उम्मीदों का क्या है, कभी जगती हैं कभी ख़त्म हो जाती हैं.... हर सुबह एक नयी उम्मीद के साथ शुरू होती है और रात ढलते ढलते दिल बुझता जाता है, जाने क्या होगा... जाने क्या होने वाला है... ज़िन्दगी की ये सड़क जैसे अगले मोड़ पर थम सी जाने वाली है... हर रोज आँखों से बहते इस इंतज़ार में आगे के रास्ते बह चुके हैं....
कई साल पहले तुमने एक बंद कमरा खोला था, लगता है मैं आज भी उसकी चौखट पर खड़ा हूँ, पर इस बंद कमरे की एक-एक ईंट अब मेरी रग-रग में बहती है, मेरी दुनिया अब यहीं सिमट के रह गयी है.. मेरे साथ यही एक तो दिक्कत है, मुझे इश्क़ के आलावा कुछ समझ ही नहीं आया... तुम्हें हर रोज उतनी ही शिद्दत से गले लगाने की ख्वाइश थी, पर इन ख्वाहिशों का क्या है, कुछ पूरी होती हैं और कुछ इसलिए बनी होती हैं ताकि टूट सकें...
कभी सोचती हूँ की कैसा होता अगर बंद कमरा बंद ही रहता ....या फिर बिना कुछ कहे मै तुमसे दूर चली जाती ,पता नहीं मै किस चीज से भाग रही थी शायद अपने आप से और अपनी जिंदगी से ,मै सब कुछ खोने वाली थी और शायद जिंदगी में तुम्हे खोकर कुछ नहीं बचता मेरे पास .....अब तुम मेरे साथ हो तो लगता है कि मै कहीं भी अकेली नहीं हूँ तुम साथ न होकर भी साथ होते हो हमेशा ....... :-)
ये जो ज़िन्दगी के ख्व़ाब हैं न, वो टूटते हैं तो बहुत तकलीफ होती है और मुझे तो बहुत ही ज्यादा... बहुत वक़्त बीत गया है इस ख्व़ाब को सीने से लगाये हुए, ये अब मेरे खुद के वजूद का हिस्सा हैं.. इसके इतर ज़िन्दगी हो शायद मुमकिन लेकिन वैसी तो नहीं ही होगी जिसकी चाह थी हमेशा से... लगता है, दुनिया में सब छोड़ जाएँ बस तुम न जाओ कहीं... तुम्हारे लिए क्या मुमकिन है क्या नहीं ये तो शायद तुम्हीं जानों, तुम्हारी बातों के इर्द गिर्द कई सारी जिंदगियां हैं, कई सारे रिश्ते हैं.... मेरे से कहीं पुराने... मेरा तो जो होना है हो ही जाएगा....
पता नहीं, अगले जन्म में भी तुमसे मिलने की ख्वाइश रखूँ या न रखूँ... अगर कहीं अगले जन्म में भी यूँ भी बिछड़ना लिखा हो तो... नहीं मिलने का तो कोई दुःख नहीं होगा, पर यूँ बार-बार बिछड़ना न हो पायेगा...
सुनो न, मत मिलना अब कभी... अलविदा....
सुनो न, मत मिलना अब कभी... अलविदा....