कभी अचानक से सुबह जल्दी नींद खुल जाये तो मैं चौंक कर इधर-उधर देखने लग
जाता हूँ.... तुम्हारे होने की हल्की सी खुशबू फैली होती है चारो तरफ.....
जैसे चुपके से आकर मेरे ख्वाबों को चूमकर चली गयी हो.... आधी -चौथाई या फिर
रत्ती भर भी, अब तो जो भी ज़िंदगी महफूज बची है बस यूं ही गुज़रेगी तुम्हारे
होने के बीच....
वक़्त के दरख़्त पे
मायूसियों की टहनी के बीच
कुछ पतझड़ तन्हाईयों के भी थे,
पर इस गुमशुदा दिसंबर में
उम्मीद की लकीरों और
ओस की नमी के पीछे
दिखती तुम्हारी भींगी मुस्कान…
दिसंबर की सर्दियों के ख्वाब भी
गुनगुने से होते हैं,
रजाईयों में दुबके हुए से,
उसमे से कुछ ख़्वाब फिसलकर
धरती की सबसे ऊंची चोटी पर
वक़्त के दरख़्त पे
मायूसियों की टहनी के बीच
कुछ पतझड़ तन्हाईयों के भी थे,
पर इस गुमशुदा दिसंबर में
उम्मीद की लकीरों और
ओस की नमी के पीछे
दिखती तुम्हारी भींगी मुस्कान…
दिसंबर की सर्दियों के ख्वाब भी
गुनगुने से होते हैं,
रजाईयों में दुबके हुए से,
उसमे से कुछ ख़्वाब फिसलकर
धरती की सबसे ऊंची चोटी पर
पहुँच गए हैं,
उस चोटी से और ऊपर, बसता है
ढाई आखर का इश्क अपना..
उस चोटी से और ऊपर, बसता है
ढाई आखर का इश्क अपना..