Sunday, October 21, 2012

आखिर लड़कियों को शादी क्यूँ करनी चाहिए...

इन दिनों ये टॉपिक काफी गरमागरम है तो हमने सोचा हम भी थोडा अपना ब्लॉग सेक लें...
रिसेंटली ये मुद्दा मेरे दिमाग में तब आया जब हरियाणा के कुछ प्रकांड विद्वानों ने अपनी राय दी कि लडकियां जल्दी से जल्दी बियाह दी जाएँ ताकि उनका बलात्कार न हो सके...
वैसे हो सकता है उनकी नज़र में इस बात का कोई ठोस कारण उन्हें समझ में आया होगा, मुझे तो बस इतना ही समझ में आया कि लगता है जवानी में उन्हें एक सांसारिक सुख का उपभोग करने के लिए काफी इंतज़ार करना पड़ा हो और ऐसे में उनके दिमाग में भी कभी बलात्कार का ख़याल आया हो, या फिर हो सकता किसी ने किया भी हो... अच्छा चलिए बलात्कार न सही, यौन शोषण तो ज़रूर किया होगा... अब ऐसे गुणी विद्वजनों से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है... ये विद्वान भी बड़े कमाल के हैं इनके हिसाब से लडकियां कोई खिलौना हो सकती हैं जिसका उपयोग पुरुष खेलने के लिए कर सकते हैं या फिर ये कहें करते हैं... कुछ शादी के पहले खेलते हैं और कुछ बेचारों को शादी तक का इंतज़ार करना पड़ता है... खैर ये तो हुयी उन जाहिलों की बातें जो आज की तुलना मुग़ल साम्राज्य से करते हैं... बात यहीं ख़त्म नहीं हुयी, वही बात हैं न कि बात निकली है तो दूर तलक जाएगी...
वैसे तो भारत में मुफ्त की एडवाईस बहुत मिलती है, इसलिए रस्मो-रिवाजों को निभाते हुए पिछले दिनों हमारी प्रिय दोस्त आराधना चतुर्वेदी 'मुक्ति" जी को ऐसे ही किसी विद्वजन ने सलाह दी होगी सो उन्होंने हम सब से बाँट ली... उन्होंने लिखा...
कल एक ब्लॉगर और फेसबुकीय मित्र ने मुझे यह सलाह दी कि मैं शादी कर लूँ, तो मेरी आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित हो जायेगी :) इस प्रकार का विवाह एक समझौता ही होगा. तब से मैं इस समझौते में स्त्रियों द्वारा 'सुरक्षा' के लिए चुकाई जाने वाली कीमत के विषय में विचार-विमर्श कर रही हूँ और पुरुषों के पास ऐसा कोई सोल्यूशन न होने की मजबूरियों के विषय में भी :)

मतलब अब ये स्टेटस पढ़ कर मेरी आखों के सामने थोड़ी सी चिंता उभर आई, पहले तो हम सोच रहे थे कि केवल बलात्कार से बचने के लिए लड़कियों को विवाह करना चाहिए, अब एक नयी बात सामने आ गयी... सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा... मुझे लगा चलो हो सकता है सामजिक सुरक्षा के लिए विवाह जरूरी हो, अब जहाँ ऐसे लोग घूम रहे हों जो बलात्कार को अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानकर चल रहे हों तो वहां ऐसा सोचना ज़रूरी भी हो जाता है... लेकिन ये आर्थिक सुरक्षा ?? यहाँ तो अपने सामने मैं ऐसी लड़कियों को देखता हूँ जो मुझसे ५ से ६ गुना ज्यादा पैसा कमा रही हैं... ऐसी सोच से तो एक दंभ की बू आती है कि केवल लड़के ही अच्छे पैसे कमा सकते हैं... जो लोग ऐसा सोच कर दम्भित हुए जा रहे हैं उन लोगों को महानगर में आकर एक-आध चक्कर लगा लेने चाहिए... अब इस स्टेटस पर क्या और किस तरह की नयी फ्री फंड की एडवाईस मिली वो आप खुद जाकर पढ़ लीजियेगा, वैसे भी इस पर एक पोस्ट लिखी जा चुकी है... आप उसे देवेन्द्र जी के ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं.... खैर यहाँ तक पढने के बाद लड़कियों के विवाह करने के अच्छे खासे कारण मिल गए थे... हम भी संतुष्ट थे चलो, अब तो बेचारी लडकियां विवाह कर ही लेंगी... लेकिन बात यहाँ कहाँ रुकनी थी... टहलते टहलते हम एक गलत पते पर पहुँच गए, गलत पता इसलिए क्यूंकि वहां अपने काम का कोई मैटेरियल आज तक नहीं मिला केवल आलतू-फालतू की बातों की राई से पहाड़ बनाया जाता है... वहीँ पर आराधना जी के उस फेसबुक स्टेटस रो रेफर करते हुए जवाब लिखा गया था..
यह एक टिपिकल नारीवादी चिंतन है जो विवाह की पारंपरिक व्यवस्था पर जायज/नाजायज सवाल उठता रहा है. यहाँ के विवाह के फिजूलखर्चों, दहेज़, बाल विवाह आदि का मैं भी घोर विरोधी रहा हूँ मगर नारीवाद हमें वो राह दिखा रहा है जहाँ विवाह जैसे संबंधों के औचित्य पर भी प्रश्नचिह्न उठने शुरू हो गए हैं, और यह मुखर चिंतन लिव इन रिलेशनशिप होता हुआ पति तक को भी " पेनीट्रेशन"  का अधिकार देने न देने को लेकर जागरूक और संगठित होता दिख रहा है. क्या इसे अधिकार की व्यैक्तिक स्वतंत्रता की इजाजत दी जा सकती है.. क्या समाज के हित बिंदु इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे ? धर्म तो विवाह को केवल प्रजनन के पवित्र दायित्व से जोड़ता है.. अगर पेनीट्रेशन नहीं तो फिर प्रजनन का प्रश्न नहीं और प्रजनन नहीं तो फिर प्रजाति का विलुप्तिकरण तय...
अब तो मेरा चिंतित होना जायज था, ये पहलू तो हमने सोचा ही नहीं... विवाह नहीं तो सेक्स नहीं, सेक्स नहीं तो प्रजनन नहीं और फिर तो ये ७ अरब की जनसँख्या वाली दुनिया की अगली पीढ़ी कैसे आ पायेगी भला... फिर तो विलुप्तिकरण हो ही जाएगा... हालांकि ये सोच भी काफी हद तक हरियाणा के उन विद्वजनों से मेल खाती मालूम होती है क्यूंकि दोनों ही सेक्स के आस पास घूमती है ... लेकिन इसमें सेक्स करने के लायसेंस और आने वाली पीढ़ियों के अस्तित्व को लेकर चिंता भी जताई गयी है... उनकी भी चिंता जायज ही है... मैं उनकी चिंता का सम्मान करता हूँ, और उनकी सोच के आगे नतमस्तक हूँ... जहां ऐसी सोच रखने वाले लोग हैं वहां पीढियां ख़त्म हो ही नहीं सकतीं.... चलिए अच्छा है लोग नए नए कारण ढूँढ ढूँढ कर लाने की कोशिश कर रहे हैं...
लेकिन मुझे एक बात समझ नहीं आती विवाह के पीछे लोग कारण खोजने में काहे लगे हुए हैं, क्या विवाह एक जरूरत है, एक अनिवार्य कदम है जो हर स्त्री/पुरुष को उठाना जरूरी है... ?? हाँ ये ज़रूर मानता हूँ ज़िन्दगी के कई मोड़ पर ये लगता है एक हमसफ़र होता तो भला होता... खासकर उम्र के तीसरे पडाव और अंतिम पडाव पर इंसान मानसिक तौर पर काफी एकाकी महसूस करने लगता है... ऐसे कई लोग अपने आस पास देखे हैं जिन्होंने विवाह न करने के फैसले तो लिए लेकिन एक वक़्त आते आते खुद को अकेला महसूस करने लगे....
खैर ये एक अंतहीन विषय है इसपर अपनी राय मैंने फेसबुक पर ही उनके स्टेटस पर दर्ज कराई थी यहाँ भी उसी कमेन्ट के साथ इति करना चाहूँगा....
वैसे विवाह सबका अपना एक निजी निर्णय होता है सिर्फ और सिर्फ उस कारण से विवाह कर लेना कि भाई हमें उसकी ज़रुरत (चाहे जैसी भी हो) पड़ेगी कहीं से भी उचित नहीं है लेकिन अगर किसी के पास एक हमसफ़र के रूप में कोई हो तो ना करने का कोई कारण नहीं है...
विवाह का अस्तित्व अनिवार्यता और ज़रुरत से परे ही देखा जाना चाहिए.... सिर्फ ज़रूरतों को पूरा किये जाने के लिए विवाह नहीं किये जाते...
Disclaimer:- सोचा था ये पोस्ट व्यंग्य के रूप में रखूंगा लेकिन अंत तक आते आते पोस्ट सीरियस नोट पर ख़त्म कर रहा हूँ... साथ में इससे पहले कि कुछ विद्वजन खुद को समझदार साबित करने की जुगत में लग जाएँ उनसे बस एक बात कहना चाहूंगा... सिर्फ इसलिए कि आप उम्र में मुझसे बड़े हैं या फिर आपके पास मुझसे ज्यादा डिग्रियां हैं आप मुझसे ज्यादा समझदार भी होंगे, मैं ये मानने से बेहद सख्त शब्दों में इनकार करता हूँ...

17 comments:

  1. हमारे समाज में हर समस्या को, चाहे वो स्त्रियों की ही क्यों न हो, पुरुषों के नजरिये से ही देखा जाता है. जैसे औरतों का अपना कोई अस्तित्व, अपनी इच्छा, आकांक्षा है ही नहीं. इसीलिये जब औरत ये बात कहती है कि उसे शादी नहीं करनी तो लोगों को समाज की चिन्ता हो जाती है. मुद्दा इस बात का है ही नहीं कि शादी ज़रूरी है या नहीं, इस बात का है कि एक व्यक्ति चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, यह अधिकार रखता है कि वह विवाह करे या न करे और करे तो कब और किससे करे. हमारे यहाँ लड़कों को तो ये अधिकार है, लड़कियों को नहीं. और सारे अधिकारों की तरह.
    मैं यही मानती हूँ कि विवाह चाहे कोई अपनी ज़रूरत पूरी करने के लिए करे या प्यार में पड़कर करे, या करे ही न, ये पूरी तरह उस पर छोड़ देना चाहिए. समाज को इसमें नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि इतना तो निश्चित ही है कि इंसान अकेले रहने वाले जीवों में से नहीं है, किसी साथ की ज़रूरत उसे पड़ती ही है और स्त्री-पुरुष को साथ रहने के लिए विवाह जैसी सामाजिम मान्यताओं की ज़रूरत है, इसलिए विवाह संस्था इतनी जल्दी मिटने वाली नहीं. बस ये प्रबुद्ध जन लड़कियों को उपदेश देना छोड़ दें, क्योंकि आजकल की लड़कियाँ पढ़ी-लिखी और समझदार हैं, उन्हें अपने जीवन के निर्णय लेने की पूरी आज़ादी होनी चाहिए.

    ReplyDelete
    Replies
    1. @ हमारे यहाँ लड़कों को तो ये अधिकार है, लड़कियों को नहीं. और सारे अधिकारों की तरह...

      मुक्ति जी,
      ऐसा नहीं है। इतना या उतना का अंतर जरूर हो सकता है लेकिन आज भी अधिकतर मध्यम वर्गीय परिवारों में(जो अभी एकदम से माडर्न नहीं हुये हैं) प्राय: यह निर्णय अकेले लड़का या लड़की नहीं लेते।
      जब प्रबुद्ध जनों को समझ आ जायेगा कि उपदेश व्यर्थ जा रहे हैं तो वे भी तदानुरूप रियेक्ट करने ही लगेंगे। आशा करनी चाहिये कि फ़िर किसी को कोई शिकायत नहीं रहेगी। पढ़ी लिखी और समझदार लड़कियाँ अपने जीवन के निर्णय जरूर लें, पूरी आजादी से लें, न उन्हें किसी से शिकायत रहे और न किसी को दोष देना पड़े। कल्पना कर रहा हूँ कि पुलिस, कचहरियों, अस्पतालों का काम कितना हल्का हो जायेगा।

      Delete
    2. संजय जी, आपकी बात सही है... भारत को अभी उस दौर में आने में थोडा समय लगेगा... लेकिन हम उतने आगे की क्यूँ सोचें... आज की हालत देखिये.... लज्जा नहीं आती आपको ये सब पढ़कर..... मुझे तो खुद के पुरुष होने पर लज्जा आती है....

      Delete
    3. ऐसा ही समझो भाई कि अब लज्जा नहीं आती। मुझ जैसों को आये न आये, ये इतना महत्वपूर्ण है भी नहीं। तुम जैसे जवान ही अब देश का भविष्य हैं, उन्हें आ रही है तो अच्छा ही संकेत है।

      Delete
  2. आपकी बातों से सहमत हूँ. मेरा मानना भी यही है की ये बुद्धिजन यदि अपनी मानसिकता में परिवर्तन लायें और अपने कम से कम अपने परिवार की मानसिकता बदलें तो एक दिन ऐसा जल्द ही आएगा जब उनको लड़कियों के बारे में इनती चिंता करने की आवश्यकता नहीं होगी

    ReplyDelete
  3. विवाह कोई हंसी खेल क्या,यह जीवन भर का निर्वाह |
    बंधन है दो दिलों का,मितवा, जिसको कहते आप 'विवाह' ||

    ReplyDelete
  4. bahut sarthak post hai aapki.........

    ReplyDelete
  5. जिनके लिए लड़कियां/महिलाएं घर में जी का जंजाल और बाहर एक उपभोग की वस्तुएं रही हों , वो अगर १६ साल में शादी की उम्र या चाउमीन ना खाने जैसे बचकाने सुझाव देते हों तो उनपे तरस खाना भी व्यर्थ है |
    जिस राज्य, या मैं कहूं पूरी एक बेल्ट जिसमे हरियाणा, दिल्ली और उत्तर-प्रदेश के काफी हिस्से आते हैं, में गाने भी ऐसे गाये जाते हों, जिसमे औरत को गलत नज़रों से देखा जाता हो तो बाकी आगे क्या सोचा जाए | ये चाउमीन खाने पर तो बैन लगाने की बात कर सकते हैं , पर रात में दारू के ठेके किसी भी वक़्त तक खुले रहें , इन्हें कोई दिक्कत नहीं क्यूंकि दारू पीने के बाद भी इन्हें घर की और बहार की औरतों / लड्क्यों में अन्तर समझाने की सुध बनी रहती है | इनपे तो लानत ही भेजनी चाहिए | और इनके बारे में बहस करना भी दीवार में सर मारने जैसा है, चोट खुद को ही लगेगी |
    और शादी, वो तो हमारे देश में पता नहीं क्या है | भगवान जाने क्या बना दिया इसे | इसके बारे में आराधना जी के ब्लॉग पर भी काफी चर्चा हुई है |अरविन्द जी के ब्लॉग पर बात तो बहुत ही दूर तक चली गयी | पर मुझे लगता है बात ऐसे बनने वाली नहीं है | कल एक किताब में किसी महापुरुष की बात पढ़ी थी जो कुछ यूँ थी "भविष्य की ना सोच कर हमें वर्तमान में कुछ ऐसा करना चाहिए कि हम आने वाली पीढ़ी को कुछ ऐसा दे सकें जिसपर हमें गर्व हो" | अगर ऐसा हो सके तो आने वाले नस्ल चैन की सांस ले सके | और बाकी बातों पर भी ध्यान दे |
    मेरा अपना विचार ये है कि शादी करनी है , नहीं करनी है या किससे करनी है , इसका निर्णय लड़के या लड़की पर छोड़ दें | उसमे सहायता करें , पर अपने निर्णय थोपे नहीं |

    ReplyDelete
  6. आवश्यक एवं रुचिकर विषय है, लगता है, टिप्पणियाँ पढ़ने लायक साबित होंगी !
    बधाई !

    ReplyDelete
  7. ये एक अच्छा विषय है ..आपने इस विषय पर खूब अच्छी अच्छी बातें कहीं ..मेरा भी यही मानना है की विवाह एक आवश्यकता नही है .. लड़कियों को भी अपने दिल और हक़ के बारे में सोचने का पूरा अधिकार होना चाहिए. विवाह जेसे महत्वपूर्ण निर्णय अपनी इच्छा से लें। ये उनका व्यक्तिगत मामला है।

    ReplyDelete
  8. अच्छा विषय उठाया. पर निर्णय तो व्यक्तिगत ही होना चाहिये.

    ReplyDelete
  9. अच्छा विषय है पर इस पर कोई खुद फैसला करे तो ही बढिया है बंदिश नही होनी चाहिये

    ReplyDelete
  10. mera comment kaha gaya kai or bhi gayab hai kyo

    ReplyDelete
    Replies
    1. anshumala ji, ye post do baar post ho gayi thi, jiske kaaran ye prblm huyi hai.. aapka comment http://nayabasera.blogspot.in/2012/10/blog-post_20.html is link par hai...

      Delete
  11. ha..ha.."सिर्फ इसलिए कि आप उम्र में मुझसे बड़े हैं या फिर आपके पास मुझसे ज्यादा डिग्रियां हैं आप मुझसे ज्यादा समझदार भी होंगे, मैं ये मानने से बेहद सख्त शब्दों में इनकार करता हूँ... "..good one:)

    ReplyDelete
  12. एक ज्वलंत विषय पर आपके सुलझे विचार जानकर अच्छा लगा। डिप्पणी चर्चा भी बढिया है।

    ReplyDelete

Do you love it? chat with me on WhatsApp
Hello, How can I help you? ...
Click me to start the chat...