जैसे ही हम किसी बात पर ये कहते हैं कि "ये मेरी ज़िन्दगी है...", उसी वक़्त एक तीरंदाज़ हम पर हंस रहा होता है, हम हर वक़्त उसके निशाने पर हैं... ठीक उसी वक़्त जब ज़िन्दगी में पहली बार ऐसा कुछ विकास के पास था जो उसकी ज़िन्दगी का सार था, ज़िन्दगी ने उल्टा सा रुख कर लिया... वो अकेला बैठा बस रोता रह गया जैसे...
उसे पता है, ये बोझ बहुत भारी है और ज्यादा वक़्त तक नहीं उठा पायेगा ... लेकिन अंशु को मुस्कुराते हुए देखने के लिए शायद खुद के आँसू छुपाने का इम्तहान है... प्यार निभाने के कई सारे तरीके हैं, विकास के लिए सबसे कठिन रास्ता चुना है उसकी किस्मत में... काश अंशु ये समझ पाती कि विकास कितना बिखर जाएगा, जिन ख़्वाबों के बगीचे उसने उगाने के सोचे थे उन ख़्वाबों को पत्थर बना कर खुद को कैद करता जा रहा है धीरे धीरे... इन दिनों उसे अपना नाम तक ध्यान नहीं रहता...
विकास बिखरने से ठीक पहले एक आखिरी बार संवरना चाहता है. पर अंशु ने साथ चलने से मना कर दिया है.... कई सालों तक जगजीत सिंह ने विकास की प्लेलिस्ट में दस्तक नहीं दी थी, दी भी तो कभी इस मूड में नहीं दी थी...
मनाने रूठने के खेल में हम
बिछड़ जाएँगे ये सोचा नहीं था,
तेरे बारे में जब सोचा नहीं था
मैं तन्हा था मगर इतना नहीं था....
बिछड़ जाएँगे ये सोचा नहीं था,
तेरे बारे में जब सोचा नहीं था
मैं तन्हा था मगर इतना नहीं था....
आज पहली बार नशा करने का दिल कर रहा है, लग रहा है सर दर्द से फट जाएगा... सिगरेट का एक कश लगा के शायद कुछ हो जाए... मुझे ज़िन्दगी के नशे ने मारा है सालों-साल अब शायद ये सिगरेट ही बचा ले, अच्छा इंसान होने के कई नुक्सान हैं आप खुद को बुरा बता के अपने दुःख का कारण नहीं चुन सकते...
बहुत गुरुर था मुझे खुद पर, अपनी चीजों पर, अपने हर टैलेंट पर, अब लगता है मैं इन सब के लायक नहीं था काश उसे मिला होता जिसे इसकी कद्र हो ज़रा भी... दुनिया का समीकरण भी अजीब है जिसे जिस की कद्र हो उसे वही नहीं मिलता...या ये कहूं जिसको जो मिलता है उसकी कद्र नहीं करता, मैं भी कहाँ अलग हूँ इस दुनिया से... मैंने भी कद्र नहीं की किसी चीज की, आज इतने बड़े से घर में अकेला बैठा हूँ, लगता है शायद कोई कॉल बेल बजा दे, परा पता है कोई नहीं आएगा... मैं इतना दूर हूँ सब से कि अगर यहाँ इस बंद कमरे में इस दुनिया को अलविदा भी कह दूं तो भी किसी को शायद तब पता चले जब बदबू फ़ैल जाए हर तरफ, मुझे इसी अकेलेपन से डर लगता था हमेशा, कोई हो ही न तो छोड़ के कौन जाएगा इसलिए अकेला ही रहा किसी को आने ही नहीं दिया, लगता था मुझे कोई छोड़ कर नहीं जा सकता क्यूंकि कोई है ही नहीं... बंद कमरा दरअसल तुम्हारा नहीं था, मेरा था... वहां किसी को आने की इजाजत नहीं थी, बस इस डर से कि न कोई आएगा न ही कोई जाएगा...
मुझे वो बंद कमरा नहीं खोलना था, जन्मों-जन्म लग जायेंगे इससे उबरने में... काश मैं बुरा होता, इतना बुरा कि कोई उस बंद कमरे की तरफ आता ही नहीं... मैं इसे बंद करके चाभी कहीं फेंक देना चाहता हूँ, मुझे नहीं आना इससे बाहर...
मैं कभी कहा करता था कि प्रेम आज़ाद होता है इसे मुट्ठी में कैद नहीं कर सकते... मैं भी नहीं कर पाया...
ये सिगरेट में भी बस धुआं है नशा तो कुछ है ही नहीं...