वक़्त... ऐसा लगता है कि दुनिया में बस यही एक चीज है जिसका चलते रहना निश्चित है... देखो न वक़्त के पहिये ने देखते ही देखते 5 साल का सफ़र तय भी कर लिया और हमें खबर तक नहीं हुयी... वैसे हम जिस जन्मों-जन्मों के सफ़र पर निकल चुके हैं, ये तो उसका बस एक छोटा सा हिस्सा है... इन सालों में मैंने बहुत कुछ लिखा है, लगभग सारा कुछ बस तुम्हारे लिए या सिर्फ इसलिए कि तुम्हें मेरा लिखा पसंद आ जाता है(जाने क्यूँ भला)...
जब कभी कोई कहता है मुझे
"तुम इश्क़ बहुत अच्छा लिखते हो..."
मैं याद करता हूँ तुम्हारी मुस्कान
और दोहरा देता हूँ मन-ही-मन
"तुम बहुत प्यारी लगती हो मुस्कुराते हुए..."
क्या करूँ,
मैं इश्क़ लिखता हूँ तो तेरी याद आती है...
पहले मैं कई तरह के अजीबोगरीब सपने देखा करता था, उन सपनों में उलझा हुआ बेतरतीब इंसान जाने क्यूँ तुम्हें पसंद आ गया... उस यायावर को तुमने जैसे स्थिर कर दिया, जैसे नदी में बहता हुआ कोई बड़ा सा पत्थर कभी किसी पेड़ के तने पे जा लगता है और अपनी सारी उम्र वहीँ टेक लगाए बिता देता है... वक़्त के साथ-साथ वो धीरे-धीरे ज़र्रा ज़र्रा सा होकर मिटटी में तब्दील हो जाता है और उसी तने में मिल जाता है...
आज कल मेरे सपनों के आयाम द्विअक्षीय हो गए हैं जो बस तुम्हारी खुशियों और मेरी ज़िन्दगी के बीच कई सारी रेखाएं बनाते हैं, दरअसल मेरे सपने, मेरी ज़िन्दगी के शीशे पर तुम्हारी परछाईं का आपतन बिंदु है...
जैसे-जैसे हम अपने इस सफ़र एक-एक कदम बढाते जा रहे हैं, हमारा सफ़र और लम्बा और खूबसूरत बनता जा रहा है... तुम्हारी इन चमचमाती आखों को देखता हूँ न तो ज़िन्दगी का सारा अँधेरा सिमट के जैसे बह जाता है इस रौशनी में... हमने बहुत से ख्वाब देखे हैं और हम हर बढ़ते सालों के साथ उसे सजाते हैं, संवारते है और तह लगा के रख देते हैं अलमारियों में ताकि जब भी इन यादों की अलमारी खोलें बस इन खिलखिलाती यादों को अपनी ज़िन्दगी में चस्प होता पाएं...
चार शब्द समेटता हूँ मैं,
बस तुम्हारे लिए....
इन लफ्जों को कोई
अक्स-ए -गुल
समझ लेना
और टांक लेना अपनी
जुल्फों के जूड़े में...
वो इब्तिदा -ए -इश्क
की
एक शाम थी जब
हमने अपना खाली दिल
तुम्हारे नाम कर दिया ...
आँखों से होते हुए तुम्हारी हम
दिल से, अपने दिल के, दिल में बस गए
और सपनो से बुनी इस जिंदगी को
सुबह-ओ-शाम
कर दिया
...
तुम्हें पता है हम अभी जिस शहर आये हैं उसके लिए मैंने ये वाला दिन ही क्यूँ चुना... नहीं ये कोई इत्तेफाक नहीं... बस इस 5 साल के इश्क़ के पौधे को थोड़ी प्यार भरी छाँव मिले जाए...
देखा है तुमने कभी
मार्च की हवाओं का गुलदस्ता,
भरी है कभी पिचकारी में
मेरी साँसों की नमी...
कहो तो इस नमी में भिगो के लिए आऊं
तुम्हारे लिए कई सारे छोटे-छोटे चाँद....
चलो साथ में टहलने चलते हैं... मैं, तुम और हमारा ये 5 साल का इश्क़...
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 17 अप्रैल 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत खूब .... पांच साल का सुहावना सफ़र जिंदगी बन जाये तो क्या बात है ...
ReplyDeleteबहुत खूब उकेरा सफर को ...इश्क़ को लंबी उम्र के लिए शुभकामनाएं
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