आज मौसम ने फिर करवट ली है, ज़रा सी बारिश
होते ही हवाओं में ठण्ड कैसे घुल-मिल जाती है न, ठीक वैसे ही जैसे तुम मेरी
ज़िन्दगी के द्रव्य में घुल-मिल गयी हो... तुम्हारी ख़ुशबू का तो पता नहीं
लेकिन तुम्हारा ये एहसास मेरी साँसों के हर उतार-चढ़ाव में अंकित हो गया है...
आज शाम जब ऑफिस से निकला तो ठंडी हवा के थपेड़ों ने मेरे दिल पर दस्तक दे
दी... इस ठण्ड के बीच तुम्हारे ख्यालों की गर्म चादर लपेटे कब घर पहुँच गया
पता ही नहीं चला...
ऐसा
नहीं है कि मैंने बहुत दिन से तुम्हारे बारे में कुछ लिखा न हो, लेकिन जब
भी तुम्हारा ख्याल मेरे दिलो-दिमाग से होकर गुज़रता है, जैसे अन्दर कोई
कारखाना सा चल पड़ता है, और ढेर सारे शब्द उचक-उचक कर कागज़ पर उतर आने के
लिए बावरे हो जाते हैं... वैसे तो मैं हर किसी चीज से जुडी बातें लिखता हूँ
लेकिन अपने लिखे को उतनी शिद्दत से महसूस तभी कर पाता हूँ जब कागज़ पर
तुम्हारी तस्वीर उभर कर आ जाती है, गोया मेरी कलम को भी अब तुम्हारे प्यार
में ही तृप्ति मिलती है...
शाम
को जब तुम्हें जी भर के देखता हूँ तो सुकून ऐसा, मानो दिन भर सड़कों पे
भटकने के बाद किसी ने मेरे पैरों को ठन्डे पानी में डुबो दिया हो, सारा
तनाव, सारी परेशानियां चंद लम्हों में ही काफूर हो जाती हैं और बच जाता तो
बस तुम्हारे मोहब्बत का वो मखमली एहसास... तुम्हारे साथ हमेशा न रह पाने
का गुरेज़ तो है लेकिन इस बात का सुकून भी है कि मैं तो कबका तुम्हारी आखों
में अपना आशियाना बना कर तुम्हारी परछाईयों में शामिल हो चुका हूँ....
तुम्हें पता तो है न
मेरी ख्वाईशों के बारे में
ख्वाईशें भी अजीब हैं मेरी,
कि चलूँ कभी नंगे पाँव
किसी रेगिस्तान की
उस ठंडी रेत पर ,
हाथों में लिए तुम्हारे
प्यार के पानी से भरा थर्मस...
काँधे पर लटका हो
तुम्हारा दुपट्टा
और उसके दोनों सिरे की पोटलियों में
मेरी ख्वाईशों के बारे में
ख्वाईशें भी अजीब हैं मेरी,
कि चलूँ कभी नंगे पाँव
किसी रेगिस्तान की
उस ठंडी रेत पर ,
हाथों में लिए तुम्हारे
प्यार के पानी से भरा थर्मस...
काँधे पर लटका हो
तुम्हारा दुपट्टा
और उसके दोनों सिरे की पोटलियों में
बंधी हो तुम्हारे आँगन की
वो सोंधी सी मिटटी,
उसमे हो कुछ बूँदें
तुम्हारे ख़्वाबों के ख़ुशबू की,
दो चुटकी तुम्हारे इश्क का नमक
और ताजगी हो थोड़ी
वो सोंधी सी मिटटी,
उसमे हो कुछ बूँदें
तुम्हारे ख़्वाबों के ख़ुशबू की,
दो चुटकी तुम्हारे इश्क का नमक
और ताजगी हो थोड़ी
गुलाब के पंखुड़ियों पर
ढुलकती ओस के बूंदों की...
सच में
ख्वाईशें भी अजीब हैं मेरी...
ढुलकती ओस के बूंदों की...
सच में
ख्वाईशें भी अजीब हैं मेरी...
तुम्हें पता भी है हमारा प्यार किस सरगम से बना है, किसी सातवीं दुनिया के आठवें सुर से... जो तुम्हारे दिल से निकलते हैं और मेरे दिल को सुनाई देते हैं बस... और किसी को कुछ सुनाई नहीं देता... बाहर बारिश की कुछ बूँदें आवाज़ लगा रही हैं, आओ इन गीली सड़कों पर धीमे धीमे चलते हुए अपने क़दमों के निशां बनाते चलते हैं... तुम्हारे एहसास के क़दमों के कुछ निशां इस दिल पर भी बनते चले जायेंगे... ताउम्र तुम्हारा एहसास यूँ ही काबिज़ रहेगा इस दिल पर...
वाह! तबियत मस्त हो गई। 'पोटलियों' कर दीजिए।
ReplyDelete:D.. LOVE is in the air.. waise aisa to nahi ho sakta ki tum dono k RAAG ROMANCE ke sur kisi aur ko sunayi na dein.. pakka log ise sun k jhoom rahe honge kahin na kahin :)
ReplyDeleteमन कर रहा है एक स्माईली लिफाफे में करके तुमको भी भेज दें....
Deleteउत्कृष्ट लेखन !!
ReplyDeleteवत्स मज़ा आ गया!! इस बयान के बाद कोई कैसे जा सकता है छोडकर, हमेशा के लिए!! या शायद इतना चाहने वाला कोई मिल जाए तो छोड़कर ही जाना पडता है, नहीं तो दिल इतने प्यार को समेट कैसे पाता.
ReplyDeleteनज़्म के अलफ़ाज़ बहुत सुन्दर हैं.. एहसास कमाल के हैं. बस ज़रा सा सजाने की ज़रूरत है, फिर तो ये नज़्म....!!
अरे वाह.. !!!! आपको तीन-चार पोस्ट्स के बाद यहाँ देखकर मन खुश हो गया... और चाचू सच में मुझे छोड़कर कोई जा ही नहीं सकता... और यकीन है वो हमसफ़र कहीं जाने भी नहीं वाली... आपको यहाँ देख कर अच्छा लगा.. एक एनर्जी टाईप मिलती है आपको देखकर.... आपके कमेन्ट का बेसब्री से इंतज़ार होता है अपनी हर पोस्ट पर... आते रहिएगा, आपका ये भतीजा बहुत सेंसिटिव है.. कभी आपको किसी पोस्ट पर न देखकर मन उदास हो जाता है....
Deleteअरे हाँ, इसी बात पर थोडा सजा दीजिये न इस नज़्म को... एक podcast भी मिल जाए इस पोस्ट का तो क्या कहना...:)
Deleteकाम ने बहुत उलझा रखा है... इसलिए हो सकता है कुछ पोस्ट छूट गयी हों.. वैसे कुछ लोग दिल के इतने करीब हैं कि उनकी पोस्ट मैं मिस नहीं करता और दिल खोलकर अच्छा-बुरा कह देता हूँ. देखता हूँ, समय निकालकर तुम्हारी छोटी सी माँग पूरी कर सकूँ!!
Deleteतुम्हारी यादों की गरमाहट और यह ठंड
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteसर्दी में प्यार के पानी से भरे थर्मस की आवश्यकता ज्यादा लगती है. ये आपकी ख्वाहिशे जल्द साकार हों.
ReplyDeleteचाब्बाश बेट्टा । बहुत दिन तक मुर्दनी छाया रहा था तुम्हरे मूड पे । अब जुआनी लौट के आया है न अब सरदी गरमी बसंत सबका गीत बराबर साज पे बजेगा :) । चलाए रहो प्यार का चप्पू अईसे ही ।
ReplyDeleteग्राम यात्रा : कुछ यादें , तस्वीरों में
:)
Deleteबहुत ही सुन्दर भावों को समेटे यह पोस्ट
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी लगी...
बहुत ही बढियां...
:-)
jai ho bihar bale bhaiya hamhun bihari hai jara hamre pe bhi najr dail lo......
ReplyDeleteअबे तू खान्ग्रेसी है क्या ?नहीं हैं तो यह पोस्ट पढ़ यदि हैं तो खिसक ले वर्ना अपनी पोल अपने आगे खुलता देखेगासनातन ब्लोगर्स वर्ल्डke rajniti par ki yah pahli post jarur padhen..
दिल के कारखाने से शब्दों की बारिश...अच्छी लगी
ReplyDeleteहम पोस्टों को आंकते नहीं , बांटते भर हैं , सो आज भी बांटी हैं कुछ पोस्टें , एक आपकी भी है , लिंक पर चटका लगा दें आप पहुंच जाएंगे , आज की बुलेटिन पोस्ट पर
ReplyDeleteख्वाईशें अजीब हैं, लेकिन हैं बहुत अच्छी...ताज़गी से भरपूर सुन्दर पोस्ट... शुभकामनायें
ReplyDeletesundar bhavon ke sath sundar rachna..
ReplyDeleteटांग तुम्हारी कितनी भी खींचे, पर इस टाइप का लिखते हो तो गज़ब ढाते हो शेखू तुम , प्यार सलामत रहे और तुम ऐसे ही लिखते रहो !!!! बहुत खूब !!!
ReplyDeleteआपका पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteसच में
ReplyDeleteख्वाईशें भी अजीब हैं मेरी....bahot sunder hain.
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ReplyDeleteक्या ख्वाहिशें हैं पर हैं बडी प्यारी ।
ReplyDeleteअच्छा व्यंग्य है !
ReplyDelete'बगुला' बनने 'हंस' चला है,'कौआ' बनने 'कोयल'|
बन् कर 'साहूकार'मचाता, 'चोरों का दल',हलचल ||
बहुत खूब लिखे हो...एकदम तबियत से |
ReplyDeletekya kahein! kuch samajh me hi nahi aa raha...! God bless both of you! Lucky ho aap dono :)
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