दिसंबर आ गया है, हर साल आता है कोई नयी बात तो नहीं... दिसंबर से जुड़ी ऐसी कोई खास याद भी नहीं... वैसे भी इन सर्दियों में याद्दास्त थोड़ी कम हो ही जाती है, सिवाय रजाईयों में दुबके रहने के और कुछ याद नहीं रहता... कैसा लगे अगर इन सर्दियों में अचानक से तेज़ धूप निकल आए या खूब तेज़ बारिश होने लगे, चौंक जाएँगे न... ऐसा नहीं कि हमने कभी धूप नहीं देखी या बारिश कोई नयी सी है... बस इस मौसम में ये सब हम एक्सपेक्ट नहीं कर रहे होते न इसलिए...
खैर, मैं तो बहुत आगे निकल आया हूँ, लोग आज कल मुझे बोरिंग कहते हैं... जब लोग मेरे लिखे के कायल होते थे तो मुझे लगता था मेरा यूं बैठे बैठे डायरियों के पन्ने भर देना निहायत ही बकवास काम है... लेकिन अब लगता है कि ये लिखना ही था जिसने सालों मुझे अकेला चलने की हिम्मत बक्शी थी... अब जब लिखना लगभग छूट चुका है खुद को बेइन्तहा अकेला पाता हूँ, खुद के साथ बिताए लम्हों ने कई बेहतरीन नज़्में और कहानियाँ निकाली थीं किसी पुराने वक़्त में... खुद का ब्लॉग भी पढ़ूँ तो कभी-कभी बेगाना सा लगता है...
कितनी भी कोशिश कर लें हम अपने आपको सरप्राईज़ नहीं दे सकते न... कभी यूं ही चौंक जाने के लिए कई बार तुम्हारा "आखिरी हर्फ" पढ़ने चला जाता हूँ, कुछ नहीं मिलता एक सन्नाटे के सिवा... सच में वो आखिरी हर्फ बन कर ही रह गया... मुझे पता है तुम्हें लिखना पसंद नहीं, शायद मेरा लिखा पढ़ने की लत से भी अब उबर चुकी हो... न ही पूछती हो, न ही कहती हो कुछ लिखने के लिए....
ऐसा लगता है मैं फिर से उसी मूड में हूँ जिसमे अपनी कई डायरियाँ जला दी थीं, इस ब्लॉग को बड़े प्यार से सजाया है इसे कुछ नहीं कर सकता... ये ब्लॉग समंदर के उस किनारे की तरह काम करता है जहां मैं तनहाई में चुपके से शाम बिताने चला आता हूँ...
दिसंबर का महीना भी मेरी तरह ही बोरिंग है, कोई हरकत नहीं.... बाहर हल्की सी सर्द हवा चल रही है, इस ठिठुरती शाम को एक मुट्ठी में सुला कर, तुम्हारी साँसो में खुद की धड़कन को सुनते हुये मैं भी सो जाना चाहता हूँ...
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