सबकी ज़िंदगी के अपने अपने लक्ष्य होते हैं, आज के बदलाव भरे समय में अगर कोई एक बात है जो सबकी नींदें उड़ा रही है तो वो है नए तरह के सपने...
पहले के सपने भी लोगों की सोच की तरह ही mediocre होते थे, साधारण सी ज़िंदगी के साधारण से सपने...
शायद मेरे भी ऐसे ही थे, मैं अकैडमिक्स में बहुत एवरेज रहा हमेशा, तो लगता था कुछ mediocre ही कर पाऊंगा... 2010 में engineering ख़त्म करने के बाद भी मुझे यही लगता था कि साधारण सी नौकरी चाहिए बस...
फिर जब बैंगलोर आया तो सपने देखने सीखे, लगा कि अब तक कुएँ के मेढक की तरह जी रहा था, ऐसे इंसानों से मिला जो मेरे से उम्र में छोटे थे लेकिन अपने दम पर कुछ बड़ा करने का जज़्बा कहीं ज़्यादा था, महज़ 21-22 साल की उम्र में अपने सपने, अपने पैसे से पूरे करने की भूख... चाहे लड़का हो या लड़की. Infact लड़कियाँ ज़्यादा desperate थीं career और जॉब के लिए... CDAC का कोर्स चल ही रहा था फिर भी सब interview और exam देते ही रहते थे...
मैंने तो नहीं दिया, लेकिन ऐसे कई interviews और exam का हिस्सा रहा...
अजीब सुख था वो, एक इंसान जिसे किसी भी क़ीमत पर अपने दम पर कुछ करना था, उसका support system बनने का सुख...
इस पूरे वक्त में मुझे लगने लगा था कि शायद समय का पहिया घूम चुका है, और अब कोई टाइम पास नहीं करना चाहता, workaholic होना ही ट्रेंड है..
अभी भी कुछ लोगों से मिलता हूँ तो अच्छा लगता है, उनका जज़्बा देखकर अच्छा लगता है.. अच्छा लगता है अगर कोई आगे बढ़े, अपने सपने खुद पूरे करे... लेकिन उसके लिए पहले सपने देखने पड़ते हैं... अगर सपने नहीं हैं तो उन्हें पूरा करने की भूख भी नहीं होगी...