उसे पसंद है सीधी-सादी कविताएं
जिनमें शब्दों के जाले न बुने गए हों
जिनमे बस बदहवास
प्रेम लिखा और कुछ नहीं
न उर्दू अल्फ़ाज़ों से खेला हो मैंने
न ही कोई विम्ब ऐसा
जो उसे समझ न आये
जिसमें भाव के अंदर
कोई और भाव न छुपा हो
इन्सेप्शन की तरह..
जिनमें शब्दों के जाले न बुने गए हों
जिनमे बस बदहवास
प्रेम लिखा और कुछ नहीं
न उर्दू अल्फ़ाज़ों से खेला हो मैंने
न ही कोई विम्ब ऐसा
जो उसे समझ न आये
जिसमें भाव के अंदर
कोई और भाव न छुपा हो
इन्सेप्शन की तरह..
मैं उठाता हूँ अपनी डायरी
खोजता हूँ कि
लिखा हो शायद
कुछ ऐसा आसान सा
फिर लगता है जब
ज़िंदगी ही कभी इतनी आसान न थी
तो लिखता कैसे...
अब आसान सा लिखूँ
तो झूठ लगता है,
उतना ही झूठ
जितनी कुछ बीती बातें
लगने लगी हैं आज कल...
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (१९-०१ -२०२०) को "लोकगीत" (चर्चा अंक -३५८५) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
-अनीता सैनी
लाजवाब
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत अल्फाजों में पिरोया है आपने इसे... बेहतरीन
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