आज करवाचौथ पर फेसबुक पर तरह-तरह के स्टेटस देखे, कुछ बेहद कड़वे कुछ प्यार में
पूरी तरह से डूबे हुये, किसी भी इस तरह के स्टेटस पर अपनी राय देने से
बचा... जब भी इस तरह का कोई भी पर्व आता है अजीब तरह की कशमकश होती है...
इस बाजारवाद को अगर एक किनारे कर भी दें लेकिन एक बात तय है कि अगर कोई
मेरी सलामती के लिए एक पूरा दिन भूखे रहने का निर्णय ले तो मेरे लिए इससे
बड़ी दुख की बात और कुछ नहीं हो सकती...
हालांकि माँ हर साल जीतिया के नाम पर ये करती आई हैं, लेकिन चूंकि उनका विरोध कर सकूँ उतना सामर्थ्य नहीं है और मैं अकेला भाई भी नहीं कि ऐसे कह दूँ... माँ साफ साफ ये कह के निकल जाएंगी कि केवल तुम्हारे लिए थोड़े ही रखा है....
लेकिन इतनी बात पक्की है कि शादी के बाद अगर मेरी पत्नी ये कहे कि उसे
मेरी लंबी उम्र लिए भूखे रहना है तो इसका विरोध मैं ज़रूर करूंगा... उम्मीद
करूंगा ऐसा कोई दिन न आए और हम स्वेच्छा से इस नौटंकी से दूर रह सकें... 3
महीने पहले हुयी Prashant Priyadarshi भैया की शादी के बाद जब आज वहाँ करवाचौथ का Boycott हुआ तो उम्मीद जगी हम इन नौटंकियों से आज़ाद होंगे कभी न कभी....
काश आने वाले समय मैं उसे ये समझा सकूँ कि यकीन मानो मेरी लंबी उम्र के
लिए सिर्फ हमारा प्यार ही काफी है, किसी को भूखे रहने की कोई ज़रूरत नहीं...
अगर मेरी लंबी उम्र चाहती ही हो तो चलो मिल कर कुछ अच्छा खाने का बनाते
हैं और साथ मिल कर खाते हैं..
बहुत अच्छा लगता है जब आज के युवाओं...और खास तौर से लड़कों को ऐसे सोचते हुए देखती हूँ...।
ReplyDeleteLoved your post...:)
शीर्षक ही सब कुछ कह गया.
ReplyDeleteऔर भैया जी अगर व्रत रखने से लम्बी उम्र होती है तो व्रत टूटने के कर्ण मौत भी सबसे ज्यादा इसी दिन होती. :) :)
आप मेरे ब्लॉग पर आमंत्रित हैं. :)
बहुत पसन्द आया
ReplyDeleteहमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
बिहार में करवा चौथ वैसे भी नहीं होता ...:बिहारी लडकियां तीज भी न करें .और उस दिन घर में . मटन शटन बने तब कुछ अलग हो :)...पर मुझे कोई आपत्ति नहीं,ऐसे त्यौहार से ...क्या फर्क पड़ता है, घर का माहौल बदलता है , चहल-पहल होती है . पति भी साथ रख ले. एक दिन का उपवास सेहत की दृष्टि से भी अच्छा है .
ReplyDeleteप्रिय शेखर जी,
ReplyDeleteमैं आपकी लेखनी की कायल हूँ. लेकिन करवा चौथ पर आपके विचार से असहमत हूँ.
प्यार में लोग जीने मरने की कसमे खाते है. चलिए, मान लिया कि यह फिल्मो का असर है. लेकिन, जिससे हम प्यार करते है क्या कोई आपात स्थिति आने पर उसके लिए दुःख उठाने से हम पीछे हट जाते है?? नहीं न...?
बस, ऐसा ही समझ लीजिये.
कोई भी चीज़ ढकोसला तब होती है जब उसे किसी के ऊपर थोपा जाए. मेरी एक सहेली की शादी पिछले साल हुई. उससे भूखे नहीं रहा जाता. उसने कहा कि वह कोई व्रत नहीं करेगी. उसके पति और ससुराल वालो ने किसी तरह का कोई दबाव नहीं डाला उस पर. यहाँ पर कोई बायकाट वाली स्थिति नहीं थी. इच्छा की बात थी. मेरी एक दूसरी सहेली ने इसाई लड़के से प्रेम विवाह किया और शादी के बाद धर्मांतरण करके ईसाई हो गयी. उसने मर्ज़ी से करवा चौथ का व्रत रखा. कोई बंधन या दबाव नहीं. सिर्फ इच्छा, शौक और ख़ुशी.
इस साल मेरी भी शादी हुई. मेरे मायके में एक पीढी पहले से सारी महिलायें करवा चौथ करती आ रही है. हालांकि ससुराल में नहीं होता. लेकिन मैंने किया. मेरे पति ने भी मेरे साथ साथ ये व्रत रखा. फिर वही.. इच्छा और शौक की बात...
दुसरे नज़रिए से देखे शेखर जी. होली, दिवाली जैसे कई त्यौहार परंपरा से ज्यादा परिवार के साथ वक़्त बिताने का मौका बन गए है. आपने केवल भूखे रहने को मुद्दा बनाया है. रक्षाबंधन में भी राखी बाँधने तक भाई बहन भूखे रहते है. क्या ये ढकोसला है?
आज की आपाधापी भरी ज़िन्दगी में, पति और पत्नी को साथ बिताने का वक़्त बहुत कम मिल पाता है. ऐसे में यदि एक त्यौहार के ज़रिये, एक दुसरे के प्रति त्याग, प्रेम और समर्पण का भाव आये तो इसमें गलत क्या है? हाँ, व्रत के नाम पर भूखे रहे और दिल में पति के लिए इज्ज़त और प्रेम न हो, तब ये ढकोसला है.
आपके विचारों को परखा जाए तो छठ पर्व भी एक तरह का ढकोसला ही है.
बहिष्कार प्रगतिशीलता कि निशानी नहीं है. ढकोसले को दरकिनार करना प्रगतिशील होना है.
करवाचौथ आप अपनी पत्नी की इच्छा पर छोड़ दीजिये. यदि वे करना चाहे तो करे और न करना चाहे तो न करे. सोचिये, यदि वो व्रत करना चाहे और आप उन्हें न करने दे तो क्या ये उनकी इच्छा पर आपका अतिक्रमण न होगा? हाँ, यदि शारीरिक कष्ट से पीड़ित हो तो आपका हक़ बनता है मना करने का.
आप निजी राय रखने के लिए स्वतंत्र है लेकिन कृपया प्रगतिशीलता के नाम पर दुसरो की भावनाएं चोटिल मत करिए.
ज़िन्दगी बिताने के लिए निःसंदेह जीवनसाथी का प्यार और साथ ही काफी है. लेकिन करवाचौथ, तीज जैसे त्यौहार बस यूँ समझिये कि उस सफ़र में पीपल की छाँव जैसे है.
आसमानी बाते नहीं कर रही हूँ शेखर जी. मैं भी बिहार के एक बेहद पिछड़े गाँव में जन्मी और पली बढ़ी हूँ. बहुत संघर्ष करके पढ़ाई की है. और उसके बाद घर वालों की मर्ज़ी से अंतर्जातीय प्रेमविवाह किया है. एक वक़्त था जब मैं खुद सोचती थी कि किसी के लिए भूखे रहना बेवकूफी है. लेकिन आज लगता है जिनसे आप प्यार करते है उनके लिए कुछ भी करे तो कम ही है.
अनुभव से कह रही हूँ. ज़िन्दगी उतनी कडवी नहीं है जितना हम इसे बनाकर रखते है. त्यौहार जीवन में खुशियाँ बांटने का एक मौका देते है. इन्हें बिना दबाव मनाया जाए तभी अच्छा.
शुभकामनाओं सहित,
एक पुरानी पाठिका.