्यालों के इतना करीब आ गया कि उसने मेरे सपने में दस्तक दे दी... न ही ये आखें वो सपना भूल सकती हैं और न ही उसमे दिखती तुम्हारी वो रोती हुयी भीगी पलकें... अगली सुबह मैं भी बहुत बेचैन सा हो गया था, सोचा जल्दी से तुम्हें एक झलक बस देख भर लूं, कहीं तुम कोई जानी पहचानी तो नहीं.... काफी देर तक याद करता रहा कि कहीं तुम्हें पहले देखा तो नहीं... अपनी ज़िन्दगी की किताब को
सोचा अगले दिन तुमसे बात करूंगा, तुमसे तुम्हारा नाम पूछूंगा... लेकिन इतनी हिम्मत जुटा पाना शायद मुश्किल ही था... तुम अब एक पहेली ही थी मेरे लिए... बस आते जाते नज़रें चुराकर तुम्हें देख भर लिया करता था, अब तक तो तुम्हारा नाम भी पता चल गया था... और भी बहुत कुछ समझने की कोशिश करता रहता था... पता नहीं ये मेरा भ्रम था या और कुछ लेकिन मुझे तुम्हारे आस -पास दूर तक पसरा हुआ एकांत नज़र आता था... जैसे अकेले किसी अनजान से सफ़र पर हो... लगता था जैसे तुम्हें किसी दोस्त की ज़रुरत हो, मैं तुम्हारे उस एकांत को अपनी दोस्ती से भर देना चाहता था...
वो रातें अक्सर उदास होती थीं, उनमे न ही वो सुकून था और न ही आखों के आस पास नींद के घेरे... बस गहरा सन्नाटा था... हर सुबह उठकर बस तुम्हें एक झलक देख भर लेने की हड़बड़ी... तुम जैसे मुझसे नज़रें बचाना चाहती थी, हमेशा दूर-दूर भागते रहने की कोशिश... तुम्हारी ज़िन्दगी में पसरे उस एकांत और उदासियों का हाथ पकड़कर मैं तुम्हारे शहर से कहीं दूर छोड़ आना चाहता था... तुम्हें ये बतलाना चाहता था कि नींद आखिर कितनी भी बंजर क्यूँ न हो उसपे कभी न कभी किसी सुन्दर से ख्वाब का फूल खिलता ज़रूर है... तुम्हारी इन परेशान सी पलकों तले तुम्हारे लिए खूबसूरत ख्वाबगाह बना देना चाहता था... पर अब तक तुमने मुझे इसकी इजाजत नहीं दी थी...
मेरे दोस्त इसे कोई प्रेम कहानी समझने की भूल कर बैठे थे, उस समय तक तो मैं तुम्हें जानना भर चाहता था, तुम्हारी ज़िन्दगी की दरो-दीवार पर लिखे चंद लफ्ज़ पढना चाहता था... एक तड़प सी थी, एक बेचैनी... ठीक वैसे ही जैसे कोई चित्रकार अपने सामने पड़े खाली कैनवास को देखकर बेचैन हो उठता है... तुम्हारे अन्दर उस उदास, तन्हा इंसान में अपने आप को देखने लगा था... मैं किसी भी तरह तुम तक पहुंचना भर चाहता था...
हाँ ये सच है कि उस समय तक मुझे तुमसे प्यार नहीं था, लेकिन प्यार से भी कहीं ज्यादा मज़बूत एक धागा जुड़ गया था तुम्हारी ज़िन्दगी के साथ... जैसे एक मकसद, एक ख्वाईश.... तुम्हें हमेशा खुश रखने की, तुम्हें दुनिया की सारी खुशियाँ देने की... किसी का ख़याल रखने और उसको हमेशा खुश देखने की किस परिधि को प्यार कहते हैं ये मुझे कभी समझ नहीं आया... लेकिन तुम्हारे सपनों को सहेजते सहेजते बहुत आगे निकल गया... जब इस बात का एहसास हुआ तब अचानक ही जैसे आस-पास सब कुछ थम सा गया... काफी देर तक कमरे में खामोशियाँ चहलकदमी करती रहीं... गौर से अपनी ज़िन्दगी की सतहों पर देखा तो उनपर तुम्हारे नाम का प्यार अनजाने में ही पसर चुका था... मुझे तुमसे प्यार हो गया था, तुम्हारे बिना जीने की सोच से भी डर लगने लगा था...मेरे पास खुश होने की कई वजहें थीं लेकिन मैं उदास था... उदास इसलिए कि अब तुम्हें खो देने का डर सता रहा था....
Saturday, July 28, 2012
तुम्हारी मुस्कान के लिए...
मैं हर शाम उतर आता हूँ
तुम्हारे आँगन में...
अपने हाथों में लिए
छुपाने की पूरी कोशिश करता हूँ,
ताकि जब अचानक से तुम्हें दे दूं
तो तुम चौंक सी जाओ
और बदले में
उछाल दो
एक प्यारी सी मुस्कान मेरी तरफ...
मैं हर रात
तुम्हें अपनी गोद में सुलाता हूँ,
और तुम भी मेरा हाथ पकडे,
जैसे खो जाती हो
अपने सुहाने सपनों में...
मैं बस निहारता जाता हूँ
तुम्हारे उन
स्वप्न सजीले नैनों को...
वो आखें बस
किसी अधमुंदे ख्याल में
मुस्कुराती जाती हैं...
मैं हर सुबह तुम्हें सपनों से जगाता हूँ,
अभी अभी खिले
उन फूलों के साथ
जिनपर से अभी
ओस की बूँदें सूखी भी नहीं है...
ये प्यारी सी छोटी छोटी बूँदें,
तुम्हारी इन
आखों की तरह हैं न..
बिल्कुल निर्मल, सादादिल...
तुम्हारी आखें भी
मुझे देखकर
छन से मुस्कुरा देती हैं....
तुम्हारी मुस्कान भी
एक अजीब तोहफा है,
कहने को कुछ भी नहीं
और मानो तो मेरे जीवन भर की ख़ुशी....
Subscribe to:
Posts (Atom)