अच्छा लिखने की पहचान शायद यही होती होगी कि किस तरह छोटे छोटे पहलुओं को एक धागे में पिरो कर सामने रखा जाये... मैं पिछले कई दिनों से कितना कुछ लिखता हूँ, जब भी मौका मिलता है शब्दों की एक छोटी सी गांठ बना कर रख देता हूँ,लेकिन इन गाठों को फिर एक साथ बुन नहीं पाता, दिमाग और दिल के चरखे इन गांठ लगे शब्दों को संभाल नहीं पाते.... कई-कई ड्राफ्ट पड़े रहते हैं बिखरे बिखरे से....
शायद अच्छी ज़िंदगी भी इसी तरह बनती होगी न, छोटे-छोटे रिश्तों और खुशियों को आपस में पिरोकर !!! लेकिन मैं तो वो भी नहीं कर पाता, किसी को भी ज़िंदगी के धागे में पिरोने से डर लगता है, शायद वो इस बेढब खांचे में फिट न हो तो... एक अकेले कोने में यूं बैठा गाने सुनते रहना चाहता हूँ, सोचता हूँ, ज़िंदगी यूं ही निकल जाये तो कितना बेहतर है....
ज़िंदगी के कई सिमटे-सिकुड़े जज़्बात हैं जो यूं कह नहीं सकता... अलबत्ता शब्दों की कई गाठें बिखरी पड़ी थीं, लाख कोशिश की पर जोड़ न सका तो कुछ को यूं ही रैंडमली चुन के उठा लाया हूँ....
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गरीबी सिर्फ सड़कों पर नहीं सोती,
कुछ लोग दिल के भी गरीब होते हैं
अक्सर उनके बिना छत के मकानों में
आसमां से दर्द टपकता है....
कुछ लोग दिल के भी गरीब होते हैं
अक्सर उनके बिना छत के मकानों में
आसमां से दर्द टपकता है....
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हर सुबह एक बेरहम बुलडोजर आता है,
सपनों के बाग को रेगिस्तान बना जाता है...
सपनों के बाग को रेगिस्तान बना जाता है...
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सुन ए सूरज,
थोड़ा आलस दिखा देना इस बरस
थोड़ा आलस दिखा देना इस बरस
तेरे आगे आने वाले कोहरे में
गुम हो जाना है सदा-सदा के लिए...
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गुम हो जाना है सदा-सदा के लिए...
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यहाँ हर किसी की अपनी व्यथाएँ हैं,
तभी शायद सभी को
दूसरों का रोना शोर लगता है....
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कुछ कहानियाँ मैं बिना पढे ही
बीच में अधूरा छोड़ आता हूँ,
कुछ चीजें अधूरी ही बड़ा सुख देती हैं....
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बीच में अधूरा छोड़ आता हूँ,
कुछ चीजें अधूरी ही बड़ा सुख देती हैं....
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जाने क्यूँ आज कांप रहे हैं हाथ मेरे,
तुम्हारे सपनों के बाग
डरा से रहे हैं मुझे,
कैसे इन रंग-बिरंगे सपनों पर
मैं अपने गंदले रंग के खंडहर लिख दूँ...
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मैंने तुम्हारे समंदर भी देखे हैं,
नीले रंग के
नीले रंग के
दूर-दूर तक फैले हुये,
कई लहरें आती हैं उमड़ती हुयी
और किनारों पर आकर लौट जाती हैं....
और किनारों पर आकर लौट जाती हैं....
एक समंदर और है मेरे अंदर कहीं,
जो हर लम्हा हिलोरे मारता है,
उसका कोई किनारा नहीं,
उसकी सारी नमकीन लहरें
मैं भारी मन से पी जाया करता हूँ,
मुझे अपना समंदर चुनने की आज़ादी तो है न...
सभी टुकडे अलग अलग मूड और अलग अलग तेवर वाले हैं शेखर जिंदगी के खूबसूरत रंगों की तरह ,,पोस्ट अच्छी बन पडी है
ReplyDeleteसभी अभिव्यक्तियाँ अपने आप में सम्पूर्ण और बहुत प्रभावी....
ReplyDeleteकभी कभी छोटी सी अभिव्यक्ति अपने में ही पूर्ण होती है। आकार की व्याधि के मारे हम, उसमें कुछ जोड़कर उसे निष्प्रभ कर बैठते हैं।
ReplyDeleteगहरे एहसासों के पल समेटे हैं ...
ReplyDeleteछोटे छोटे भावों कि सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDelete:-)
सुन्दर रचना। सादर धन्यवाद।।
ReplyDeleteनई कड़ियाँ : पंजाब केसरी लाला लाजपत राय
तिरूपति बालाजी पर द्वीपीय देश पलाऊ ने जारी किये सिक्के और नेताजी को याद किया सिर्फ एक सांसद ने।
ताजमहल की ख़ूबसूरती से कौन इंकार कर सकता है.. लेकिन उसमें अगर ये छोटे-छोटे संगमरमर के हर सुन्दर टुकड़े न होते तो क्या वो इतना ख़ूबसूरत हो पाता!!
ReplyDeleteहर टुकड़ा नायाब!
Bahut achchha laga padh k...sach mei...har kisee ko azadi honi hi chahiye apna samundar chunney ki...
ReplyDeleteख़यालों के छोटे-छोटे बूटों ने, जुमला-दर-जुमला, पूरा गुलशन बना दिया।
ReplyDeleteबहुत खूब !
वाह :)
ReplyDeleteवाह! बहुत बढ़िया..
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